क्या इस्मत आपा की लिहाफ़ स्त्री समलैंगिकता की कथा है? मेरी दृष्टि में उसमें मूल स्वर बाल यौन शोषण का है. जिसे एक स्त्री ही करती है.

आप सबको हैरानी होगी लेकिन दुबारा ध्यान से उसे पढ़िए. एक बच्ची की नज़र से लिखी कहानी में फ्लैशबैक से सारी बातों को याद किया जा रहा है. बेग़म साहिबा से हम सहानुभूति रखने वाले बनते हैं क्योंकि गरीबी में उनका विवाह एक ऐसे अमीर आदमी से हो जाता है जो समलैंगिक है. अब यहाँ नवाब साहब की समलैंगिकता स्वाभाविक है. उनका विवाह करना सामाजिकता का प्रभाव है. समाज की बनावट ऐसी है. लेकिन बेग़म साहिबा तो दैहिक संतुष्टि के अभाव में समलैंगिक संबंध की ओर बढ़ी. उनकी साथिन रब्बो भी एक बच्चे की मां है. बेग़म साहिबा की सतत बीमारी क्या है?

इस्मत के शब्दों में - "बेगम जान को खुजली का मर्ज़ था. बेचारी को ऐसी खुजली होती थी और हज़ारों तेल और उबटन मले जाते थे मगर खुजली थी कि क़ायम."

लेखिका इन पंक्तियों से क्या इशारा कर रही हैं?

मुझे तो इस्मत इस कहानी में बड़ी बोल्ड नज़र आती हैं क्योंकि उन्होंने बहुत शाइस्तगी से, तमाम इशारों से जताया है कि स्त्री के भीतर जो जिस्मानी जरूरत होती है उसका अधूरा रह जाना उसे कैसे बेचैन बनाता है.

Tomb Of Sand : बुकर पुरस्कार विजेता किताब ‘रेत समाधि’ पर आलोचक आशुतोष कुमार की समीक्षा

"जब देखो रब्बो कुछ न कुछ दबा रही है, या मालिश कर रही है. कोई दूसरा होता तो न जाने क्या होता. मैं अपना कहती हूं, कोई इतना छुए भी तो मेरा जिस्म सड़-गल के ख़त्म हो जाए. "

यह क्या कोई सामान्य बात है?

तो यूं समझिए जिस जिस्मानी जरूरत को नवाब साहब पूरा न कर सके और जिसके पूरा होने का और जरिया बेग़म जान को न मिला उसकी छटपटाहट में वे रब्बो से यह सब करवाती हैं. यह एक स्वस्थ समलैंगिक संबंध नहीं.

लेस्बियन लड़कियां सिर्फ सेक्स के लिए एक दूसरे से नहीं जुड़तीं, न ही वे मर्दों के अभाव में आपस में संबंध बनाती हैं. जैसे एक स्त्री और पुरुष को एक दूसरे से प्रेम होता है और वे प्रेम में दैहिक रूप से जुड़ते हैं वैसे ही स्त्रियां जो स्त्रियों को पसंद करती हैं या पुरूष जो पुरुषों को चाहते हैं. इस कहानी में दो स्त्रियों के जिस्मानी संबंधों का ज़िक्र है पर वह समलैंगिक प्रेम या एक जोड़े की कहानी कतई नहीं.

...

दूसरी बात जो मुझे लगता है कि वह बाल यौन शोषण की कहानी है, कैसे?

याद कीजिए जब रब्बो दो दिन के लिए गायब होती है और बेगम साहब बेचैन रहती हैं (सारा दिन बेगम जान परेशान रहीं. उसका जोड़-जोड़ टूटता रहा. किसी का छूना भी उन्हें न भाता था. उन्होंने खाना भी न खाया और सारा दिन उदास पड़ी रहीं.)

 तो ऐसे में हमारी नैरेटर जो बच्ची है, अपनी मासूमियत में  उनसे कहती है-

“मैं खुजा दूँ सच कहती हूँ.”

