आसावरी तुम सिर्फ़ नाम के राग नहीं हो

इतना तो प्रकृति में आकर संभव हुआ कि मैं अपने खोये हुए छंद के बारे में सोच रहा हूं.उसे कविता में ढ़ूंढता प्रकृति के संगीत, नृत्य,चित्रकला और नारायण के अमूर्त शिल्प तक चला जाता हूं.अभी तो शीत ऋतु है.अभी इसी के छंद में प्रकृति मगन मन है.मैं इसके अनंत सौंदर्य में अभिव्यक्त छंद के 'सा' की इबादत में आकुल हूं. मैं उसके रूप को देखने को व्याकुल भटक रहा हूं.यह भटकन कल्पना के साथ जुगलबंदी में है. 'सा' की एक धुंधली सी आकृति धरती से अंतरिक्ष तक चेतना में तैर रही है.यह विलक्षण और अविश्वसनीय अनुभूति है.

कसौल का हरा सेब

कसौल  में एक हरा सेब तोड़ा फिर दांतों से पहले हल्का सा काटा,यह जानने को कहीं खट्टा न हो.वह मीठा था.कम होती चीनी का अहसास तेज़ी से जाता रहा. मेरी चाल की सुस्ती ,मस्ती में बदल रही थी.मेरे भीतर सेब की रस भरी मीठी-सुरीली वाद्य रचना बज उठी थी.रास्ते में भागती  हिमाचली बच्ची की हंसी के झरने में भीगता ,उसकी गति के साथ बच्चा होने में डूब गया.

मैं वैसा हंसा जैसा  मेरा बचपन हंसा करता था .मैंने फुटपाथ पर शंभु के लज़ीज़ मोमो खाये और जर्म़न बेकरी का मशहूर ज़ायका मुंह में बसा लिया.

पानी का बहना

मैं बहते हुए जल के पास जाता हूं.जल में पूरा पहाड़़ तैर रहा है.जल नीले से हरा हो गया.सूरज दमकता है तो उसकी किरनों में हरा सुनहरा हो जाता है.मैं सुनहरी मछली को देखता चमत्कृत हूं.पत्थर सुनहरे होकर पनियाली आभा में सुनहरे हैं. यानि सूरज पानी में नहाता,पानी को सुनहरा बना रहा है.बादलों की छांह में सूरज के नीले और हरे होने को पल-छिन देखता हूं.यह मेरी चेतना का भी नीला,हरा और सुनहरा होना है.

खाली की मात्राएं ताली की जुगलबंदी

नर्तक को ताल देने के लिए ताली को निश्चित मात्राओं की गणित में उपयोग में लाते हैं.उन मात्राओं को पढ़़कर बजाया जाता है.जितनी ताली उतनी खाली भी गणित में रखनी होती हैं. खाली में कुछ भूल हो जाए तो ताल ही नहीं पूरा नृत्य बेताला हो जाता है.जीवन यहां अपनी ताल में होकर भी बेताला ह़ो रहा है.दुनिया कहती है ताली ठीक

मात्राओं में है लेकिन खाली की मात्राएं ताली की जुगलबंदी से भटक रही है. कितने जंगल ,कितनी नदियां,कितने पशु-परिंदें ताली की गणित से बाहर हो रहे हैं.विस्फोटों में किनके रोने की आवाज़ें हैं.कितनी ताल यहां ताली और खाली से बाहर हो रही हैं. एक दिन मैं भी इस नामुराद जगत में अपनी ताली और खाली को खोज रहा होऊंगा.

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आसावरी को बार-बार सुनता हूं.हर बार प्रसन्नता में करुणा का अहसास.करुणा का रंग इतना गहरा कि

प्रसन्नता का अनुवाद अनुभव भी करुण.मन लेकिन

आसावरी में सुकूनबख़्श और आविष्ट इस क़दर कि

कोई और नहीं.आसावरी तुम सिर्फ़ एक नाम के राग

नहीं हो.जीवन की प्रसन्न करुणा हो.हर पत्ती से उतरते. हर फूल पर आलोकित.पार्वती की हर लहर से नमतर होता.

 

(प्रसिद्ध कवि लेखक लीलाधर मंडलोई की वॉल से उनके सुन्दर यात्रा संस्मरण का एक भाव-प्रवण हिस्सा)

 

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travelogue of parvati valley by Leeladhar Mandloi
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पार्वती वैली और कसौल के बहाने
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Hindi
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kasol in himachal
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