अगर आपने कभी इस पर विचार नहीं किया तो कोई बात नहीं. हम आज वर्ल्ड चेस डे के मौके पर आपको इस खेल से जुड़ा इतिहास बताने वाले हैं.
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शतरंज यानी चेस बोर्ड में 64 खाने होते हैं. इनमें से 32 काले और 32 सफेद होते हैं. हर खिलाड़ी के पास एक राजा, वजीर, दो ऊंट, दो घोड़े, दो हाथी और आठ सैनिक होते हैं.
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बताया जाता है कि बौद्धिक मनोरंजन वाले इस खेल को चतुंरग नाम के एक बुद्धि-शिरोमणि ब्राह्मण ने पांचवी-छठी सदी में बनाया था.
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यह खेल मूल रूप से भारत का आविष्कार है. पहले इसे चतुरंग नाम से जाना जाता था. यह खेल भारत से अरब होते हुए यूरोप गया और फिर 15वीं/16वीं शताब्दी में पूरी दुनिया में मशहूर हो गया.
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शतरंज छठी शताब्दी के आसपास भारत से मध्य-पूर्व और यूरोप में फैला. यहां यह जल्दी ही लोकप्रिय हो गया. ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है कि शतरंज छठी शताब्दी से पहले आधुनुक खेल जैसे किसी खेल के रूप में था या नहीं. रूस, चीन, भारत, मध्य एशिया, पाकिस्तान और दूसरी जगहों पर पाये गए मोहरे जो इससे पुराने समय के बताए गए हैं, पहले के कुछ मिलते-जुलते बोर्ड वाले खेलों के माने जाते हैं जो कई पासों और कभी-कभी 100 या ज्यादा चौखानों वाले बोर्ड का प्रयोग करवाते थे.
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चतुरंग का विकास कैसे हुआ यह साफ नहीं है. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि चतुरंग जो शायद 64 चौखानों के पट्ट पर खोला जाता था धीरे-धीरे शतरंज में बदल गया, जो उत्तरी भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के दक्षिण भागों में 600 ई के बाद दो खिलाड़ियों वाला खेल बन गया.