कोविड संकट (Covid-19 Crisis) ने चीन (China) में त्रासदी जैसी स्थिति पैदा कर दी है. विस्तारवाद की राजनीति में भरोसा रखने वाला चीन खुद को संभाल नहीं पा रहा है. चीन की अर्थव्यस्था पटरी से उतर गई है. अब वहां शी जिनपिंग (XI Jinping) सरकार की मुश्किलें खुद उनके प्रधानमंत्री ने बढ़ा दी है.
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शी जिनपिंग के खिलाफ आम नागरिकों के साथ-साथ अब उनके सहयोगी लोग भी उतर आए हैं. शी जिनपिंग के खिलाफ प्रधानमंत्री ली केकियांग भी सवाल उठाने लगे हैं. उन्होंने शी जिनपिंग के खिलाफ बगावत छेड़ दी है.
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चीन के सियासी संकट की असली वजह कोविड संकट है. लगातार लॉकडाउन की वजह से चीन की आर्थिक स्थिति बदहाल हो गई है. सरकार ने 3 महीने पहले देश की आर्थिक राजधानी शंघाई समेत कई प्रमुख शहरों में लॉकडाउन लगा दिया था. बगावत की जंग यहीं से शुरू हुई थी.
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शी जिनपिंग सरकार की जीरो कोविड पॉलिसी से नागरिक त्रस्त हो गए हैं. जिनपिंग सरकार लगातार सवालों के घेरे में है. जीरो कोविड पॉलिसी से लोग परेशान हो गए हैं. सरकार की लगातार आलोचना हो रही है.
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बीते सप्ताह चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने एक बैठक बुलाई थी. उन्होंने 1,00,000 सरकारी अफसरों से स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाने की अपील की थी.
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ली केकियांग और शी जिनपिंग में आर्थिक संकट की वजह से असली लड़ाई फंसी है. स्टेट काउंसिल एग्जिक्यूटिव की बैठक में केकियांग ने कहा था कि चीन की अर्थव्यवस्था 2020 में महामारी की शुरुआत से भी ज्यादा बड़ी मुश्किलों का सामना कर रही है. चीन में अब तक हर बड़े फैसलों पर आधिकारिक नाम शी जिनपिंग का जाता है. हमेशा से ली केकियांग साइडलाइन ही रहे हैं. वैश्विक तौर पर उनके नाम की चर्चा भी नहीं होती है. ऐसी स्थिति में अचानकर से उनके नाम का चर्चित होना कम्युनिस्ट पार्टी के अंदरुनी घमासान पर सवाल उठा रहा है.
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ली केकियांग का अचानक सक्रिय होना आम नहीं है. यह कई बड़े सियासी संकेत दे रही है. शी जिनपिंग कई मोर्चे पर असफल रहे हैं. उनकी क्रूर प्रशासक वाली छवि अब पार्टी के नेताओं को रास नहीं आ रही है. चीन की राजनीति पर नजर रखने वाले लोग कहते हैं कि शी जिनपिंग का भविष्य संकट में है.
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ली केकियांग की छवि चुप-चाप रहने वाले नेता की बन गई है. हमेशा उन्हें प्रमुख आयोजनों से दूर रखा जाता है. अब उनका विरोध चीन में नए सियासी समीकरणों को बुलावा दे रहा है. जब कोविड महामारी को संभालने में शी जिनपिंग लगातार फेल होते गए तो उन्हें महामारी खत्म करने की जिम्मेदारी दी गई. अब ऐसा लग रहा है कि शी जिनपिंग लगातार तीसरी बार सत्ता में नहीं आने वाले हैं.