डीएनए हिंदी: आगरा के कई गांवो में दिवाली आते ही खेतों में फसल की जगह बारूद बनाने का का शुरु हो जाता है. आगरा के धौर्रा और नगला खरगा गांव में देसी बम और पटाखे बनाने का काम शुरू हो गया है. यहां रहने वाले लोग जान की परवाह किये बिना अपने खेतों में बारूद की खेती कर रहें हैं. इस काम में पुरुषों के साथ बच्चे, महिलाएं तक शामिल रहते हैं. दीपवाली पर यहां बम बनाने का कार्य बड़ी तेजी से चल रहा है. पहचान छुपाने की शर्त पर स्थानीय लोगों ने बताया कि धौर्रा व नगला खरगा के देसी बम खूब बिकते हैं.
महंगाई के बाद भी देसी बम 3 रुपये, कुल्लड़ 25 रुपये, रोशनी 7 रुपये की मिल रहे हैं. मुनाफा काफी कम है, लेकिन पुश्तैनी काम होने के कारण इसे यह लोग लंबे समय से करते आ रहें हैं. बताया कि दिवाली से दो-तीन दिन पहले गांव के ज्यादातर घरों में पटाखे बनाये जाते हैं.
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अब तक धौर्रा और नगला खरगा गांव में बम-पटाखे बनाने के दौरान लगभग 20 हादसे हो चुके हैं. जिनमें 35 से ज्यादा जाने जा चुकी हैं. 2003 में जब्त पटाखों में एत्मादपुर थाने में हादसा हुआ था जिसमें दो लोगों की मौत हुई.
2003 में ही धौर्रा में बम बनाने के दौरान हादसे में एक की मौत हुई थी. अलगे साल 2004 में धौर्रा से बम ले जाते समय जवाहर पुल पर धमाका हुआ और एक की मौत हो गई.
2004 में ही बम ले जाते समय टेंपो में हादसा हुआ जिसमें दो लोगों ने अपनी जान गवाई. 2005 में धौर्रा के गोदाम में धमाके में तीन की मौत लोगों की मौत हुई. 2006 में नगला खरगा में घर में बम बनाते समय हादसे में तीन लोगों ने जान गवाई. 2007 में नगला खरगा में घर के बाहर धमाका हुआ जिसमें पांच लोगों की मौत हुई. इस तरह ये सिलसिला जारी 2016 तक जारी रहा.
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दीपावली से पहले देसी बम बनाने की सूचना पर एतमादपुर क्षेत्र के गांव धौर्रा व नगला खरगा में एडीएम प्रशासन अजय कुमार ने उपजिलाधिकारी अभय कुमार व प्रशिक्षु सीओ सैयद अरीब अहमद के साथ बुधवार शाम पटाखे बना रहे चार लोगों के यहां छापेमारी की और पटाखों को जब्त कर गोदाम सील कर दिए हैं.
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आगरा के इन गांवों में होती है बारूद की खेती, जान हथेली पर लेकर लोग करते हैं काम