- मनोरमा सिंह
गांधी जी ने हिटलर को दो चिट्ठी लिखी थी एक 1939 में और दूसरी 1940 में. दोनों में उन्होंने हिटलर को प्रिय मित्र लिखा था हालांकि वो कभी मिले नहीं थे.
पहली चिट्ठी में महत्वपूर्ण बात थी हिटलर को युद्ध नहीं होने देने के लिए अपील करना और कहना, 'दो ही लोग फिलहाल युद्ध से मानवता को बचा सकते हैं एक ईश्वर दूसरा हिटलर.' गांधी ने कुछ हिचक के साथ यह पत्र लिखा था लेकिन शायद उनकी सोच रही हो कि जो व्यक्ति युद्ध का कारण है उससे ही युद्ध नहीं होने देने की अपील करनी चाहिए !
खैर, अपने दूसरे पत्र में उन्होंने हिटलर को लिखा था, 'प्रिय मित्र,मैं आपको एक मित्र के रूप में संबोधित करता हूं, यह कोई औपचारिकता नहीं है. मेरा कोई शत्रु नहीं है. पिछले 33 वर्षों में मेरा यही काम रहा है. जाति, रंग या नस्ल से इतर मानवजाति से मित्रता करके पूरी मानवता से दोस्ती करना. मुझे आशा है कि आपके पास यह जानने का समय और इच्छा होगी कि मानवता का एक अच्छा हिस्सा जो सार्वभौमिक मित्रता के सिद्धांत के प्रभाव में रह रहा है, आपके कार्य को कैसे देखता है. हमें आपकी वीरता या आपकी अपनी ज़मीन के प्रति समर्पण पर कोई संदेह नहीं है, और न ही हम मानते हैं कि आप अपने विरोधियों द्वारा वर्णित राक्षस हैं. आपका अपना लेखन और घोषणाएं, साथ ही आपके मित्रों और प्रशंसकों की बातों से संदेह ही गुंजाइश नहीं रह जाती है कि आपके कई कार्य राक्षसी हैं और मानवीय गरिमा के लिए अशोभनीय हैं. खासकर मेरे जैसे व्यक्तियों के लिए जो सार्वभौमिक मित्रता में विश्वास रखते हैं. चेकोस्लोवाकिया के लोगों का आपके द्वारा अपमान, पोलैंड में बलात्कार की घटनाएँ और डेनमार्क को लगभग निगल जाना... मुझे पता है कि जीवन के बारे में आपका नज़रिया तरह के छल-कपट को नेक कार्य मानता है लेकिन हमें बचपन से ही इन्हें मानवता-विरोधी कृत्य के रूप में देखना और मानना सिखाया गया है.
हमारे ऊपर शासन करने वालों के पास हमारी आत्मा नहीं है
इसलिए हम संभवतः आपकी सफलता की कामना नहीं कर सकते लेकिन हम अजब स्थिति में हैं. हम ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विरोध किसी नाज़ीवाद से कम नहीं करते हैं. यदि कोई अंतर है, तो वह डिग्री में है. मानव जाति के पांचवें हिस्से को अंग्रेजी हुकूमत की दबिश के नीचे लाया गया है. हमारे प्रतिरोध का मतलब ब्रिटेन के लोगों को नुकसान पहुंचाना नहीं है. हम उन्हें युद्ध के मैदान में हराने के लिए संघर्षरत नहीं हैं, बल्कि हम उनका तरीका परिवर्तित करना चाहते हैं. हमारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ निहत्था विद्रोह है लेकिन हम उनका मन परिवर्तन करें या न करें, हम अहिंसक असहयोग से उनके शासन को ख़त्म करने के लिए कृतसंकल्प हैं. यह अपनी प्रकृति में बचाव विधि है. हम यह मानते हैं कि कोई भी लुटेरा पीड़ित के इच्छित या अनिवार्य सहयोग के एक निश्चित अंश के बिना आधिपत्य नहीं कर सकता है. हमारे ऊपर शासन करने वालों के पास हमारी जमीन और शरीर हो सकते हैं पर हमारी आत्मा नहीं.
(लिखते पढ़ते जिन बातों पर ठहर कर सोचना जरूरी लगता है इसलिए लिखा और शेयर किया, पूरी चिट्ठी गूगल पर पढ़ सकते हैं)
( यह आलेख मनोरमा की फ़ेसबुक वॉल से लिया गया है. मनोरमा पत्रकार हैं. सोशल मीडिया पर भिन्न मुद्दों पर खुलकर लिखती रहती हैं. )
(यहां दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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