बचपन से हम सुनते आए थे- वे आए, उन्होंने देखा और उन्होंने विजय प्राप्त की. (He came, he saw he conquered). पिछ्ले दिनों हमें यह वाक्य एक बार फिर याद आया जब रिचर्ड गेरे जी ने खुले आम शिल्पा शेट्टी को चूमा और मन भर चूमा. हमें लगा- वे आए, उन्होंने चूमा और वे चले गए. हमने इसे देखा, हम चौंके और हम ठगे से रह गए.
वह अपना चूमने वाला मुंह लेकर चले गए. शिल्पा शेट्टी अपना चूमा हुआ सा मुंह लेकर रह गईं. हम चूमी हुई शिल्पा शेट्टी को लिए-दिए इस ऐतिहासिक घटना पर अपने मन का भूगोल बिगाड़ रहे हैं. कभी हम सुलगते हैं कि हमारी आंखों के सामने एक विदेशी हमारे देश की महिला को चूमता रहा हमारे देश के लोग कैमरा चमकाते रहे. कभी लगता है कि विदेशी संस्कृति का एक प्रतिनिधि हमारी संस्कृति को खुले आम छेड़कर चला गया.
कुछ लोगों का मानना है कि यह शिल्पा शेट्टी और रिचर्ड गेरे का आपसी मामला है. वे दोस्त हैं. उनके गाल उनके होंठ के बीच में हम कौन होते हैं बोलने वाले. शिल्पा शेट्टी का भी सिर्फ यही मानना है कुछ ज्यादा हो गया. कुछ गलत हुआ यह कहती हुई वे नहीं सुनी गईं.
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प्रगतिपथ पर बढ़ा एक कदम!
मुक्त अर्थव्यवस्था के हिमायती शायद यह कहें कि यह प्रगति के पथ पर बढ़ा हुआ एक कदम है. ऐसे ही आगे बढ़ते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब दोनों अर्थव्यवस्थाओं का अंतर मिट जाए. ऐसे ही कई कोणों से यह घटना देखी जा सकती है. कोई स्थितिविज्ञान का जिज्ञासु इस बात के अध्ययन में जुट सकता है कि मंच पर शिल्पा शेट्टी को चूमने को उचकते, लपकते रिचर्ड गेरे और चूमने से बचने का 'मधुर- निरर्थक' सा प्रयास करतीं शिल्पा शेट्टी की स्थिति का अध्ययन करते हुए यह पता लगया जाए इस चुम्बन क्रिया में 'चुम्बन युग्म' के गुरुत्व केन्द्र की स्थिति क्या परिवर्तन हुई.
कोई 'सेंसेक्स सनकी' इस घटना के कारण हुए शेयर बाजार में हुए उछाल का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि इस चंद मिनट की चुम्बन क्रिया में कितने हजार करोड़ का शेयर बाजार ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं हो गया.
सामने नहीं आया लेकिन यह जरूर हुआ होगा कि दुनिया की तमाम प्रसाधन कंपनियों में यह सुझाव जरूर उछले होंगे- यह पाउडर लगाओ, वह लिपिस्टिक लगाओ, लिप लाइनर अपनाओ, वह कजरा लगाओ तो किसी का भी मन आपको चूमने का करेगा. रिचर्ड गेरे की जीन्स की कंपनी वाले अपने बॉस से सलाह ले रहे होंगे- क्यों साहब अगर इस सीन का उपयोग करके यह प्रचार करें कि अगर हमारी जीन्स पहनें तो आप दुनिया में किसी को भी चूम सकते हैं. यही नहीं- दंतमंजन, माउथफ्रेसनर, बाडी लोशन, हेयर डाई, माइक, जूता-चप्पल, साड़ी, ब्लाउज अंदर की बात वाले और मर्दानगी के सबूत (चढ्ढी बनियान वाले) इसे अपनी तरह से भुना सकते हैं.
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चूमने में कितना वात्सल्य?
दुनिया के तमाम हृदय रोग विशेषज्ञ संस्थान गेरे-शेट्टी वीडियो का माइक्रोस्कोपिक अध्ययन करते हुए उनकी सांसों के उतार-चढ़ाव का ग्राफ़ देखकर शायद यह निष्कर्ष जारी कर दें कि इस तरह के कार्यव्यापर दिल की सेहत के लिए मुफ़ीद हैं.
