शराब पीने के शौकीन लोगों को चखना के बारे में अच्छे से पता होगा. कई बार जो लोग शराब का सेवन नहीं करते वो भी चखना खाने के चक्कर में महफिल में चले जाते है. लेकिन आखिर ये चखना है क्या इसकी शुरूआत कब हुई और इसे शराब के साथ क्यो खाया जाता है. आइए इसकी हिस्ट्री और कैमिस्ट्री दोनों जानते हैं. अमीर हो या गरीब, सभी के लिए उसकी हैसियत के हिसाब से चखने की एक पूरी रेंज उपलब्ध है. चखने में कई तरह के आइटम पेश किए जाते हैं. 

चने से लेकर चिली चिकन तक सब चखना
चने से लेकर चिली चिकन और तले हुए ड्राईफ्रूट्स भी चखना है. ये शराब पीने वाले की हैसियत पर निर्भर करता है. कई लोगों के लिए सतमोला या हाजमोला की गोली भी चखना है, कई लोगों के लिए सेब, अंगूर और पपीता चखना हैं. शराब पीने वाले को अगर चखना मिल जाए तो वह महफिल उत्सव के रूप में बदल जाती है. आइए जानते है कि पीने की प्रक्रिया को 'उत्सव' में बदल देने वाला यह चखना आखिर कैसे भारतीय मदिरापान संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गया? 

हैसियत के अनुसार बदलता है चखना
इस शब्द का इस्तेमाल मुख्य तौर पर उत्तर और मध्य भारत में किया जाता है. शराब पीने के साथ हम जो भी चींजे खा सकते है वह सभी चखना होती है. शुरुआत में चखना खीरा, प्याज, टमाटर, दाल फ्राई, पापड़, मूंगफली हुआ करता था लेकिन समय से साथ इसके मेन्यू में कई तरह की चीजें शामिल होती चली गई. मूंगफली, मसाला मूंगफली, प्याज-टमाटर के साथ मूंगफली, पापड़, मसाला पापड़, फ्राइड पापड़, रोस्टेड पापड़, दालमोठ, भुजिया, चकली, चिप्स, फ्रायम, मूंग दाल, चने की दाल, हरे मटर की दाल, चिवड़ा, मठरी, भाकरवड़ी, टिक्का, कबाब, तंदूरी चिकन, चिकन लॉलीपॉप ये सभी चखना है, बस ये सब पीने वाले की हैसियत पर निर्भर करता हैं. 

अलग-अलग नाम
जिस प्रकार भारत में राज्य बदलने पर कुछ स्वाद, पानी, रंग, सुगंध बदलती है. वैसे ही यहां पर हर जगह का अपना एक अलग चखना है. अंग्रेजी शब्दावली में चखना का सबसे नजदीकी पर्यायवाची है बार स्नैक्स (Bar Snacks). इसके अलावा, इसे munchies या nibbles या cocktail snacks के नाम से भी पुकारा जाता है. स्पेनिश में इसे तापास (tapas) कहते हैं.  

इसकी शुरूआत 
शराब पीने के साथ कुछ खाने की परंपरा बहुत पुरानी हैं.  खान-पान के इतिहास पर नजदीक से नजर रखने वाले 19वीं शताब्दी की एक घटना को चखने के व्यवसायीकरण का मुख्य कारण मानते हैं. दरअसल बात 1838 की है. ऐसा बताया जाता है कि अमेरिकी शहर न्यू ऑरलियंस के एक बार ला बोरसे डि मास्पेरो ने पहली बार ग्राहकों को 'फ्री लंच' का तोहफा दिया. यहां ड्रिंक ऑर्डर करने वाले हर शख्स को एक प्लेट खाना फ्री में मिलता था. इसका मकसद ग्राहकों को और शराब पीने लिए लुभाना था. ये सही साबित हुआ. मुफ्त खाने के चक्कर में शराब की जमकर बिक्री हुई. 