उसके बाद जो हुआ उसमें आगे की पूरी घटना बाल यौन शोषण की है.

पूरी कहानी आप पढ़िए पर पीठ खुजाती बच्ची को फ्रॉक का लोभ देने के बाद बेगम साहिबा क्या करती हैं, पढ़िए

" इधर आ कर मेरे पास लेट जा” उन्होंने मुझे बाज़ू पर सर रख कर लिटा लिया.

“ऐ हे कितनी सूख रही है. पसलियां निकल रही हैं.” उन्होंने पसलियां गिनना शुरू कर दीं.

“ऊँ” मैं मिनमिनाई.

“ओई तो क्या मैं खा जाऊँगी कैसा तंग स्वेटर बुना है!” गर्म बनियान भी नहीं पहना तुमने मैं कुलबुलाने लगी. “कितनी पसलियां होती हैं?” उन्होंने बात बदली.

“एक तरफ़ नौ और एक तरफ़ दस” मैंने स्कूल में याद की हुई हाई जीन की मदद ली. वो भी ऊटपटांग.

“हटा लो हाथ हां एक दो तीन.”

मेरा दिल चाहा किस तरह भागूं और उन्होंने ज़ोर से भींचा.

“ऊं” मैं मचल गई, बेगम जान ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगीं. अब भी जब कभी मैं उनका उस वक़्त का चेहरा याद करती हूँ तो दिल घबराने लगता है. उनकी आँखों के पपोटे और वज़नी हो गए. ऊपर के होंट पर सियाही घिरी हुई थी. बावजूद सर्दी के पसीने की नन्ही-नन्ही बूंदें होंटों पर और नाक पर चमक रही थीं. उसके हाथ यख़ ठंडे थे. मगर नर्म जैसे उन पर खाल उतर गई हो. उन्होंने शाल उतार दी और कारगे के महीन कुरते में उनका जिस्म आटे की लोनी की तरह चमक रहा था. भारी जड़ाऊ सोने के बटन गिरेबान की एक तरफ़ झूल रहे थे. शाम हो गई थी और कमरे में अंधेरा घट रहा था. मुझे एक न मालूम डर से वहशत सी होने लगी. बेगम जान की गहरी-गहरी आंखें. मैं रोने लगी दिल में. वो मुझे एक मिट्टी के खिलौने की तरह भींच रही थीं. उनके गर्म-गर्म जिस्म से मेरा दिल हौलाने लगा मगर उन पर तो जैसे भुतना सवार था और मेरे दिमाग़ का ये हाल कि न चीख़ा जाए और न रह सकूं. "

इसे पढ़कर कोई भी नहीं कह सकता है कि यह किसी बड़े द्वारा एक बच्चे के शोषण के बारे में नहीं. लेकिन हम सब स्त्री-दैहिकता और हाथी से झूमते लिहाफ़ के भीतर क्या दिखा इसकी जुगुप्सा में इतने खो गए कि शायद इस पार्ट को हमने बेख्याल कर दिया. या हमारा मानना है कि स्त्री तो बच्चे का उत्पीड़न कर ही नहीं सकती. जो भी हो लिहाफ़ सदा से मुझे सेक्स-डिप्राइव कुलीन स्त्री के हिंसक रूप और बच्चों की बेबसी की कहानी लगती है.

May be an image of 1 person, standing, outdoors and tree

(सुदीप्ति लिखती हैं. उनकी आलोचना की एक पुस्तक खूब पढ़ी जा रही है. यह उनके नज़रिए से मशहूर लिहाफ कहानी का नया पाठ है. )

(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.

Url Title
Feminism & Literature new reading of famous story Lihaf ismat chugtai by sudipti
Short Title
इस्मत चुगताई की कहानी लिहाफ का नया पाठ
Article Type
Language
Hindi
Tags Hindi
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
लिहाफ
Date updated
Date published
Home Title

इस्मत चुगताई की कहानी लिहाफ का नया पाठ