कोई मनोवैज्ञानिक इस वीडियो फिल्म में आखें गड़ाए इस बात के सूत्र तलाश में जुटा होगा कि रिचर्ड गेर के चूमने में वात्सल्य कितना था, यौन उद्दाम कितना था, स्नेह कितना था, खिलंदड़ापन कितना था, बौड़मपने का क्या अंश था. इसमें कितना दोस्ताना अंदाज था और कितना उजड्डपने का अंश मिला था. वह पहले से ही इतना चूमने की सोचकर आए थे या अचानक ऐसा हो गया कि एक बार शुरू हुए तो रुक ही नहीं पाए. वह शिल्पा के भी मनोभाव का अध्ययन करके उनके बचने के प्रयासों में बेबसी, आनन्द, उल्लास, क्या बेवकूफ़ है, क्या खूब है आदि के भावों की मात्रा के अध्ययन में सिर खपा सकते हैं.
हमें यह भी लग रहा है हो न हो बिग ब्रदर कार्यक्रम में जो इंग्लैंड की एक माडल की फ़जीहत शिल्पा शेट्टी के कारण हुई उसी की याद करके गेर ने शायद बदला चुकाया हो कि खुलेआम उनको चूमकर चले गए. या फिर शायद उसी सफलता की 'बीलेटेड' बधाई दे रहे होंगे. उचकते-चिपकते उत्साह के साथ.
बहरहाल भारत में भी इसकी अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं हुईं. मैं कल्पना करता हूं कि अगर भारत के अलग-अलग हिस्सों में इस घटना की क्या प्रतिक्रिया होती.
मेरठ के जाट इलाके के लोग कहते हमारे गांव की मोड़ी को कोई ऐसे चूम के दिखा दे तो हम दोंनो को खोद के गाड़ देते. कोई और खुले हुए दिमाग के लोग शायद कहें कि रिचर्ड गेर को ऐसा नहीं करना चाहिए.अगर अनजाने में ऐसा हो भी गया तो सारी बोल देना चाहिए.
...तो तोड़ देती रिचर्ड गेरे का मुंह!
किसी कन्या महावि्द्यालय के स्टाफ रूम में बतियाती कुछ प्रौढ़ा महिलाएं शायद कहें- हमें कोई ऐसे चूम के दिखा दे. हम होती तो उसी माइक से गेरे को मुंह फोड़ देते.
कोई ज्यादा ही खुले दिमाग की महिलाएं शायद कहें- बस्स ही कुड किस ओनली. हाऊ पिटी. इतना डरपोक होगा गेरे यह मुझे पता नहीं था. ऐसा भी क्या शर्माना.
दूसरी शायद कहें- शिल्पा शेट्टी को भी तो कुछ सहयोग करना चाहिए था न. ऐसे थोड़ी होता है आजकल के जमाने में. बराबरी का जमाना है भाई! काश मैं उसकी जगह होती.
ज्ञानी जन कहते- रिचर्ड गेरे को इतनी तो तमीज होनी चाहिए कि जिस कार्यक्रम में आए हैं वहां के अनुरूप आचरण करते. ए दोस्ताना प्यार, गर्मजोशी मंच पर छितराने के पहले सोचना चाहिए कि उसका क्या असर पड़ेगा लोगों पर.
कुछ शायद सोचें- ए बड़ा बेशरम है. ऐसा तो हमारे 'वो' कभी अकेले में भी नहीं करते.
किसी चाय की दुकान में अड्डेबाजी करते हुए लोगों के बयान शायद कुछ ऐसे होते-
यह हरकत अगर वह हमारे मोहल्ले में करता तो उसका मुंह काला करके जुलूस निकाल देते.
मुंह भले हम उसका काला न करते लेकिन जुतियाते तबीयत से.
यार हमें तो मार-पीट से डर लगता है. हम होते तो उसे उठाकर पटके देते और जैसे ही वह उठने की कोशिश करता हम उसे गुदगुदी कर देते. पटकने की वजह से वह हंस न पाता और गुदगुदी करने की वजह से रो न पाता.
