- सूरज प्रकाश
एक रोचक किस्सा है. नेहरू जी जब रूस गए तो उनसे पूछा गया कि आपके यहां गरीबों और वंचितों की कहानी कहने वाला कथाकार, कलाकार, गायक, वादक और समाज सुधारक अन्ना भाऊ साठे है, कैसा है वह? नेहरू जी परेशान, परेशान हो गए. कौन है अन्ना भाऊ साठे जिसे मैं नहीं जानता और रूस वाले पूछ रहे हैं?
देश आकर वापिस आकर पता कराया. उच्च जाति के साठे लोग आम तौर पर पुणे के पास रहते हैं. सब जगह खोजा, नहीं मिले तब कहीं जा कर पता चला कि लोक कलाकार, तमाशा के उस्ताद, कथाकार, उपन्यासकार अन्ना भाऊ साठे बंबई में एक चाल में रहते हैं.
अन्ना भाऊ साठे (1 अगस्त 1920 – 18 जुलाई 1969) प्रतिबद्ध समाज सुधारक और लेखक थे. मूल नाम तुका राम, मंग जाति के दलित थे. कोई औपचारिक शिक्षा नहीं पाई थी. दूसरी कक्षा तक मुश्किल से पढ़े. वे सांगली जिले के वाटेगांव में पैदा हुए थे. ब्रिटिश सरकार उनकी जनजाति को जन्मजात अपराधी के रूप में मानती थी. गरीबी और जहालत और घुमक्कड़ी में बचपन बीता. पिता माली थे और पढ़े लिखे लोगों के जीवन की देखा देखी बच्चे को पढ़़ाना चाहते थे. अन्ना ने चौदह बरस की उम्र में स्कूल में पांव रखा लेकिन क्रूर मास्टर जी की मार ने कुछ ही दिन में बाहर का रास्ता दिखा दिया. बाकी पढ़ाई जीवन के स्कूल में, आवारागर्दी में, यायावरी में पूरी हुई.
लोक गीतों की तरफ रुझान हुआ. गजब की याददाश्त पाई थी. किस्से कहानियां सुनने सुनाने लगे. सुनने के लिए आसपास लोग जुड़ने लगे. एक बार एक मेले में क्रांतिकारी नेता नाना पाटिल को सुना तो आजादी की लड़ाई से नाता जोड़ लिया तभी पिता ने बंबई आने की ठानी तो पूरा परिवार सांगली से पैदल चल कर बंबई आया. एक चाल में रहे. अन्ना ने कुली काम किया, वेटर बने, मजदूरी की, कुत्तों की देखभाल की नौकरी की, घरेलू नौकर रहे, बूट पालिश की. फिल्में देखने का चस्का लगा.
दुकानों के बोर्ड और इधर उधर फिल्मों के पोस्टर पढ़ कर अक्षर ज्ञान करके पढ़ने और लिखने में महारत हासिल की तभी अन्ना की विचार धारा को दिशा मिली. जीवन को निकट से देखा. समाज सुधार और जाति उत्थान के लिए अपनी आवाज जन जन तक पहुंचाने के लिए उन्होंने लोक शैली पोवाड़ा और लावणी का सहारा लिया. तमाशा टोली में शामिल हुए. कोई भी भूमिका कर लेते. संवाद लिखते. हर तरह के वाद्य यंत्र बजाने में माहिर थे. वह तमाशा जगत के हीरो बन गए. जीवन की कड़वी सच्चाइयों पर नाटक लिखे. गांव की लड़की से शादी की, उससे एक बेटा भी हुआ लेकिन शादी निभ नहीं पाई. सातारा जिले के चले जाव आंदोलन से जुड़े तो गिरफ्तारी का वारंट निकला. वापिस बंबई आ गए.
पहले कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़े. पार्टी के लिए दरियां बिछाने से ले कर सारे काम किए लेकिन बाद में दलित उत्थान के काम में खुद को समर्पित कर दिया. 1944 के आसपास लिखना शुरू किया तभी एक विवाहित परित्यक्त महिला से विवाह किया. उसके संग साथ से लेखन को गति मिली. 14 लोक नाटक लिखे. कुल मिला कर 35 उपन्यास लिखे. फकीरा उपन्यास के बीसियों संस्करण निकले. उस पर फिल्म बनी. सरकार से सम्मान मिला. उनकी 15 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए. रचनाओं के रूसी, फ्रेंच और चेक सहित 27 देशी विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुए. तीसरी कोशिश और सबकी मदद से ही वे रूस जा पाए थे. लौट कर रूस की यात्रा का संस्मरण लिखा. उनकी रचनाएं दलित आत्म सम्मान और प्रतिरोध की गाथा कहती हैं. वे सामाजिक लेखक माने जाते थे. उनकी रचनाओं पर 12 सफल फिल्में बनीं.
आज़ादी की लड़ाई में, संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में और गोवा मुक्ति संग्राम में अन्ना का योगदान बहुत बड़ा है. वे लोकयुद्ध सप्ताहिक के रिपोर्टर भी रहे. अन्ना ने तमाशा को बहुत लोकप्रिय बनाया और तमाशा ने अन्ना को. जब सरकार ने तमाशा पर बैन लगा दिया और सारे कलाकार सड़क पर आ गए तो अन्ना ने बडी सफाई से तमाशा को लोक नाट्य का रूप दे कर बहुत बड़ा काम किया. अन्ना ने 250 लावणी गीत भी लिखे.
अन्ना बेहद लोकप्रिय थे. हिंदी फिल्म जगत के कई बड़े कलाकार उनकी निकटता चाहते थे लेकिन वे इतने सरल थे कि अक्सर लोग उन्हें चूना लगा जाते. वे गरीब ही रहे. 22 बरस घाटकोपर की चाल में रहे. पारिवारिक समस्याएं सिर उठाती रहीं. उधर दूसरा विवाह भी नहीं फला और अन्ना को तोड़ गया. शराब की लत लगा गया. मानसिक रोग लग गया. कई बार सड़क पर गिरे पड़े मिलते. अंतत: 1969 में यह महान कलाकार 49 बरस की उम्र में मृत्यु से हार गया. अन्ना भाऊ साठे के नाम पर मुंबई में एक उड़ान पुल (फ्लाइ ओवर) है.
(सूरज प्रकाश लेखक और अनुवादक हैं. यह लेख सूरज प्रकाश की किताब 'लेखकों की दुनिया' का अंश है और यह ओटला लाइब्रेरी के फेसबुक पेज से यहां साभार प्रकाशित किया जा रहा है.)
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