डीएनए हिंदी: श्रीलंका (Sri Lanka) की अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. श्रीलंका पर विदेशी कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया है जिसे वह अगर चाहे भी तो चुका नहीं सकता है. आर्थिक स्थिति गर्त में पहुंच गई है और भारत को छोड़कर किसी बड़े देश ने मदद भी नहीं की है जिससे वह अपने हालात को सामान्य कर सके.
श्रीलंका के आर्थिक संकट पर वरिष्ठ लेखक और पत्रकार सुधीर सक्सेना ने शरत कोनगहगे से विस्तृत बातचीत की है. सुधीर सक्सेना माया और दुनिया इन दिनों के संपादक रह चुके हैं. वहीं शरत कोनगहगे श्रीलंका के सबसे पुराने और सबसे बड़े समाचार पत्र समूह लेकहोज के संपादकीय निदेशक और कार्यकारी अध्यक्ष रहे हैं. श्रीलंका संकट पर जब उनसे सवाल किया गया तो उन्होंने विस्तार से इसकी वजह बताई.
Sri Lanka के आर्थिक संकट की वजह क्या है?
सुधीर सक्सेना: क्या इस संकट से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है?
शरत कोनगहगे: निश्चित रूप से हां. अर्थव्यवस्था न केवल अपंग हो गई है बल्कि बहुत नीचे तक जा धंसी है. हम इस समय सुधारात्मक उपायों की विभिन्न संभावनाओं को गंभीरता से देख रहे हैं, जिसमें आईएमएफ, विश्व बैंक और अन्य पूंजी बाजारों में जाना और भारत सहित मित्र देशों के साथ द्विपक्षीय बातचीत शामिल है.
सुधीर सक्सेना: श्रीलंका पर 4 अरब डॉलर का कर्ज है. आखिर इसे कैसे चुकाया जा सकेगा, श्रीलंका को इस कर्ज के जाल में किसने धकेला?
शरत कोनगहगे: श्रीलंका का कर्ज इससे कहीं ज्यादा है. दिसंबर 2020 में हमारा बाहरी कर्ज 49.2 अमरीकी डॉलर पर पहुंच गया. यह दो वर्षों में 175 प्रतिशत की भारी वृद्धि है. देश का कुल कर्ज अब 2.66 लाख करोड़ रुपये हो चुका है. जानकारों का कहना है कि अकेले राजपक्षे सरकार की दोषपूर्ण नीतियां इस मौजूदा संकट के लिए जिम्मेदार हैं.
सुधीर सक्सेना: श्रीलंका के 297 रुपये एक डॉलर के बराबर हैं. विदेशी मुद्रा भण्डार में 70 फीसदी की गिरावट भी चिंताजनक है. श्रीलंका इससे खुद को कैसे बचा सकता है?
शरत कोनगहगे: आज एक अमेरिका डॉलर 297 श्रीलंकाई रुपये के नहीं, बल्कि 321 रुपये के बराबर है. ऐसा पूर्वानुमान है कि निकट भविष्य में यह 400 रुपये तक पहुंच जाएगा. वित्त मंत्रालय और केंद्रीय बैंक की गलत राजकोषीय नीतियों के परिणामस्वरूप यह संकट पैदा हुआ, जिसमें सुधार के दृष्टिगत अब सेंट्रल बैंक के लिए एक विशेषज्ञ नए गवर्नर के साथ ही वित्त मंत्रालय के एक सचिव की नियुक्ति हुई है.
वित्त मंत्री को भी हटा दिया गया है और उनकी जगह एक नए व्यक्ति की नियुक्ति के लिए कहा गया है. रुपये के मुकाबले ढाई साल तक डॉलर को कृत्रिम रूप से फंसाये रखने के कारण विदेशी मुद्रा में गिरावट आई. अब यह पिछली सरकार की नीति के अनुरूप फ्लोटेड है जिसके परिणामस्वरूप आने वाले समय में विदेशी मुद्रा में वृद्धि होगी. लगभग 5 बिलियन का जो हमारे प्रवासी कामगारों का योगदान रहा है, वह भी उपरोक्त कारणों से काफी कम हो गया. निर्यात से होने वाली आय भी परिणामस्वरूप देश तक नहीं पहुंची.
