अमेरिका के डॉक्टरों ने बड़ा कारनामा करते हुए जेनेटिकली मॉडिफाइड सुअर के दिल को 57 साल के बुजुर्ग के शरीर में ट्रांसप्लांट किया है. हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब ऐसा किया गया हो. इससे पहले भी कई बार मेडिकल साइंस में ऐसा किया गया है. जानें, अब से पहले कब-कब ऐसा हुआ और उसका नतीजा क्या रहा.
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कहां: हार्डी
कब: 1964
नतीजा: सिर्फ 2 घंटे में मरीज की हो गई थी मौत. यह पहला मौका था जब किसी जानवर के शरीर के अंग का इस्तेमाल इंसानी शरीर में किया गया था.
निष्कर्ष: डॉक्टरों ने माना कि चिम्पैंजी का दिल आकार में उतना बड़ा नहीं था कि वह इंसानी रक्त प्रवाह को झेल सके.
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कब: 1983
नतीजा: 20 दिनों बाद पेशेंट की मौत
हार्डी ट्रांसप्लांट के बाद यह कोशिश लियोनार्ड बेली ने की थी. एक नवजात बच्ची बेबी फाए के शरीर में लंगूर का दिल लगाया गया था. हालांकि, यह प्रयोग भी असफल रहा और बच्ची की 20 दिन बाद मौत हो गई.
निष्कर्ष: उस दौर में किसी नवजात के शरीर में किसी और अंग का प्रत्यारोपण करना असंभव सा था. हालांकि, मेडिकल प्रोसिजर के हिसाब से प्रत्यारोपण हुआ, लेकिन मरीज को बचाया नहीं जा सका. इसकी वजह डॉक्टरों ने मानी कि शाद लंगूर के दिल में ओ रक्त नहीं था.
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कब: 1977 में क्रिस्टियान बर्नार्ड ने की थी यह कोशिश
नतीजा: लंगूर का दिल लगाने का प्रयास असफल रहा. वहीं चिंपैंजी का दिल लगाने के बाद 4 दिन तक मरीज ने किसी तरह सर्वाइव किया था.
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कब: 1968 में दो मरणासन्न हालात के मरीजों पर यह प्रयोग किया गया था.
नतीजा: कुछ ही घंटों में मरीजों की मौत
निष्कर्ष: दोनों ही मरीजों के शरीर पर कुछ ही देर में इसके विपरीत असर दिखने लगा और कुछ ही देर में मरीजों की मौत हो गई.
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कब: 1997 में भारत और पॉलैंड में. हालांकि, इस बारे में ज्यादा डिटेल नहीं मौजूद है.
भारत के बरुआ पिग हार्ट ट्रांसप्लांट में मरीज की एक सप्ताह बाद कई तरह की इन्फेक्शन के बाद मौत हो गई. इसके बाद बरुआ और उनके साथी सर्जन डॉक्टर जोनाथन हो पर आईपीसी के तहत कई धाराओं में केस चला था.