ब्लागरों के भी अलग बयान जरूर होंगे. कोई कहता- अगर यही करना तो हम क्या बुरे थे.
बहरहाल, जो हुआ सो हुआ. होनी को कौन टाल सकता है लेकिन घटना की जांच से भी हमें कौन रोक सकता है. सो हमने घटना की जांच की और काफ़ी विस्तार से की. अब चूंकि आजकल मीडिया के बुराई के दिन चल रहे हैं लिजाहा हमें सारी घटना के पीछे केवल मीडिया की आधी-अधूरी जानकारी परोसने की आदत की इसका कारण लगती है. मीडिया ने जनता को पूरी बात बताई नहीं.
क्या था रिचर्ड गेरे का संदेश?
असल में हुआ यह कि जिस कार्यक्रम में यह कार्यक्रम हुआ वह एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से आयोजित हुआ था. हजारों ट्रक ड्राइवर इकट्टा हुए थे. क्योंकि यह माना जाता है कि एड्स के सबसे अधिक शिकार ट्र्क ड्राइवर होते हैं. अपने कार्य की प्रकृति के कारण ट्रक ड्राइवर अपने घर से अधिकतर बाहर रहते हैं. इसीलिए वे अपने जीवन साथियों से अलग दूसरे लोगों से सबसे ज्यादा यौन सम्बन्ध बनाते हैं. ऐसे में उनके एडस का शिकार बनने की आशंकाएं सबसे ज्यादा होती हैं. उन्हीं ड्राइवरों को यह एड्स के प्रति जागरूक बनाने के लिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया था.
सनी देओल, जिन्होंने एक गदर फिल्म में ट्रक डाइवर का रोल किया था उन्होंने बहुत विस्तार से ट्रक डाइवरों को एचआईवी और एडस की जानकारी दी और सुरक्षित संबंध बनाने के तरीके बताए. यह जानकारी का सत्र था.
अब जैसा कि होता है कि बिना विदेशी के हमारे देश के लोगों को कुछ समझ में आता नहीं इसलिए रिचर्ड गेरे को भी बुलाया गया था. वह समाज सेवी हैं. उनकी समाज सेवा के अपने तरीके हैं. उन्होंने अपनी जवानी का जलवा दिखाते हुए मंच पर जो किया वह सबको पता है.
सनी देओल का सारा ज्ञान हवा में उड़ गया. क्या कहा उस पंजाबी पुत्तर ने इस जानलेवा बीमारी से बचने के लिए वह भ्रम की टाटी सा उड़ गया. बस फिजाओं में शिल्पा शेट्टी और रिचर्ड गेरे के चुंबन तैरने लगे. सनी देओल ने जब अपना भाषण दिया होगा तो उनके होंठ खुले होंगे. गेरे के होंठ चूमते समय बन्द होंगे. खुले होंठ से निकली हुई बातों को बंद होठों की हरकतों ने पैदल कर दिया. चुंबन ने ज्ञान की हवा उड़ा दी. इसीलिए कहा जाता है संगठन में शक्ति होती है.
हम गेरे की हरकतों को हल्कापन कैसे कहें? वे एक भारी देश के प्रतिनिधि हैं. उनके यहां सामाजिक कार्य 'एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटीज' की तरह होते हैं. यह उनके लिए मौज मजे का भी साधन है. इससे उनकी कीर्ति में सितारे जुड़ते हैं. जिस किसी को जरा सा समय मिला वह निकल लेता है समाज सेवा के लिए. कुछ दिन पहले ऐसे ही एक कोई राल्फ़ फ़ेन साहब एचआईवी पर जागरुकता फैलाने के लिए आए थे. वह उसी जागरुकता अभियान के दौरान एक एअर होस्टेस के साथ असुरक्षित तरीके से फैले पाए गए. वह जिन हरकतों से बचने के लिए उपदेश देने आए थे उन्हीं असुरक्षित यौन संबंधों में लिप्त पाए गए.
इस बारे में रिचर्ड गेरे और मीडिया की खिंचाई करते हुए इतवार के हिंदुस्तान में अपने लेख 'अच्छे मकसद का तो मखौल न उड़े' में मन्निका चोपड़ा ने लिखा-
'एड्स जैसी चीजों को लेकर अगर मीडिया को शिक्षित करने की जरूरत है तो अंतर्रष्ट्रीय सेलेब्रिटी को भी शिक्षित करने की इतनी ही जरूरत है कि वे स्थानीय संवेदनाऒं का ख्याल रखें.'