सुधीर सक्सेना: क्या श्रीलंका को अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए वित्त मंत्री के रूप में डॉ मनमोहन सिंह जैसे किसी अर्थशास्त्री की जरूरत है?
शरत कोनगहगे: निश्चित रूप से हां. मैं पूरी तरह से इससे सहमत हूं, लेकिन यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है. हमें अपने देश को इस संकट से उबारने के लिए नरसिम्हा राव जैसे व्यक्ति की जरूरत है. राजनीतिक अस्थिरता इस आर्थिक संकट का एक अनिवार्य घटक है. हमें भविष्य के लिए महान दृष्टि और कार्य योजनाओं वाले नेताओं की आवश्यकता है.
सुधीर सक्सेना: क्या इस संकट के लिए भ्रष्टाचार, गलत नीतियां और एक परिवार का शासन जिम्मेदार है?
शरत कोनगहगे: 1000 प्रतिशत. और क्या? इस परिवार और सरकार को जल्द से जल्द जाना होगा.
सुधीर सक्सेना: क्या श्रीलंका को अपने लोकतांत्रिक मूल्यों, अपनी अर्थव्यवस्था और राजनीतिक ढांचे को नया रूप देने की जरूरत है?
शरत कोनगहगे: श्रीलंका और श्रीलंकाई लोगों के मूल में पर्याप्त और प्रचुरता में लोकतांत्रिक मूल्य हैं. एग्जीक्यूटिव प्रेसीडेंसी के आगमन के साथ, एक व्यक्ति राज्य का प्रमुख, सरकार का मुखिया और कार्यपालिका का प्रमुख बन गया जो कि कैबिनेट है. इसने संसद की भूमिका का काफी हद तक अवमूल्यन कर दिया. साथ ही इसने लोगों की संप्रभुता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सार्वजनिक सेवाओं को भी कमजोर कर दिया.
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हमें अर्थव्यवस्था को फिर से आकार देने और देश में राजनीतिक स्थिरता वापस लाने के लिए जल्द से जल्द एक गैर एग्जीक्यूटिव प्रेसीडेंसी व्यवस्था में लौटने की जरूरत है. इस सरकार द्वारा संसद में पारित 20वें संशोधन ने राष्ट्रपति की शक्तियों को कम करने और संसद की शक्ति को बढ़ाने के लिए पिछली सरकार द्वारा लाई गई अच्छी पहल को ख़त्म कर दिया. 20वें संशोधन को तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए.
सुधीर सक्सेना: क्या आपको विश्वास है कि श्रीलंका इस अंधेरे सुरंग से बाहर निकल आएगा? यदि हां, तो इसमें कितना समय लग सकता है?
शरत कोनगहगे: मैं अर्थव्यवस्था का कोई विशेषज्ञ नहीं हूं और इस मामले में कोई समय सीमा देने की स्थिति में नहीं हूं लेकिन मुझे विश्वास है कि राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देकर और सही लोगों को सही जगहों पर रखने से हम इस अंधेरे सुरंग से बाहर निकलने में सफल होंगे. बेशक, हमें इसके लिए अपने बड़े भाई स्वरुप भारत सहित दुनिया के समर्थन की जरूरत होगी.
सुधीर सक्सेना: क्या श्रीलंकाई लोगों का भारत पर भरोसा है और उन्हें लगता है कि भारत उन्हें बचा लेगा?
