किंग्सवे जैसा कि नाम से ही लगता है राजाओं का रास्ता और इसी से नाम पड़ा किंग्सवे कैम्प. आज भी इस क्षेत्र को लोग किंग्सवे कैम्प के नाम से पुकारते हैं और संक्षेप में कैंप नाम से जाना जाता है. 60 के दशक में इस का नाम गुरू तेग बहादुर नगर कर दिया गया, यानी जी. टी. बी. नगर. यह वह ऐतिहासिक जगह है जहां राजा भी टेंटों में रहे और शरणार्थी लोग भी. 1947 में जब देश का विभाजन हुआ उस वक्त सीमा के उस पार से शरणार्थी यहां आए और उनका सबसे बड़ा शरणार्थी कैम्प दिल्ली में यहीं पर लगा था जहां वे तम्बुओं में रहे. बाद में उनको यहां से अलग अलग क्षेत्रों में बसाया गया.
तीन बार अंग्रेजों का दरबार लगाया गया था यहां
इस से पूर्व ब्रिटिश काल में देशी रियासतों के राजा महाराजा, सामंत तथा देश में ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि एवम् विशिष्ट व्यक्तियों को दिल्ली दरबार में शामिल होने के लिए यहीं और आस पास ठहराया गया था.
दिल्ली में तीन दरबार लगे थे. पहला दरबार ब्रिटिश समय में 1 जनवरी,1877 में लगा जब महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी घोषित किया गया. उन का जश्न समारोह मनाने के लिए इस दरबार के लिए जगह ढूंढी गई कोरोनेशन पार्क. किंग्सवे कैम्प चौक से जाने वाली सड़क जो निरंकारी कॉलोनी और बुराड़ी की ओर जा रही है, उधर ही आउटर रिंग रोड से पहले बाईं ओर यह कोरोनेशन पार्क है. उस वक्त भारत के वाइसरॉय लियट्टन थे. इस दरबार में महारानी विक्टोरिया तो नहीं आईं पर वाइसरॉय लियट्टन ने प्रतिनिधित्व किया. इसमें हजारों लोग शरीक हुए जिनमें ब्रिटिश सरकार के गणमान्य व्यक्ति, सरकार के प्रतिनिधि और राजघराने के लोगों के अतिरिक्त सेना के महत्वपूर्ण व्यक्ति थे.
दूसरा दरबार इसी कोरोनेशन पार्क में 1 जनवरी 1903 में आयोजित हुआ . उस समय वाइसरॉय लॉर्ड कर्जन थे. यह आयोजन एडवर्ड सप्तम को इंडिया का सम्राट घोषित करने की खुशी में किया गया. यह आयोजन बड़े धूमधाम से हुआ.देशी रियासतों के राजा और सामंतों को भी इसमें आमंत्रित किया गया. लोगों के आवागमन के लिए एक विशेष छोटी रेल लाइन बिछाई गई. सफाई और सेनिटेशन का विशेष प्रबंध किया गया. बिजली और पानी की व्यवस्था की गई. पूरे क्षेत्र में रंगबिरंगे टेंटों को लगाया गया.
तम्बुओं का एक पूरा अस्थाई शहर बसा दिया गया जिसमें देसी रियासतों के राजा-महाराजा और ब्रिटिश सरकार के अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों को शाही शानो शौकत से ठहराया गया. पोस्ट ऑफिस, टेलीग्राम और फोन की व्यवस्था की गई. बॉल डांस, नृत्य और रंगारंग प्रोग्राम किए गए. इस की शान शौकत का मुकाबला न तो पुराना दरबार कर सका और न ही आने वाला 1911 का दरबार. इसमें एडवर्ड सप्तम तो नहीं आ सके बल्कि उनके भाई ड्यूक ऑफ कनॉट ने इसका प्रतिनिधित्व किया.
