यमन के हूती विद्रोहियों की कहानी और इतिहास दोनों पुराना है. हूतियों के विद्रोह का असर सिर्फ यमन तक नहीं है. इसे लेकर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र भी गाहे-बगाहे अपनी चिंता व्यक्त करते ही रहते हैं. एशिया में शक्ति संतुलन की बात करें तो हूती विद्रोह को समर्थन और दबाने के नाम पर ईरान और सऊदी अरब आमने-सामने हैं. इस बवाल की पूरी कहानी समझें.
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हूती विद्रोहियों के हमलों की खबर के पीछे जाकर इतिहास में देखें तो इनके विद्रोह की कहानी पुरानी है. हूती विद्रोह उभरने की कहानी 1990 के दशक में ही शुरू हो गई थी. दरअसल, हूती बोलचाल की भाषा में कहा जाता है. इसका आधिकारिक नाम अंसार अल्लाह है. उत्तरी यमन के Saada से यह आंदोलन शुरू हुआ था. यमन के उत्तरी इलाके में शिया मुस्लिमों का सबसे बड़ा आदिवासी संगठन हूती है.
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हूती विद्रोहियों के यमन की सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद से सऊदी अरब और UAE जैसे सुन्नी देश सतर्क हो गए हैं. 2015 में हूतियों ने तत्कालीन राष्ट्रपति अब्द्रब्बुह मंसूर हादी को सत्ता से बेदखल कर राजधानी पर कब्जा जमा लिया. इसके बाद से ही यमन में गृह युद्ध के हालात बने हुए हैं. सत्ता से बेदखल होने के बाद हादी देश के दक्षिणी हिस्से के शहर एडन चले गए थे.
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हर संघर्ष के पीछे एक वजह होती है. हूती विद्रोह के पीछे आखिर वजह क्या है? हूती शिया मुसलमान हैं और देश के दक्षिणी हिस्से में सुन्नी मुसलमानों का वर्चस्व है. इसके अलावा, यमन में तेल के भंडार भी है. यह सवाल बार-बार किया जाता है कि हूतियों का विद्रोह आखिर किसके लिए है? हूती विद्रोह दरअसल भौगोलिक परिस्थितियों में उपजा ऐसा विद्रोह है जिसमें धर्म की दीवारें भी हैं और संपदाओं पर नियंत्रण की लालसा भी. इन सभी समस्याओं को एक साथ सुलझाए बिना यह संघर्ष खत्म नहीं हो सकता है.
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शिया हूतियों के समर्थन में ईरान है. वहीं, सऊदी अरब और UAE जैसे देश हूतियों के विरोध में है. दूसरी ओर यमन में जारी गृह युद्ध की आंच एशिया के बाहर वैश्विक स्तर तक पहुंच चुकी है. अमेरिका ने सऊदी अरब को साल 2021 में चेतावनी देते हुए कहा था कि यमन पर सऊदी अरब के हमले को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि, 2015 को बीते अब 7 होने वाले हैं लेकिन यमन आज भी युद्ध की आग में जल रहा है.
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हूती विद्रोहियों ने हाल ही में यूएई पर ड्रोन हमले की जिम्मेदारी ली है. सऊदी अरब और यूएई भी हूतियों को सबक सिखाने की बात करते रहते हैं. इन सबके बीच लगातार युद्ध की वजह से देश में अव्यवस्था और गरीबी चरम पर है. संयुक्त राष्ट्र ने नवंबर 2021 में जारी रिपोर्ट में कहा था कि यमन में लगातार हिंसा की वजह से खाद्यान्न संकट गहराता जा रहा है. 2021 के अंत तक UN का अनुमान था कि यमन में 3,77,000 लोगों की मौत हो चुकी है और यह मौत सिर्फ हिंसा नहीं बल्कि भुखमरी और गरीबी की वजह से भी हो रही हैं. भुखमरी का सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ रहा है.