डीएनए हिंदी: अक्सर, जब लोगों को जेल भेजा जाता है तो उनके पास अपने बच्चों को अपने साथ ले जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं होता है और फिर जेल ही इन बच्चों का घर बन जाता है. बचपन और पढ़ाई- लिखाई से दूर ये मासूम बिना किसी गलती के अंधेरे में ही सारा जीवन निकाल देते हैं. ऐसे ही बच्चों के लिए मसीहा बनकर सामने आई हैं इंदिरा राणामागर.

इंदिरा प्रिजनर्स एसोसिएशन (Prisoner’s Association) नेपाल की संस्थापक हैं और पिछले 33 सालों से कैदियों और उनके बच्चों के कल्याण के लिए काम कर रही हैं. वे पूरे नेपाल में 500 बच्चों और कुछ स्कूलों के साथ मिलकर 15 आवासीय घर चलाती हैं. ये घर उन बच्चों के लिए हैं जो अपने मां-बाप के साथ जेल में रहने के लिए मजबूर हैं. यहां उनकी हर संभव जरूरतों को बिना किसी शर्त के पूरा किया जाता है. इंदिरा की मदद से ये बच्चे बेहतर शिक्षा के साथ बेहतर भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं.  

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इंदिरा बताती हैं, 'बिना किसी गलती के मासूमों के जेल में रहने से मुझे बहुत दुख पहुंचता है. जब मैंने पहली बार इन बच्चों को देखा था तो अंदर तक हिल गई ती. मैं उनका जीवन अंधेरे में नहीं देख सकती हूं इसलिए अब तक कई मासूम बच्चों को जेल से छुड़ा चुकी हूं. भूकंप और कोविड के दौरान भी कई असहारा बच्चों को सहारा बनी. सरकार के पास उनकी देखभाल के लिए कुछ प्रावधान होने चाहिए लेकिन नेपाल में ऐसा नहीं है. यह मेरी सबसे बड़ी लड़ाई है.'

बता दें कि इंदिरा खुद एक बेहद गरीब परिवार से हैं.  वे बताती हैं कि बचपन में उन्हें स्कूल जाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था. वहीं, अब इन बच्चों में वे खुद का जीवन देखती हैं. उनका कहना है, 'मैं नहीं चाहती जो मैंने देखा वो कोई और भी देखे. भले ही मुझे शिक्षा न मिली हो लेकिन जो कुछ मैंने प्रकृति से सीखा है, मैं वो सब इन बच्चों को देना चाहती हूं. यही वजह है कि मैंने इनकी मदद करने का फैसला किया.'

प्रिजनर्स एसोसिएशन की संस्थापक नेपाल में कैदियों के बच्चों और कमजोर लोगों की नागरिकता के लिए भी लड़ रही हैं. इसे लेकर उनका कहना है, जब सालों से नेपाल में रहने के बाद भी इन बच्चों की माताओं के पास नागरिकता नहीं है तो बच्चों को नागरिकता कैसे मिल सकती है. मेरे कई बच्चों के पास अच्छी शिक्षा है, डिग्री है लेकिन नागरिकता नहीं है.'

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इधर, बात अगर आंकड़ों की करें तो अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल में अनुमानित 6.7 मिलियन व्यक्तियों के पास नागरिकता के दस्तावेज नहीं थे. हालांकि, स्थानीय कानून के तहत इनमें से अधिकांश नागरिकता के लिए पात्र थे.

बच्चों और मां-बाप का रिश्ता बना रहे इसके लिए इंदिरा कभी-कभी जेलों का दौरा भी करती हैं. बच्चों के बेहतर जीवन के लिए वे अंतरराष्ट्रीय संगठनों, व्यक्तिगत दानदाताओं और दोस्तों के माध्यम से धन जुटाती हैं. इंदिरा का कहना है कि बच्चों के लिए सरकार से उन्हें किसी तरह कि मदद नहीं मिली है.

जेल में पैदा हुई जेनिफर राणामागर (17) जब एक दिन थी, तब इंदिरा उसे अपने साथ घर ले आई थीं. इसके अलावा कई बच्चों का करियर बनाने के लिए इंदिरा ने उन्हें खुद की पहचान दी. जेनिफर बताती हैं, 'मैं बचपन से ही इस संस्था में पली-बड़ी हूं. जब पहली बार मैंने अपनी आखें खोली तो अम्मा (इंदिरा) को ही देखा था. उन्हीं को मां समझती थी लेकिन जब बड़ी हुई और पता चला कि अम्मा मेरी मां नहीं हैं तो पहले तो बहुत दुख हुआ. एक समय के लिए तो ऐसा लगा मानो वो झूठ बोल रही हैं. फिर लगा कि वो मेरी मां हो या न हो उन्होंने मुझे अपनी बेटी की तरह ही तो पाला है. मुझे अपनी अम्मा पर गर्व है. वो आज भी मुझे और बाकि सभी बच्चों को अपने बच्चे के तरह ही प्यार करती हैं. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने जीवन के 33 सालों में इंदिरा अब तक 2,000 से अधिक बच्चों को एक नया जीवन दे चुकी हैं.

(रिपोर्ट- सलोनी मुरारका)

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Nepali woman saving over 2000 children from growing up in prison
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अगर मदद ना करती ये महिला तो बिना किसी जुर्म के जेल की सजा काटते 2,000 बच्चे
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इंदिरा रामामागर
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अगर मदद ना करती ये महिला तो बिना किसी जुर्म के जेल की सजा काटते 2,000 बच्चे, पढ़ें पूरी कहानी