1 साल के कई बच्चों को पपेट के द्वारा एक खेल दिखाया गया. जिसमें एक पपेट को बॉल दी गयी और उसने साथ वाले को उसे पास किया, फिर साथ वाले ने अगले वाले को पास किया लेकिन तीसरे पपेट द्वारा उस बॉल को वापिस पास करने की बजाय, उसे उठाकर भागता हुआ दिखाया गया.
बाद में इन बच्चों को इन पपेट को कैंडी देने को कहा गया तो ज्यादातर बच्चों ने उस तीसरे बॉल उठाकर भागने वाले पपेट को वो कैंडी नहीं दी और बाकी दो को दी. बहुत से ऐसे भी थे जिन्होंने तीसरे वाले पपेट को सिर पर हल्का थप्पड़ भी मारा.
क्या पिछ्ले जन्म के संस्कार अंतरात्मा की आवाज़ हैं?
ऐसे ही तमाम प्रयोगों द्वारा पॉल ब्लूम ने साबित किया है कि there is an innate development of morality in children, यानी बहुत सी बातों में सही गलत जन्म से ही पता होता है. ज्यादातर बच्चे बिना फॉर्मल समझ के भी समझते हैं कि कौन सा काम सही है और कौन सा गलत. इसे ही कई दार्शनिकों ने अंतरात्मा भी कहा है और हिन्दू धर्म में इन सबको पिछले जन्म के संस्कारों से जोड़ा गया है. अब विज्ञान में भी इस बात के सबूत मिल ही रहे हैं कि बिना सिखाए भी सही गलत की एक बेसिक समझ शुरू से ही रहती है.
(आलोक वार्ष्णेय शिक्षक हैं और सोशल मीडिया पर अपने चुटीले व्यंग्यों के लिए सुख़्यात हैं.)
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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Sahi aur Ghalat : क्या बच्चों को जन्म से मालूम होता है सही ग़लत का फर्क़