डीएनए हिंदी: श्रीलंका कंगाली की कगार पर पहुंच चुका है. स्थिति ये है कि ना लोगों के पास रोटी है ना रोजगार. बिजली और पानी जैसी जरूरी चीजों की इतनी किल्लत है कि लोग सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गए हैं. आखिर ऐसा क्या हो गया कि एक अच्छा-खासा फलता-फूलता देश ऐसी बदहाल स्थिति में पहुंच गया? सीधे तौर पर इसका जवाब यह है कि श्रीलंका का खजाना खाली हो चुका है.

ये जवाब सुनकर कोई भी तपाक से दूसरा सवाल कर सकता है कि खजाना खाली कैसे हो गया? अब इस सवाल के जवाब के लिए हमें परत दर परत श्रीलंका के राजनीतिक इतिहास को खंगालना होगा, जिस पर सालों से सिर्फ एक ही परिवार का राज चलता आ रहा है.

भाई-बेटे और भतीजे चला रहे हैं सरकार
श्रीलंका के आर्थिक संकट से जुड़ी फिलहाल की अहम खबर यह है कि प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को छोड़कर सरकार के सभी मंत्रियों ने सामूहिक तौर पर इस्तीफा दे दिया है. अब सरकार में शामिल इन मंत्रियों की सूची पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि आधे से ज्यादा मंत्री राजपक्षे परिवार से ही हैं. 

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  • श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं गोटबया राजपक्षे.
  • श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं महिंदा राजपक्षे, जो राष्ट्रपति के बड़े भाई हैं. महिंदा राजपक्षे के पास श्रीलंका का शहरी विकास मंत्रालय भी है. महिंदा राजपक्षे, -इससे पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति भी रह चुके हैं. 
  • राजपक्षे परिवार के सबसे बड़े भाई, चमल राजपक्षे श्रीलंका के गृहमंत्री हैं.
  • प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे श्रीलंका के खेल मंत्री हैं. टेक्नोलॉजी मंत्रालय भी नमल राजपक्षे के पास है.
  • चमल राजपक्षे के बेटे शाशेंन्द्र राजपक्षे श्रीलंका के कृषि मंत्री हैं.
     

दो दशकों से है राजपक्षे परिवार का राज
राजपक्षे परिवार पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से श्रीलंका की सत्ता पर काबिज है.इसके पीछे महिंदा राजपक्षे की अहम भूमिका रही है. उन्होंने ही साल 2009 में लिट्टे (LTTE) को जड़ से उखाड़ फेंका था और श्रीलंका के दशकों पुराने गृहयुद्ध को खत्म किया था.  वह साल 2004 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने थे. यह कार्यकाल सिर्फ 2005 तक ही रहा. इसके बाद वह देश के राष्ट्रपति बन गए औऱ सन् 2015 तक रहे. यानी बीते 18 सालों से राजपक्षे परिवार के पास ही श्रीलंका की सत्ता की चाबी रही है.

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संविधान संशोधन कर लड़ा था चुनाव
साल 2015 तक महिंदा राजपक्षे दो बार श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे चुके थे. तीसरी बार उन्होंने संविधान में संशोधन करवा कर चुनाव लड़ा. इस दौरान विपक्ष से उन्हें मात मिली. इसके बाद अपराध और अल्पसंख्यकों के मुद्दे को लेकर विपक्ष की सरकार सत्ता में तो आई, मगर सफल नहीं हो सकी. फिर एक बार जनता ने राजपक्षे परिवार को मौका दिया. साल 2019 में श्रीलंका में ईस्टर बम धमाकों के बाद हुए आम चुनावों में गोटबाया राजपक्षे को आसान जीत मिल गई और वह राष्ट्रपति बन गए.

नहीं लिए गए सही फैसले
जानकार बताते हैं कि श्रीलंका में हालात बीते एक दशक से ही खराब होते जा रहे हैं, लेकिन साल 2020 के बाद से स्थिति नियंत्रण के बाहर चली गई. कोरोना महामारी के बीच श्रीलंका सरकार ऐसे फैसले नहीं ले पाई जिससे देश की अर्थव्यव्सथा सुचारु रूप से चल सके. इसी के साथ श्रीलंका के आर्थिक हालात बद से बदतर होते चले गए और अब नतीजा सबके सामने है. 

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भाई और भतीजे चला रहे हैं श्रीलंका की सरकार, जानें पूरा इतिहास
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Mahinda Rajapaksa with brother Gotabaya Rajapaksa (right)
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Mahinda Rajapaksa with brother Gotabaya Rajapaksa (right) 

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Sri lanka कैसे हो गया कंगाल, क्या भाई-भतीजावाद है इसका जिम्मेदार?