विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि कोविड-19 (Covid-19) संक्रमण की चपेट में 50 फीसदी से ज्यादा यूरोपीय (Europeans) आबादी अगले 6 से 8 सप्ताह के अंदर संक्रमित हो सकती है. कोरोना को सामान्य फ्लू जैसी बीमारी के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के यूरोप निदेशक हैंस क्लूज (Hans Klug) ने मंगलवार को कहा कि यूरोप में 2022 के पहले सप्ताह में 7 मिलियन से ज्यादा नए केस दर्ज किए गए जो 2 सप्ताह की अवधि में दोगुणे हो गए. 26 देशों के मुताबिक, 10 जनवरी तक, हर सप्ताह उनकी एक फीसदी आबादी कोविड-19 से संक्रमित हो रही है.
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इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के एक नए विश्वेषण के मुताबिक आने वाले 6 से 8 सप्ताह के दौरान इस क्षेत्र की 50 फीसदी से ज्यादा आबादी ओमिक्रॉन संक्रमित हो सकती है.
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हैंस क्लूज ने कहा है कि यूरोप और मध्य एशिया के 53 देशों में से 50 देश ऐसे हैं जहां कोरोना संक्रमण केस बेहद तेजी से बढ़ रहे हैं. अब तक सामने आई जानकारियों के मुताबिक पहले के कोरोना वेरिएंट्स की तुलना में इस वेरिएंट में हल्के लक्षण देखे जा रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है कि इसे साबित करने के लिए ज्यादा आंकड़ों और अध्ययन की जरूरत है.
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सोमवार को, स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ (Pedro Sanchez) ने दावा किया था कि इसके ट्रीटमेंट को सामान्य तौर पर करें क्योंकि समय के साथ यह कम घातक रह गया है. उनका कहना था कि कोरोना महामारी को महामारी नहीं बल्कि एक सामान्य बीमारी के तौर पर समझा जाए जिसे अलग से दर्ज करने की जरूरत नहीं है. ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह बयान बेहद अहम है कि इसे सामान्य फ्लू समझने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.
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स्वास्थ्य संगठन के अधिकारियों का कहना है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट अब भी एक अनिश्चित वायरस है जो तेजी से विकसित हो रहा है. हर दिन नई चुनौतियां सामने आ रही हैं. हम उस स्तर तक नहीं पहुंचे हैं जब यह कहा जा सके कि कोरोना एक सामान्य बीमारी है. आने वाले दिनों में यह एक स्थानिक बीमारी हो सकती है लेकिन 2022 में यह कहना मुश्किल है.
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इस बीच अच्छी बात ये है कि भारत में कोरोना संक्रमण का रिकवरी रेट 96.01% हो गया है. पिछले 24 घंटों में 60, 405 मरीज ठीक हुए हैं.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि जिन टीकों को मंजूरी दी गई है वे ओमिक्रॉन समेत दूसरे वेरिएंट्स से लड़ने में असरदार हैं और गंभीर रूप से बीमार होने से बचाते हैं. मृत्युदर भी टीकों की वजह से घटी है. लगातार बदल रहे वेरिएंट की वजह से अस्पतालों में अब मरीजों की संख्या बढ़ी है. वैश्विक महामारी का सबसे अधिक बोझ, स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंट लाइन वर्कर्स पर ही है.