डीएनए हिंदी: ब्राजील में जीत के बाद भी लूला डी सिल्वा की राह आसान नजर नहीं आ रही है. उनके जीतने के बाद ब्राजील के मौजूदा राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारे के समर्थक उनकी सत्ता स्वीकार नहीं कर रहे हैं. उनके समर्थक चाहते हैं कि दक्षिणपंथी नेता ही सत्ता में बने रहें और लूला डी सिल्वा देश की कमान न संभालें. ब्राजील में लेफ्ट का उभार, दक्षिणपंथी समर्थकों को रास नहीं आ रहा है.
राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो के हजारों समर्थकों की मांग है कि अब सेना अपने हाथो में देश की कमान ले और लूला डी सिल्वा को राष्ट्रपति पद न संभालने दे. सत्ता में बनाए रखने के लिए सेना से बोलसोनारो के समर्थक मदद मांग रहे हैं.
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ब्राजील में कितने ताकतवर हैं जेयर बोलसोनारो?
जेयर बोलसोनारो के समर्थक बुधवार को बारिश के बावजूद रियो डी जेनेरियो में स्थित पूर्वी सैन्य कमान के मुख्यालय के बाहर उग्र विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. लेफ्ट नेता की जीत पर वहां दंगे जैसे हालात पैदा हो गए हैं.
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हाथों में राष्ट्रीय ध्वज लिए हुए लोगों ने राष्ट्रगान गाया और बोलसोनारो के समर्थन में नारेबाजी की. लोगों ने 'सशस्त्र सेना, ब्राजील को बचाओ' और 'एकजुट लोग कभी पराजित नहीं होंगे' जैसे नारे भी लगाए. बोलसोनारो खुद तो सत्ता लूला को सौंपना चाहते हैं लेकिन उनके समर्थक ऐसा करने नहीं दे रहे हैं.
जीत के बाद भी क्यों आसान नहीं है बोलसोनारो की राह?
लूला डी सिल्वा से मिली करारी हार के बाद बोलसोनारो के समर्थक बेहद भड़के हुए हैं. राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में उन्हें दो दिन पहले वामपंथी नेता लूला डी सिल्वा के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. यह प्रदर्शन ऐसे समय में हुए हैं जब लूला डी सिल्वा की जीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने के साथ ब्राजील के उच्चतम न्यायालय ने बोलसोनारो को हार स्वीकार करने का सुझाव दिया है. वहीं बोलसोनारो के समर्थक हार मानने के लिए तैयार नहीं है.
क्या है ब्राजील के चुनावी संकट की असली वजह?
ब्राजील की इलेक्शन अथॉरिटी ने रविवार को चुनाव के परिणामों की घोषणा की थी, जिसमें लूला डी सिल्वा को 50.9 प्रतिशत और बोलसोनारो को 49.1 प्रतिशत मत मिले. मतों का अंतर बेहद कम है. यही तकरार की एक बड़ी वजह है. दक्षिणपंथी समर्थक चाह रहे हैं कि सत्ता में बोलसोनारो ही रहें. जीत लेफ्ट की हुई. ऐसे में दोनों समर्थक आपस में बुरी तरह से भिड़ गए हैं.
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ब्राजील में अजेय बन गए थे बोलसोनारो
ब्राजील में वर्ष 1985 में लोकतंत्र बहाल होने के बाद से पहला मौका है जब निवर्तमान राष्ट्रपति दोबारा चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हुआ हैं. यह लूला डी सिल्वा के लिए बड़ी बढ़त है. लूला डी सिल्वा 2003 से 2010 के दौरान ब्राजील के राष्ट्रपति रह चुके हैं.
इस वजह से 2018 में चुनाव नहीं लड़ पाए थे लूला डी सिल्वा
लूला डी सिल्वा 5वीं पास हैं. उन्हें 2018 में भ्रष्टाचार के मामले में सजा सुनाई गई थी, जिस वजह से उन्हें उस साल चुनाव में दरकिनार कर दिया गया था. इस कारण, तत्कालीन उम्मीदवार बोलसोनारो की जीत का मार्ग प्रशस्त हुआ था. (इनपुट: AP, भाषा)
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राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद भी लूला डी सिल्वा सत्ता से दूर, ब्राजील में इतने ताकतवर क्यों हैं बोलसोनारो?