डीएनए हिंदी: श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे 45 साल से संसद में हैं. वकील से नेता बने विक्रमसिंघे ने अगस्त 2020 में हुए आम चुनाव में अपनी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के हारने और एक भी सीट न जीत पाने के लगभग दो साल बाद उल्लेखनीय रूप से वापसी की है. भारत के करीबी माने जाने वाले 73 वर्षीय नेता को देश में सबसे खराब आर्थिक संकट के बीच राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंका का 26वां प्रधानमंत्री नियुक्त किया है.
उन्हें राजनीतिक हलकों में व्यापक रूप से एक ऐसे व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया जाता है जो दूरदर्शी नीतियों से अर्थव्यवस्था का प्रबंधन कर सकता है.उनकी नियुक्ति ने नेतृत्व के शून्य को भरा है क्योंकि श्रीलंका में सोमवार से तब से सरकार नहीं थी जब गोटबाया के बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने अपने समर्थकों द्वारा सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला किए जाने से भड़की हिंसा के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था. आइए 5 पॉइंट्स में आपको बताते हैं रनिल विक्रमसिंघे का पीएम बनना श्रीलंका के लिए क्यों है महत्वपूर्ण.
- विक्रमसिंघे को श्रीलंका में ऐसा नेता माना जाता है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग की कमान संभाल सकते हैं. उन्होंने अपने साढ़े चार दशक के राजनीतिक करियर के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है.
- उन्होंने श्रीलंका के निकट पड़ोसी भारत के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाए और प्रधानमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान चार अवसरों - अक्टूबर 2016, अप्रैल 2017, नवंबर 2017 और अक्टूबर 2018 में देश का दौरा किया. इसी अवधि के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका की दो यात्राएं कीं और उन्होंने विक्रमसिंघे के एक व्यक्तिगत अनुरोध का भी जवाब दिया जो द्वीपीय राष्ट्र में 1990 एम्बुलेंस प्रणाली स्थापित करने में मदद करने के लिए था. यह मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल सेवा कोविड-19 के दौरान श्रीलंका में बेहद मददगार साबित हुई.
- तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के विरोध के बावजूद विक्रमसिंघे ने कोलंबो बंदरगाह के पूर्वी टर्मिनल पर भारत के साथ समझौते का समर्थन किया था जिसे राजपक्षे ने 2020 में खारिज कर दिया था. उनकी पार्टी यूएनपी देश की सबसे पुरानी पार्टी है जो 2020 के संसदीय चुनाव में एक भी सीट जीतने में विफल रही थी. 1977 के बाद यह पहली बार हुआ जब उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली. यूएनपी के मजबूत गढ़ रहे कोलंबो से चुनाव लड़ने वाले विक्रमसिंघे खुद भी हार गए थे. बाद में वह सकल राष्ट्रीय मतों के आधार पर यूएनपी को आवंटित राष्ट्रीय सूची के माध्यम से संसद पहुंच सके थे.
- श्रीलंका के पहले कार्यकारी राष्ट्रपति जूनियस जयवर्धने के भतीजे विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदास की हत्या के बाद पहली बार 1993-1994 तक प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था. वह 2001-2004 तक भी तब प्रधानमंत्री रहे जब 2001 में संयुक्त राष्ट्रीय मोर्चा ने आम चुनाव जीता था. लेकिन चंद्रिका कुमारतुंगा द्वारा जल्द चुनाव कराए जाने के बाद, 2004 में उन्होंने सत्ता खो दी. प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने लिट्टे के साथ शांति वार्ता शुरू की, यहां तक कि सत्ता-साझाकरण सौदे की पेशकश भी की.कुमारतुंगा और महिंदा राजपक्षे ने उन पर लिट्टे के साथ बहुत नरमी बरतने और उसे बहुत अधिक रियायतें देने का आरोप लगाया था.
- विक्रमसिंघे ने 2015 के चुनाव में महिंदा राजपक्षे को करारी शिकस्त दी थी और अल्पमत सरकार का नेतृत्व किया था. वर्ष 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति सिरिसेना ने प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया और महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया. सिरिसेना के इस कदम से देश में संवैधानिक संकट पैदा हो गया. हालांकि, उच्चतम न्यायालय के एक फैसले ने राष्ट्रपति सिरिसेना को विक्रमसिंघे को बहाल करने के लिए मजबूर कर दिया, जिससे राजपक्षे का संक्षिप्त शासन समाप्त हो गया. श्रीलंका को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद 1949 में जन्मे विक्रमसिंघे 1977 में 28 साल की उम्र में संसद के लिए चुने गए थे. वह विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) की यूथ लीग में शामिल हो गए थे. उस समय श्रीलंका में सबसे कम उम्र के मंत्री के रूप में, उन्होंने राष्ट्रपति जयवर्धने के अधीन उप विदेश मंत्री का पद संभाला था.
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