उन्मुक्त और बेबाक स्वर के लिए मशहूर लेखिका लिली रे की बड़ी ख़ासियत यह है कि उनके पात्र इन्सानी जज़्बात से ख़ाली नहीं होते. अपने समय-समाज की ख़ूबियों और ख़ामियों से भरे आम इन्सान की ख़ास रचनाएं देने वाली इस सजग लेखिका की बोल्डनेस हमेशा चर्चा में रही. दामाद के साथ हमबिस्तर होने वाली (काम-सम्बन्ध के आनंद को समझने वाली) मैथिल स्त्री की यादगार कहानी 'रंगीन पर्दा' ने इन्हें 'लिहाफ़' की लेखिका इस्मत चुगताई की क़तार में लाकर खड़ा कर दिया. जिस मिथिला में आज भी कोहबर घर और पतिव्रता स्त्री की कहानियों का चलन ख़त्म नहीं हुआ हो, वहां लिली रे जैसी साहसी लेखिका का होना किसी घटना से कम नहीं.
इनकी नायिका ट्रक ड्राइवर के साथ सफ़र करती है, रेडलाइट एरिया में अकेली घूमती है और अपना जीवन अपने हिसाब से गढ़ने का निर्णय बिना किसी 'मैथिल झिझक' लेती है. इनके यहां नक्सलियों के घर-परिवार के यथार्थ चित्रण हैं, भूमि-समस्या और बढ़ते जनाक्रोश को शब्द दिए गए हैं, ढहते सामंती मानस-मूल्यों के यक़ीनन यादगार चित्रण हैं.
इनके ढेर सारे लेखन में से 'मरीचिका' खंड1 और 'पटाक्षेप' जैसे कुछ उपन्यास और लगभग एक दर्जन ऐसी कहानियां हैं जो मैथिल कुलीनतावादियों की तमाम अनिच्छाओं के बावजूद लम्बे समय तक पढ़ी और सराही जाती रहेंगी.
साहसी लेखिका लिली रे की स्मृति को नमन.
गौरीनाथ लेखक सह अंतिका प्रकाशन के सम्पादक हैं. मैथिली और हिंदी, दोनोंं भाषाओं में गौरीनाथ जी साधिकार लिखते हैं.
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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