भारत ने चाबहार पोर्ट को विकसित करने में काफी संसाधन लगाए हैं. अमेरिका की ओर से ईरान पर लगाए प्रतिबंधों की वजह से यह प्रोजेक्ट काफी धीमा चल रहा था. चीन ने चालाकी दिखाते हुए अब इस एशिया में रणनीतिक तौर पर बेहद अहम चाबहार पोर्ट पर भी अपनी नजरें जमा ली हैं. चीन और रूस की नौसेना यहां मिलकर अभ्यास करने जा रही है.
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भारत ने इस पोर्ट के लिए अरबों डॉलर खर्च किए थे. इस पोर्ट पर इतने पैसे खर्च करने के पीछे भारत की सोच थी कि अफगानिस्तान जाने के लिए वैकल्पिक मार्ग तैयार हो सके. चाबहार पोर्ट में निवेश के पीछे भारत की रणनीति थी कि पाकिस्तान के रास्ते का इस्तेमाल किए बिना अफगानिस्तान जाने के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाया जा सके. मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए भारत के लिए यह पोर्ट बहुत जरूरी था.
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चीन मध्य एशिया में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है. चाबहार पोर्ट पर चीन की नजर सालों से है. रूस के साथ मिलकर चीन यह सैन्य अभ्यास रणनीतिक तौर पर खुद को मजबूत बनाने के लिए कर रहा है. चाबहार पोर्ट पर रूसी जहाजों में खाना, पानी और ईंधन भरा जाएगा. रूसी जंगी जहाजों का यह बेड़ा नए साल से ठीक पहले व्लादिवोस्तक से रवाना हुआ था. इतनी लंबी दूरी तक तैनाती के दौरान रूसी जंगी बेड़ा सेशेल्स भी जाएगा.
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ओमान की खाड़ी में स्थित ईरान का चाबहार बंदरगाह रणनीतिक रूप से बेहद अहम है. चीन और पाकिस्तान मिलकर ग्वादर बंदरगाह को बड़े नौसैनिक किले के तौर पर विकसित कर रहे हैं. ग्वादर पोर्ट के जरिए चीन और पाकिस्तान की कोशिश है कि आधुनिक हथियारों और तकनीकों से इसे लैस कर सके. भारत ने इस रणनीतिक चुनौती को देखते हुए ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित किया है. चाबहार बंदरगाह की दूरी ग्वादर पोर्ट से काफी कम है.
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चाबहार पोर्ट में भारत के निवेश से चीन चौकन्ना हो गया है. चीन पिछले 3 साल से लगातार चाबहार पोर्ट तक अपनी पहुंच बनाने में जुटा है. 2109 में भी चीन, रूस और ईरान की सेनाओं ने यहां युद्ध अभ्यास किया था. अब चीन के युद्धक पोत चाबहार तक जाने वाले हैं जिसे भारत के प्रयासों को बड़ा धक्का लग सकता है.
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भारत ने अपनी लुक ईस्ट नीति को देखते हुए चाबहार पोर्ट में काफी निवेश किया है. PM Narendra Modi एशियाई देशों के साथ मजबूत रणनीतिक साझेदारी को ध्यान में रखकर कई बड़े फैसले किए हैं. चाबहार पोर्ट में भारत के निवेश के पीछे की वजह भी यही थी कि एशियाई देशों के साथ कम समय में पहुंच के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाना. यह पोर्ट अफगानिस्तान के साथ श्रीलंका और बांग्लादेश से जुड़ने के लिए भी महत्वपूर्ण है.