डीएनए हिंदी: यूरोपीय देशों के उलझाने वाले नियमों के कारण भारतीयों के उत्पीड़न में एक और कड़ी जुड़ गई है. एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर और उनकी पत्नी ने जर्मनी (Germany) की राजधानी बर्लिन (Berlin) से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से इंसाफ की गुहार लगाई है, जिनकी 17 महीने की बेटी पिछले 300 दिन से उलझाऊ कानूनों के कारण जर्मन सरकार की कस्टडी में है. जी हां, किसी भी माता-पिता की ऐसी कहानी बेहद दर्दनाक कही जा सकती है. प्रधानमंत्री के मूल प्रदेश गुजरात (Gujarat) के इस दंपती ने उनसे अपनी बेटी वापस दिलाने की अपील की है.
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बेटी को अस्पताल ले गए थे, नहीं पता था कि वो वापस नहीं मिलेगी
पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर भावेश शाह (Bhawesh Shah) साल 2018 से जर्मनी की राजधानी बर्लिन में नौकरी कर रहे हैं. उनकी हाउसवाइफ पत्नी धारा शाह (Dhara SHah) ने पिछले साल में बेटी अरिहा शाह (Ariha Shah) को जन्म दिया. बच्ची के करीब 7 महीने का होने पर उसके डाइपर में ब्लड दिखने से परेशान होकर माता-पिता उसे डॉक्टर को दिखाकर वापस घर ले आये. अगले दिन भी दोबारा ऐसा होने पर जब वे बच्ची को अस्पताल ले गए, तब उन्हें इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि इसके बाद वे अपनी लाड़ली की एक झलक देखने के लिए भी तरस जाएंगे.
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अस्पताल प्रशासन ने डाइपर में ब्लड को माना सेक्सुअल असॉल्ट
अस्पताल प्रशासन ने बच्ची के डाइपर में ब्लड की घटना को सेक्सुअल असॉल्ट (यौन उत्पीड़न) का मामला माना और जानकारी चाइल्ड प्रोटेक्शन टीम को दे दी. इसके बाद अथॉरिटी ने बच्ची को अपनी कस्टडी में ले लिया. इसके बाद पिछले 10 महीने से वे अपनी महज 17 महीने की बेटी को गोद में लेने के लिए तरस रहे हैं. ये इनकी बदकिस्मती ही है कि एक 17 महीनों की मासूम बेटी, कानूनी अड़चनों के चलते, उसे अपनी मां का दूध तक नसीब नहीं हो पा रहा.
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भाषा की दिक्कत से भी बढ़ गया मामला
भावेश अपनी भाषा अंग्रेजी में जर्मन अधिकारियों को नहीं समझा पाए. इसके बाद जल्दबाजी में पाकिस्तानी मूल का एक ट्रांसलेटर मिला, लेकिन वो भी माता-पिता के पक्ष को अधिकारियों के सामने ठीक से रख ना सका. न ही माता पिता को जर्मन कार्यवाही समझा सका.
माता-पिता पर हो गया क्रिमिनल केस
जर्मन अधिकारियों ने भावेश शाह और उनकी पत्नी धारा शाह पर सेक्सुअल असॉल्ट का केस दर्ज कर दिया. इसके बाद दोनों के ऊपर क्रिमिनल केस चलाया गया, लेकिन जर्मन अथॉरिटी जांच में यौन उत्पीड़न की बात साबित नहीं कर सकी. करीब 5 महीने जूझने के बाद इस आरोप से क्लीन चिट मिल गई, लेकिन माता-पिता को बेटी वापस नहीं मिल सकी. तब से ही वे बेटी की कस्टड वापस पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं.
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जर्मन सरकार मांगती है Fit To Be Parents सर्टिफिकेट
जर्मन कानून के हिसाब से भावेश-धारा को Fit To Be Parents सर्टिफिकेट सरकार को देना होगा. इस सर्टिफिकेट में उन्हें यह साबित करना होगा कि वे बच्चा पालन के काबिल हैं. दो लीगल सेशन से गुजरने के बावजूद अब तक भावेश-धारा के लिए इस सर्टिफिकेट की लीगल प्रोसेस खत्म नहीं हुई है. इस सर्टिफिकेट को पाने के लिए लीगल अथॉरिटी के दो सेशन अटैंड कर चुके हैं, लेकिन 'फिट टू बी पेरेंट्स' की लीगल प्रोसेस अब तक खत्म नहीं हुई है.
भारतीय दूतावास भी नहीं कर पाया है मदद
भावेश और धारा जर्मनी में मौजूद भारतीय दूतावास के अधिकारियों से भी मदद मांग चुके हैं, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. भावेश-धारा को बेटी की परवरिश के लिए जर्मन अधिकारियों को हर महीने करीब 45 हजार रुपये का शुल्क चुकाना पड़ता है. इसके अलावा उन्हें वकीलों की फीस भी देनी पड़ रही है, जो करीब 25 हजार रुपये प्रति घंटा है. इस भारीभरकम खर्च के कारण दंपती की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई है.
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माता-पिता को चिंता, बच्ची भारतीय संस्कार कैसे सीखेगी
अपनी बच्ची से दूर होने के दर्द के अलावा जैन परिवार को ये भी चिंता है कि उनकी बेटी अपनी भाषा, धर्म, संस्कृति और खान-पान कैसे सीखेगी. दोनों ने बच्ची की कस्टडी यूथ वेलफेयर सर्विस के बजाय किसी अन्य भारतीय परिवार को देने की भी गुजारिश जर्मन अधिकारियों से की, ताकि उसे भारतीय परवरिश मिल सके. लेकिन यह गुहार भी नहीं सुनी गई. फिलहाल वे बच्ची से महीने में एक बार मिल सकते हैं, लेकिन न वे उसे गोद में ले सकते हैं और न लाड़ कर सकते हैं. ये मामला फिलहाल लोकल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में विचाराधीन है.
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PM Modi से गुजराती फैमिली की गुहार, जर्मन सरकार के कब्जे में 17 महीने की बेटी, 300 दिन से नहीं देखी