विमल कुमार
हिंदी के बदनाम पर अप्रतिम कथाकार पांडेय बेचन शर्मा उग्र के खिलाफ बनारसी दास चतुर्वेदी ने जो घासलेटी साहित्य विरोधी आंदोलन चलाया था उसके समर्थन में महावीर प्रसाद द्विवेदी जगनाथ प्रसाद चतुर्वेदी ईश्वरी प्रसाद शर्मा और हजारी प्रसाद द्विवेदी भी थे, उग्र के समर्थकों में प्रेमचन्द नवजदिक लाल श्रीवास्तव शिवपूजन सहाय और बालकृष्ण भट्ट के पुत्र भी शामिल थे. बाद में प्रेमचन्द जरूर उग्र से नाराज़ हो गए थे और इस बारे में शिवपूजन सहाय को पत्र लिखकर उग्र के आचरण की आलोचना की थी.
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उग्र वास्तव में स्वभाव से उग्र थे
प्रेमचन्द 8 माह फ़िल्म नगरी में रहे पर मुम्बई में उग्र से नहीं मिले जबकि उन्होंने उग्र की एक किताब की भूमिका भी लिखी. दरअसल उग्र किसी को भी मां बहन की गालियां देने लगते थे. निराला ने भी उग्र के इस व्यवहार की आलोचना की थी लेकिन उग्र अपने समय के सबसे बड़े बेस्टसेलर लेखक थे. प्रेमचन्द बाद में बेस्टसेलर हुए पर उग्र तो अपने जीवन मे ही बेस्टसेलर हो गए थे. 8 साल फ़िल्म नगरी में रहे और रंगीन रातें गुजरते रहे. अगर उग्र में चारित्रिक दोष नहीं होता तो उनका सम्यक मूल्यांकन होता पर उग्र को बदनाम लेखक के रूप में याद किया गया. उनके वेश्यागमन के कारण आलोचकों ने उनका तिरस्कार किया और उनके उपन्यासों और कहानियों तथा नाटकों के बारे में चर्चा नहीं हुई,जबकि उग्र आज़ादी की लड़ाई में दो बार जेल भी गए. उनकी किताब चिंगारियां जब्त हुई. कई देशभक्ति की कहानियां लिखीं.
(चॉकलेट जैसी बोल्ड कथानक के रचयिता उग्र के जीवन के इस पक्ष पर प्रकाश डालता लेखक पत्रकार विमल कुमार की फेसबुक पोस्ट )
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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उग्र - हिंदी के वे पहले लेखक जिनकी Bold Writing से साहित्यकार ही नाराज़ हो गए थे