पाकिस्तान में चुनाव हों और बम धमाके ना हों ऐसा हो ही नहीं सकता. पाकिस्तान में 8 फरवरी को आम चुनाव होगा. लेकिन उससे पहले एक के बाद एक धमाकों से दहल उठा है. वेटिंग से एक दिन पहले बुधवार को बलूचिस्तान में दो जगह ब्लास्ट हुआ. पहला धमाका बलूचिस्तान के पिशीन शहर में हुआ. जिसमें 14 लोगों की मौत हो गई और 30 लोग घायल हुए. यह धमाका निर्दलीय उम्मीदवार असफंद यार खान काकड़ के दफ्तर के बाहर हुआ. वहीं दूसरा धमाका सैफुल्लाह शहर में जमीयत उलेमा ए इस्लाम के कैंडिडेट के ऑफिस के बाहर धमाका हुआ. इसमें 12 लोग मारे गए. एक ही दिन में कुल 24 लोगों की जान चली गई.
पिछले एक हफ्ते में इलेक्शन कमीशन के दफ्तर से लेकर पुलिस स्टेशन तक को निशाना बनाया गया है. इससे पहले 5 फरवरी 2024 को बलूचिस्तान में इलेक्शन कमीशन के ऑफिस के बाहर धमाका हुआ था. आयोग के गेट के पास बम फटा था. उसी दिन खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के दरबार शहर में पुलिस स्टेशन पर आतंकियों ने हमला किया. आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कररते हुए 10 पुलिसकर्मियों को मौते के घाट उतार दिया. जबकि इस हमले में 6 पुलिसकर्मी घायल हुए थे.
पाकिस्तान में जब से आम चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ है, तब से लगातार हमले हो रहे हैं. इनमें ज्यादातर इमरान खान की पार्टी तहरीफ-ए-इंसाफ (PTI) के नेताओं को निशाना बनाया गया. चुनाव की घोषणा होने के बाद पिछले 37 दिन में 125 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. जनवरी 2024 में कुल 47 सुरक्षाबलों की हत्या हुई थी, जबकि 42 आम नागरिक मारे गए थे. इस महीने 7 दिनों के अंदर 14 सुरक्षाबल और 33 आम नागरिक मारे जा चुके हैं.
कब-कब हुए हमले?
- इससे पहले 31 जनवरी 2024 को इमरान खान की पार्टी के एक कैंडिडेट की खैबर पख्तूनख्वा में गोली मारकर हत्या कर दी गई. रेहान जेब खान नेशनल असेंबली की सीट नंबर 8 से उम्मीदवार थे.
- 31 जनवरी 2024 को ही अवामी नेशनल पार्टी के सीनियर लीडर जहूर अहमद की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
- 30 जनवरी को बलूचिस्तान प्रांत के सिबी शहर में जबदस्त विस्फोट हुआ था. सड़क किनारे हुए बम धमाके में 4 लोगों की मौत हो गई थी. चुनाव के समय इस तरह के बम धमाके पाकिस्तान चुनाव आयोग के लिए चिंता का सबब बने हुए हैं.
चुनाव के समय धमाके कोई नई बात नहीं
पाकिस्तान जब से वजूद में आया है तब से लेकर आज तक कभी शांतिपूर्ण और निष्पक्ष तरीके से चुनाव नहीं हुए. इस बार भी ऐसा हुआ है. चुनाव आयोग के तमाम दावों के बावजूद ना सिर्फ कैंडिडेट बल्कि सुरक्षाबलों और चुनाव आयोग के दफ्तर भी सुरक्षित नहीं रहे हैं. हालांकि, चुनाव के दौरान पाकिस्तान में आतंकी हमले कोई नई बात नहीं है. साल 2018 के चुनाव में कम से कम 200 से ज्यादा आम लोग और 4 उम्मीदवार आतंकी हमलों में मारे गए थे.
इससे पहले वर्ष 2013 का चुनाव पाकिस्तान के इतिहास में सबसे खूनी चुनाव में गिना जाता है. इंस्टिट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फिलिक्ट स्टडीज के मुताबिक, 2013 के आम चुनाव में 1300 से ज्यादा आम लोग मारे गए थे. वहीं 2008 के आम चुनाव से ठीक पहले 27 दिसंबर 2007 को प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की नेता बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गई थी.
आतंकियों के निशाने पर क्यों रहता है बलूचिस्तान?
पाकिस्तान में चुनाव के दौरान ज्यादातर आतंकी हमले बलूचिस्तान प्रांत में हुए हैं. ऐसा ही 2018 के चुनाव में भी हुआ था. तब एक आत्मघाती हमले में 130 लोगों की मौत हुई थी और 2013 के चुनाव में भी बलूचिस्तान लहुलुहान हुआ था. सवाल ये है कि चुनाव नजदीक आते ही बलूचिस्तान में इस तरह के आतंकी हमले क्यों बढ़ जाते हैं. इसे समझने के लिए बलूचिस्तान के भूगोल और यहां के जमीनी हालात को जानना जरूरी है.
- बलूचिस्तान क्षेत्रफल के मामले में पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है. जोकि मुल्क के कुल क्षेत्रफल का 43.6 फीसदी है.
- बलूचिस्तान में प्राकृतिक संसाधनों के बेशुमार भंडार हैं. इनमें सोना, कॉपर, नेचुरल गैस और तेल शामिल हैं.
- पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट और China Pakistan Economic Corridor भी बलूचिस्तान से होकर गुजरता है.
लेकिन पाकिस्तान की संसद में बलूचिस्तान का प्रतिनिधत्व काफी कमजोर है. पाकिस्तान की 336 संसदीय सीटों में से सिर्फ 20 सीटें ही बलूचिस्तान के हिस्से में हैं. इनमें से 4 सीटें तो महिलाओं के लिए आरक्षित हैं.पाकिस्तान के भेदभाव की वजह से यहां बलूच लिबरेशन आर्मी मूवमेंट चला रही है. जिसका उद्देश्य बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजादी दिलाना है. जिसका मानना है कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के बावजूद उनके प्रांत के विकास पर ना के बराबर खर्च किया जाता है. जिस वजह से बलूचिस्तान आय, शिक्षा और जीडीपी हर क्षेत्र में पिछड़ गया है. इसकी गवाही UNDP यानी United Nations Development Programme के आंकड़े भी देते हैं.
अगर गरीबी की बात करें तो बलूचिस्तान प्रांत में 71 फीसदी है. पंजाब प्रांत में सिर्फ 31 फीसदी, सिंध प्रांत में 43 फीसदी और खैबर पख्तूनख्वा में 49 फीसदी. इससे साफ जाहिर है कि गरीबी के मामले में बलूचिस्तान कितना पिछड़ा हुआ है.
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