ईद से एक दिन पहले गांव के प्राथमिक विद्यालय जाना हुआ. मेरी कुछ आस पड़ोस की चाचियां वहां बच्चों का मीड डे मील बनाने जाती हैं. मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है इसलिए मैंने साथ जाने की इच्छा जता दी. चाची जब विद्यालय चली गईं तो मैं भी उनके पीछे उस ओर चल दिया. वहाँ जाकर उनकी रसोई की तरफ गया. उस रसोई की मुझे सबसे अच्छी बात यह लगी कि वह बहुत सुव्यवस्थित थी, हालांकि बहुत बड़ी नहीं थी फिर भी देखने में घर जैसी. चाची ने बताया कि उस दिन आलू की तरी वाली सब्जी और चावल बनेंगे. हर दिन का एक अलग मेन्यू वहाँ की एक दीवार पर भी लिखा था. जिसमें सुबह दूध व केले आदि का वितरण भी शामिल है. वहां खाना बनाने की तैयारी शुरु हुई और आलू की सब्जी के लिए आलू छीलकर व काटकर एक ओर रख दिए गए. मैं चाहता था कि सब्जी मैं छोंकूं तो मुझे चमचा मुझे पकड़ा दिया गया. और मुझे उनके साथ उस प्रकरण में अपनी पसंदीदा चीज़ की हिस्सेदारी मिल गई.
यह सभी बच्चों के लिए मां के हाथ के खाने जैसा होता है
इस मिड डे मील की सबसे ख़ास बात यह थी कि यह दिल्ली या शहरों के विद्यालयों की तरह कहीं बाहर से तैयार होकर नहीं आता. न ही वहां की तरह इसे तैयार किया जाता है. गांव की ही कुछ औरतों को इस काम के लिए लगाया गया है. जिनके ख़ुद के बच्चे भी उसी विद्यालय में पढ़ते हैं. इसलिए यह खाना उन बच्चों के लिए जब बनाया जाता है तो यह सभी बच्चों के लिए मां के हाथ के खाने जैसा होता है. और वे मांएं भी इसे बड़े अपनेपन से बनाती हैं. इस खाने को तैयार करने के बाद प्रिंसिपल मै'म से मिलना हुआ. उनसे मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई. उन्होंने बताया कि गांव के बहुत से बच्चे बहुत प्रतिभावान हैं पर सुविधाओं की वजह से पीछे रह जाते हैं. उन्होंने बताया कि वे अपने विद्यालय के बच्चों के लिए अलग-अलग समय पर कैंप और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन अपने खर्चे पर करती हैं. उनसे बात करते हुए लगा कि ऐसे और लोगों की ज़रूरत हमारे विद्यालयों को है.
Life : किसी और के शक की वजह से कड़वी होती स्मृतियां
(अंकुश युवा कवि हैं, साथ ही हिंदीनामा सरीखे बेहद प्रसिद्द वेबसाइट के संस्थापक भी हैं. अंकुश भाषा के विभाग में युवा इन्फ्लुएंसर हैं. )
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