तीसरा दरबार ब्रिटिश काल में 12 दिसम्बर, 1911 में इसी कोरोनेशन पार्क में लगा जब जॉर्ज पंचम का राज्याभिषेक हुआ. इस दरबार में वह स्वयं उपस्थित हुए. उनसे मिलने देश के सभी राजा महाराजा सजधज कर शाही पोशाक और हीरे रत्नों से भरे आभूषणों को पहन कर दरबार में हाज़िर हुए. इस दरबार में भारत की राजधानी दिल्ली शिफ्ट करने की घोषणा की गई. . इससे पूर्व कलकत्ता देश की राजधानी थी . ज़रूरी था एक नई राजधानी का स्वरूप खड़ा किया जाए. इसको शिफ्ट करने की एक खास वजह थी . इससे पूर्व हिंदू , मुस्लिम और मुगल साम्राज्य के दौरान शाहजहानाबाद दिल्ली ही देश की राजधानी थी. लोगों के मन में दिल्ली दरबार का एक आकर्षण और महत्त्व हमेशा से रहा था. अंग्रेज भी इस परंपरा को निभा कर अपनी ताकत और वैभव का प्रदर्शन करना चाहते थे . साथ ही ब्रिटिश सरकार उस महत्त्व को भी बनाए रखना चाहती थी.
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अगर योजना पूरी होती तो यहां होता राष्ट्रपति भवन
दूसरा दिल्ली को राजधानी बनाने की एक वजह और थी - सुरक्षा की दृष्टि से भी दिल्ली बहुत महत्वपूर्ण थी. 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध जो विद्रोह हुआ था, उसमें अंग्रेजो की जानमाल की सुरक्षा दिल्ली में ही हुई थी. बहुत सारे अंग्रेज लोगों ने विश्वविद्यालय के रिज़ क्षेत्र में जहां फ़्लैग स्टाफ बना हुआ है वहां आकर शरण ली थी. दिल्ली में विद्रोह को दबा दिया गया था. ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि वाइसरॉय यहीं रिज क्षेत्र में रह रहे थे. वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय का कुलपति कार्यालय ही उस समय वाइसरॉय का रेजिडेंस था. इस के लिए पहले जहां दो दरबार लगे थे उसी स्थान को चुना गया कोरोनेशन पार्क.वहीं जॉर्ज पंचम का राज्याभिषेक हुआ था . इस की याद में एक शिलालेख भी लगाया गया. इस समारोह का आयोजन कई दिन तक चला. इस में आप को जानकर आश्चर्य होगा कि नई राजधानी और वाइसरॉय का निवास बनाने के लिए जो क्षेत्र चुना गया वह यही क्षेत्र था . स्वाभाविक है कि नई राजधानी के कार्यालय भी यहीं बनते. नई राजधानी और राजनिवास बनाने के लिए एक स्मृति पत्थर लगाया गया पर अफसोस कि उसके बाद इस जगह को बदल दिया गया. नई राजधानी और वाइसरॉय का नया निवास (वर्तमान में राष्ट्रपति भवन) रायसीना की पहाड़ियों पर शिफ्ट कर दिया गया. इसको शिफ्ट करने का कारण यह था कि कोरोनेशन पार्क की जगह से यमुना नदी की दूरी बहुत कम थी जहां बाढ़ आने पर पानी भर जाने का ख़तरा था. अगर प्राकृतिक आपदा का डर न होता तो आज का यह उत्तरी क्षेत्र , कोरोनेशन पार्क, किंग्सवे कैम्प, सिविल लाइंस और उस के आसपास का क्षेत्र इंडिया की राजधानी नई दिल्ली होता.
मैं न जाने कितनी बार अपने बचपन में कोरोनेशन पार्क घूमने गया होऊंगा. आज कोरोनेशन पार्क उपेक्षित पड़ा हुआ है. इसको विकसित करने की योजना भी बनी थी पर उसे अधूरा छोड़ दिया गया. अंग्रेजों के ज़माने की कई ऐतिहासिक मूर्तियां लाकर यहां इकट्ठी की गई हैं जो जर्जर अवस्था में पड़ी है. उनमें एक मूर्ति जॉर्ज पंचम की भी है यह पहले इंडिया गेट के सामने की छतरी पर लगी हुई थी . बाद में इसे उतार कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मूर्ति स्थापित की गई थी .सरकार चाहे तो कोरोनेशन पार्क को विकसित करके इस स्थान को एक अच्छा पर्यटन क्षेत्र बना सकती है.
Bihar Diwas का पहला संदेश है, “जहां रहिए अन्याय का प्रतिकार करना सीखिए”
(लेखक हरीश खन्ना दिल्ली यूनीवर्सिटी में पढ़ाते थे. यह पोस्ट उनकी फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित किया जा रहा है.)
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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