हमारा देश चूंकि विकासशील देश है इसलिए हमारे यहां के लोग जब वहां जाते हैं तो महीनों घबराए से रहते होंगे कि कहीं कुछ ऐसा न हो जाए जिससे उन लोगों को बुरा लग जाए. वह चूंकि विकसित देश के प्रतिनिधि हैं लिहाजा इस डर की भावना से मुक्त रहते हैं और निर्दुंद आचरण करते हैं.
वे परदुखकातर भी हैं. हमें या और भी किसी देश की प्रगति के लिए बहुत परेशान रहते हैं. बहुत मेहनत करते हैं सारी दुनिया को अपने बराबर लाने के लिए. कहीं भी शान्ति स्थापना का कोई प्रयास वे नहीं छो़ड़ते चाहे उससे दुनिया में कितनी ही अशान्ति न फैल जाए. एक व्यक्ति, जिसे वे बुरा मानते हैं, को मारने के लिए वे करोड़ों आदमियों को मारने में नहीं हिचकते. किसी भी पिछड़े देश को विकसित बनाने का मन आ गया तो उसे अपनी विकास की जीप में बांध लेते हैं. वह देश भी उनकी विकास की जीप में बंधा, रगड़ता, घिसटता जीप की गति से प्रगति करता रहता है जैसे पुरानी जमाने में लोग अपने दुश्मनों को अपनी जीप में बांधकर जमीन में रगड़ते हुए जीप पूरे गांव में घुमाते थे. दोनों के बीच की दूरी कभी कम नहीं होती.
मीडिया से यह चूक हुई कि पूरी जानकारी नहीं दी
हुआ यह कि जब सनी देओल बता चुके थे कि एड्स कैसे होता है, इससे बचने का उपाय क्या है आदि-इत्यादि. तब किसी ने सवाल उछाला होगा- साहब आप तो यह किताबी बातें बता रहे हैं. हमें कुछ समझ में नहीं आया कि एड्स कैसे होता है?
इसके बाद ही गेरे मंच पर चढ़े होंगे और बताना शुरू किया यह देखो ऐसे होता है एडस. शुरुआत ऐसे होती है कि जैसे ही किसी को देखा बस शुरू हो गए. मीडिया वालों को भारतीय संचार माध्यम के नियमों का पता होगा. इसीलिए उन्होंने आगे की शूटिंग बंद कर दी होगी. अब जब सूटिंग बंद तो एक्शन भी बन्द हो गया होगा.
लोग उत्तेजित हुए होंगे. कुछ इस बात पर कि यह सब बेहूदगी क्यों, कैसे हुई? इसे बचाना चाहिए होने से.
दूसरी तरफ़ कुछ लोग ऐसे होंगे जिनका मानना होगा कि शूटिंग बीच में रोककर उनको एड्स जैसी लाइलाज बीमारी के चुंगल में साजिशन फंसाया जा रहा है. उनको जानकारी के अभाव में यह पता चल नहीं सका कि एडस होता कैसे है. इस तरह वे एड्स के चक्रव्यूह में फंस सकते हैं. दोनों लोगों का गुस्सा अपनी-अपनी जगह जायज था.
यही दोनों गुस्से बाद में मिलकर एक साथ मुंबई के एक चैनल के स्टूडियो में पहुंचे होगें और तोड़फोड़ की होगी. इससे यह पता चलता है एक दूसरे के धुर विरोधी भी किसी तीसरे के ऊपर गुस्सा और तोड़फोड़ में परस्पर सहयोग कर सकते हैं. यह मेलजोल की संस्कृति है जो बलवे में काम आती है.
आगे की बात आप सब जानते हो. हम अब अपने मुंह से क्या बताएं? क्या कहते हैं आप?
(अनूप शुक्ल वरिष्ठ सिविल सेवा अधिकारी हैं. वह बहुत अच्छे लेखक भी हैं. यह लेख उनकी फेसबुक वॉल से यहां साभार प्रकाशित की जा रही है. )
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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