एक राजस्थानी मित्र ने एक अद्भुत सब्जी खिलाई. वह सब्जी महीनों तक डब्बाबंद सूखे रूप में रखी जाती है. पानी में फुलाने के बाद उसके स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं. उन्होंने बताया कि रेगिस्तान में जब महीनों तक कुछ खाने को अनाज नहीं होता, तो कुछ कांटेदार झाड़ियों में पोषक-तत्व तलाशे गए. ऐसी झाड़ियां मिली, जिनमें प्रोटीन-विटामिन आदि का जुगाड़ था और उसे पोटली में बांध कर महीनों रखा जा सकता था. ऐसे भोजन 'सर्वाइवल फूड' कहलाते हैं.

राजस्थान की यह सब्जी है 'पंचकुटा', जिसमें पांच तरह के जंगली शाक-दाल हैं- सांगरी, कैर, कुमटिया, काचरा, गुंदा. इसमें जो चीजें डाली जाती हैं, वह भी सूखी लाल मिर्च और अमचूर हैं. अंत में यह चना-साग जैसी सब्जी का रूप ले लेती है, और खूब स्वादिष्ट होती है.

'सर्वाइवल फूड' का प्रयोग दुनिया भर में कई परिस्थितियों में किया जाता है. जैसे युद्ध-क्षेत्र में अगर कोई सैनिक किसी खंदक में हो या कहीं खो जाए, तो कैसे जीएंगे? उनके पास ऐसे किट होते हैं, जिससे उनका पोषण चलता रहे. इसी तरह पहाड़ और जंगलों के यात्री भी अपने साथ सूखा भोजन रखते हैं, जिससे उनका जीवन चलता रहे. अंतरिक्ष यात्राओं में ताज़ा सब्जी या मांस नहीं मिलता, तो पैकेटबंद सूखा भोजन रखा जाता है.

लेकिन, इनमें से कई सूखे भोजन तो अपेक्षाकृत नई तकनीक से जन्मे हैं. राजस्थान के रेगिस्तानों में यह वर्षों से चली आ रही है. पंचकुटा की झाड़ियों को पहचान कर, उसे भोजन रूप में प्रयोग किया जाता रहा है. एक अच्छे 'सर्वाइवल फूड' की पहचान है कि वह न सिर्फ़ दो-ढाई साल, बल्कि बीस-तीस साल तक रखा जा सके. पंचकुटा में वे गुण मौजूद हैं, कि इसे एक उत्तम कोटि का जीवन-अमृत माना जा सकता है. ख़ानाबदोशी जीवन में ऐसी पोटलियों का महत्व रहा होगा कि राजस्थानी जिप्सी रेगिस्तान में चलते हुए अरब से गुजर कर पचकुटा चबाते हुए यूरोप आ गए. रोमां बन गए.

कैर अक्सर गर्मियों में मवेशी चराते हुए रेगिस्तान की झाड़ियों में चुना जाता रहा है. इसके बीज में तेल, प्रोटीन और कुछ विटामिन होते हैं. इसी तरह सांगरी में भी प्रोटीन मौजूद है. पंचकुटा की सब्जी को पूरी, रोटी या पराठा के साथ खाया जाता है. जैन पंथ के लोग अष्टमी और चौदष अवसर पर पंचकुटा की सब्जी खाते हैं, क्योंकि उस समय वे हरी सब्जियां अक्सर नहीं खाते. इसे पानी के अलावा दही या छाछ में फुला कर भी खाया जाता है.


पंचकुटा की खूबी यह भी है कि सूखे रूप में होने के कारण यात्राओं में बहुत कम जगह लेता है. हाल के वर्षों में इसकी कीमत भी बढ़ गयी है और 1000 रुपए प्रति किलो से अधिक है. लेकिन, इस एक किलो पंचकुटा को फुलाने के बाद कहीं अधिक सब्जियां बन जाती हैं. एक परिवार के भोजन के लिए एक मुट्ठी पंचकुटा ही पर्याप्त है. अगर आपसे कभी साक्षात्कार में पूछा जाए कि एक वीराने द्वीप पर फंस गए तो अपने साथ क्या रखेंगे, उस समय खयाली पुलाव बुनने के बजाय कहें- पंचकुटा.

(प्रवीण झा पेशे से डॉक्टर हैं. वे नॉर्वे में रहते हैं. यह लेख उनकी फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित किया जा रहा है.)

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Rajasthan का सर्वाइवल फ़ूड: संघर्ष भरे जीवन का अमृत
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