नए-नए बनते रहे नियम
इसके बाद शराबबंदी के पक्ष में कनाडा, अमेरिका, नॉर्वे जैसे देशों में सामाजिक अभियान चला. इन अभियानों का असर हुआ कि शराब बिकने पर नए-नए नियम बनने लगे. ऐसा ही एक नियम 19 वीं शताब्दी के आखिर में न्यू यॉर्क में बना. इस नियम के तरह अब शराब केवल उन्हीं होटलों पर मिलेगी जहां पर 10 से ज्यादा कमरें हैं और ड्रिंक के साथ मुफ्त में खाने-पीने की सुविधा देते हो. इतना ही नहीं ये होटल भी केवल रविवार को ही शराब बेंच सकते हैं. अब जब शराब मिलना बंद हो गई तो शाम कर थक के आए लोग फिर शराब के लिए छोटी-छोटी दुकानें ढूंढने लगे जहां पर बिना पुलिस को बताए शऱाब बची जा रही थी. ये लोग कम पैसो के चक्कर में शराब के साथ घटिया क्वालिटी का खाना पसोसने लगे. 

खूब लग चुकी थी लत
इस समय तक लोगों में जकर शराब के साथ खाने की आदत लग चुकी थी. 1947 तक भारत में कभी भी शराबबंदी के बार में नहीं सोचा गया या कहे कि बहुत कम ही इस ओर ध्यान दिया गया. ऐसा इसलिए क्योंकि शराब अंग्रेजों की आय का बड़ा साधन था. आजादी के बाद से भारत में शराबबंदी की मुहीम चलाई गई. 20वीं शताब्दी की शुरुआत बॉम्बे में मेहनतकश मिल वर्करों की एक बड़ी आबादी तैयार हो रही थी, जो दिन भर की जीतोड़ मेहनत की थकान शाम को शराब के जरिए उतारती थी.
नशा करने वाले बढ़ते देख अमेरिका जैसी बंदिसे भारत में आ गई फिर शराब पीने वाले खाने के अभाव में रद्दी क्वालिटी का भोजन शराब के साथ करने लगे. ऐसी खबरें उस दौरान अखबारों में खूब छपा करती थी. 

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महफिल की शान बना चखना
इसके बाद 1950 में शराब बंदी तो हुई लेकिन चोरी-चोरी दारू बिकना शुरू हो गई. नशा करने वालों के लिए दुकान ढूंढना तब और आसान गया जब उनको इसके बारें में पता चला. लोग हमेशा कहीं अंडे का ठेला तो कहीं कबाब और कहीं पर मीट ढूंढने लगते थे. ऐसा इसलिए क्योंकि अक्सर जहां ये सारी चीजें मिलती थी तो उसके आस-पास कोई शानदार ठेका या शराब की दुकान होती थी. चने, मूंगफली, उबले अंडे बेचने वाले इन दुकानों की दोहरी जिम्मेदारी थी. एक, इन शराब की दुकानों का अघोषित साइनबोर्ड बनना और दूसरा पीने वालों के लिए खान-पान की सप्लाई बरकरार रखना. 

शराब के साथ चखने की क्यो लगती है तलब
अब शराब पीते समय चखना खाने की तलब क्यों होती है इसको लेकर वैज्ञानिक द एपरिटिफ इफेक्ट (the aperitif effect) बताया है. उनका मानना है कि शराब पीने के बाद दिमाग के हाइपोथैलेमस (hypothalamus) में कुछ बदलाव होते हैं, जिसके बाद खाने की महक पहले के मुकाबले ज्यादा लुभावनी लगती है. शराब लेपटीन नामक होर्मोन के असर को कम करता है. यह हार्मोन ही भूख की भावना को दबाने के लिए जिम्मेदार होता है. शराब पीने का अनुभव वाला कोई भी शख्स इस बात की तस्दीक कर सकता है कि कुछ घूंट के बाद सामान्य स्वाद वाली नमकीन मूंगफली भी और ज्यादा स्वादिष्ट लगने लगती है. 

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शराब के साथ खाई जाने वाली चीजों को क्यों कहते है चखना, क्या है हिस्ट्री, कैसे बन
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शराब के साथ खाई जाने वाली चीजों को क्यों कहते है चखना, क्या है हिस्ट्री, कैसे बना ये महफिल का साथी? 

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