किताबों में बहुत सी कहानियां मिलती हैं और कुछ किताबों की भी अपनी कहानी होती है...जैसे इस किताब की!

एक थे राजकुमार भैया, गहरे सांवले और छोटे कद के भैया बड़े सज्जन और निर्मोही किस्म के जीव थे. स्कूल में हमसे दो साल सीनियर, उनसे कई साल छोटे लड़के भी, "मेरे देश का राजू, खाए काजू...." गा गाकर उन्हें छेड़ते रहते, लेकिन भैया के कान पर जूं भी न रेंगती. खुद उनका व्यक्तित्व बड़ा सिकुड़ा सिमटा सा था, लेकिन उन्हें तमाम प्रसिद्ध व्यक्तित्व और उनके जीवन परिचय रटे हुए थे. कभी किसी महापुरुष की जयंती या पुण्यतिथि होती, प्रार्थना के समय भैया को खड़ा कर दिया जाता कि, दो शब्द आप इनके बारे में बोलिए! और भैया तब तक वे दो शब्द बोलते रहते जब तक श्रोता सुनने से इनकार न कर दें. छात्र हूटिंग करते, छात्राएं खी खी हंसतीं और शिक्षकगण आंखें दिखाते. फिर एकाध कोई शिक्षक जाकर भैया को ससम्मान मंच से उतार देता.

apoorva

गूगल नहीं था पर भैया का ज्ञान था

तब न गूगल था न गांव में कोई ढंग का पुस्तकालय, लेकिन राजकुमार भैया न जाने कहां से सारी जानकारियां इकट्ठी करते रहते. स्कूल में भी हर समय कुछ न कुछ पढ़ते रहते, (पढ़ते समय अक्सर उनसे पूछा जाता, कोर्स की किताब है राजू? राजू नकार में सिर हिला देते.) तब गांव में एकाध ही कोई बाल पत्रिका उपलब्ध हो पाती थी, लेकिन भैया के पास न जाने कहां से नई नई किताबें आती रहतीं. और यही किताबें पढ़ते पढ़ते राजकुमार भैया दो साल में, हमारे सीनियर से सहपाठी बन गए.

ग्यारहवीं कक्षा में एक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता आयोजित की गई, हम वह जिला मुख्यालय स्थित बड़े सरकारी स्कूल में गए हुए थे, अपनी स्मरण प्रतिभा के बल पर राजकुमार भैया ऐसी हर प्रतियोगिता में वांछित प्रतिभागी रहते, सो लड़कों की टीम में चुन लिए गए.

समोसे के चक्कर में मिली किताब

हम सब अपनी प्रतियोगिता शुरू होने की प्रतीक्षा कर ही रहे थे, कि भैया को भूख लग आई. बाहर जाकर समोसे खरीद लाए. अब पैकेट था एक खाने वाले सात आठ, बांटें कैसे? भैया ने थैले से किताब निकाली और उसका पन्ना फाड़ने को उद्यत हुए कि मेरी दृष्टि किताब के नाम पर पड़ी, उपन्यास सम्राट का ऐसा अपमान! और मैंने चील की तरह झपट्टा मार कर किताब भैया के हाथ से छीन ली!

भैया मुस्कुराए और संन्यासी की सी विरक्ति से यह उपन्यास मेरे हाथ में थमा दिया.  पन्ना पन्ना फटा हुआ ये, उपन्यास इस तरह ये मेरे निजी संग्रह का पहला उपन्यास बना! राजकुमार भैया जहां भी हों भगवान आपको सुखी रखे.

 

यह भी पढ़ें –

पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अरब मुल्कों में भी कभी सबके जुबान पर था यह गीत

'बेनाम औरतों को Facebook ने दिया नाम, अब मिली अपनी पहचान'

(अपूर्वा पढ़ती-लिखती हैं. सुरुचि-सम्पन्न अनुवादक भी हैं. )

(यहां दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

Url Title
a few books have their own stories by Apoorva Anitya
Short Title
कुछ किताबों की भी अपनी कहानी होती है!
Article Type
Language
Hindi
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
book by premchand
Date updated
Date published