शरत कोनगहगे: समय-समय पर और मुख्य रूप से तमिल भाषी श्रीलंकाई लोगों के हमारे राष्ट्रीय सवाल के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच अविश्वास और विश्वास की स्थिति रही है. चीन के साथ हमारे घनिष्ठ संबंध के कारण भी कई बार भारत को लेकर ऐसी स्थिति बनी है. श्रीलंका द्वारा भारत की भू-राजनीतिक सुरक्षा चिंताओं को गंभीरता से देखने की ज़रूरत है. और यह दोनों ही ओर की सरकार पर निर्भर है. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय में हमें एक कड़वा अनुभव हुआ था, जो दस्तावेज़ों में अच्छी तरह से दर्ज है और मुझे इसे विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं है.
श्रीलंका के राष्ट्रपति आर प्रेमदासा के अनुरोध पर प्रधानमंत्री वीपी सिंह द्वारा IPKF को हमारी धरती से हटा दिया गया था. तब से धीरे-धीरे दोनों देशों के बीच न सिर्फ विश्वास बहाल हुआ बल्कि गहरा होता गया. आज यह अपनी सबसे ज़्यादा ऊंचाई पर है. भारत ने पिछले कुछ महीनों और हफ्तों के दौरान बड़े पैमाने पर आर्थिक और अन्य रूप से हमारी सहायता की है, हम आशा और प्रार्थना करते हैं कि भारत की ओर से यह मदद हमें तब तक मिलती रहेगी, जब तक कि इस मौजूदा माहौल में हमारे लिए कुछ सांस लेने लायक स्थिति नहीं बन जाती.
सुधीर सक्सेना: क्या आप आने वाले दिनों में और अधिक उथल-पुथल का अनुमान लगाते हैं?
शरत कोनगहगे: अगर आर्थिक संकट आगे भी बना रहा तो और भी लोग सड़कों पर उतरेंगे, मैं प्रार्थना और आशा करता हूं कि हिंसक प्रदर्शन न हो. भारतीय मदद से हम इस आर्थिक संकट को दो से तीन महीने के लिए कम करने में कामयाब हो सकते हैं. राजनीतिक संकट से भी जल्द निपटना होगा. फिलहाल कोई पर्याप्त मंत्रिमंडल भी नहीं है. अब तक केवल चार मंत्रियों की ही फिर से नियुक्ति हुई है.
सुधीर सक्सेना: क्या राजपक्षे को इस्तीफा देना चाहिए, श्रीलंका को नए चुनाव की जरूरत है?
शरत कोनगहगे: मुझे लगता है कि देश की 90 प्रतिशत आबादी की मांग है कि राष्ट्रपति राजपक्षे और प्रधानमंत्री के रूप में महिंदा को तुरंत पद छोड़ देना चाहिए. 'गोटा गो होम' न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि दुनियाभर में प्रवासियों के बीच आज घर घर का नारा बन चुका है. लिहाजा, मेरी राय भी यही है. जहां तक चुनाव का सवाल है तो मैं जल्दी चुनाव कराने की बात नहीं कहता क्यूंकि यह फिलहाल व्यावहारिक नहीं है और यह एक खर्चीली प्रक्रिया भी है. परिवर्तन संसद के भीतर से ही आना चाहिए.
कौन हैं शरत कोनगहगे?
शरत कोनगहगे रूपवाहिनी के अध्यक्ष और महाराजा समूह के सिरसा टीवी के निदेशक के रूप में भी शरत कोनगहगे ने अपनी सेवाएं दी हैं. एशिया में सबसे पुराने में से एक श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन के सीईओ भी रहे हैं. मीडिया मंत्रालय के सलाहकार रहने के साथ पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाला के भी सलाहकार रहे. वकालत के पेशे में 42 वर्षों से रहते हुए राष्ट्रपति के वकील रहे.
शरत कोनगहगे ने 1970 में एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में राजनीति में प्रवेश किया और एक प्रतिष्ठित विज्ञापन फर्म में एक एग्जीक्यूटिव के रूप में अपनी पहली नौकरी की. उसके बाद रिश्वत आयोग के लिए राज्य की तरफ से वकील नियुक्त हुए. वह जनसंचार में स्नातक में भी हैं.
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