डीएनए हिंदी: चीन लगातार दावा करता है कि ताइवान उसका हिस्सा है. इस वजह से चीन और अमेरिका के बीच कई बार तनाव देखने को मिला है. अमेरिका अपने नेताओं को ताइवान के दौरे पर भेजकर उसे अपना समर्थन होने का संदेश देता रहता है. इस तरह के दौरों पर हमेशा चीन की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया आती है. इस बीच ब्रिटेन के एक अखबार में एक रिपोर्ट छपी है जिसके मुताबिक ये शक पैदा होता है कि क्या अब चीन ने ठान लिया है कि वो भी ताइवान पर हमला करने वाला है.
विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने के लिए चीन उठा रहा है कदम
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ऐसे कदम उठा रहा है जिनसे वो अपनी अर्थव्यवस्था को ऐसे प्रतिबंधों से बचा सके जैसे यूक्रेन पर हमला करने के एवज में पश्चिमी देशों ने रूस पर लगाए हैं. दरअसल चीन के पास 3.2 खरब (TRILLION) डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है. अगर रूस जैसे प्रतिबंध चीन पर लगते हैं तो वो अपने इस विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा. इसलिए खुद को इस संकट से बचाने के लिए चीन ने कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. जिसके बाद ये सवाल खड़ा हो गया है कि क्या चीन भी रूस की तरह ताइवान पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा है.
बैंकों के अधिकारियों के साथ आपात बैठक
22 अप्रैल को चीनी सरकार ने एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग में चीन की सेंट्रल बैंक के अधिकारी, चीन के वित्त मंत्रालय के अधिकारी, चीन के अंदर ऑपरेट करने वाली बैंकों के अधिकारी और HSBC जैसी अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर ऑपरेट करने वाली बैंकों के अधिकारी शामिल थे.
क्या इंटरनेशल बैन सह पाएगा चीनी बैंकिग सिस्टम?
1949 से ताइवान में एक अलग सरकार काम कर रही है बावजूद इसके चीन ताइवान को अपना एक हिस्सा बताता है. ऐसा माना जा रहा है कि अगर ताइवान में चीन घुसपैठ करता है तो अमेरिका चीन पर भी उसी तरह के प्रतिबंध लगाएगा जैसे रूस पर लगाए गए हैं. जानकारों का मानना है कि जिस तरह रूस को SWIFT से बाहर कर दिया गया है, रशिया के डॉलर, एसेट्स को फ्रीज़ किया गया है अगर इसी तरह चीन के साथ किया जाता है तो चीन का बैंकिंग सिस्टम इससे निपटने के लिए तैयार नहीं है.
ये रास्ते हैं चीन के सामने
चीन अपनी मौजूदा यूएस डॉलर होल्डिंग्स के अनुपात में ही अपनी करेंसी का सर्कुलेशन बढ़ाने की संभावनाओं को तलाश रहा है. जिसके लिए चीन अपने व्यापारियों को मजबूर करे चीन की करेंसी के बदले अपने डॉलर होल्डिंग्स को छोड़ने को विविश कर सकता है. चीन अपने नागरिकों को हर साल 50 हजार यूएस डॉलर तक विदेश यात्रा, शिक्षा और ऑफ्शॉर (Offshore) खरीद पर खर्च करने की छूट देता है.
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इस छूट को कम करके अपनी करेंसी के सर्कुलेशन को बढ़ाने की कोशिश की जा सकती है. यूएस डॉलर होल्डिंग्स को यूरो में बदलने को भी एक सॉल्यूशन के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन जानकारों का मानना है कि ये प्रैक्टिकल नहीं है. हालांकि चीन में कुछ जानकारों का मानना है कि अमेरिका के अंदर वो क्षमता नहीं है कि वो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर उस तरह से प्रतिबंध लगा सकता है जैसे रशिया पर लगाए हैं. इससे अमेरिका और चीन दोनों को ही नुकसान होगा.
(पुष्पेंद्र कुमार की रिपोर्ट)
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