डीएनए हिंदी: लिंगायत (Lingayats) समुदाय के लोग हिंदू वैदिक धर्म का पालन नहीं करते हैं. इन्होंने हिंदू धर्म की कई कुरीतियों को दूर करने के लिए लिंगायत समुदाय की स्थापना की थी. इसकी स्थापना समाज सुधारक बासवन्ना ने की थी. लिंगायत की स्थापना 12वीं शताब्दी में समाज सुधारकों मे की थी. इस दौरान वीरशैव समुदाय की भी स्थापना हुई थी. यह दोनों ही कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं. यह लोग न ही मूर्ति पूजा करते हैं और न ही वेदों में विश्वास रखते हैं. लिंगायत समुदाय में करीब 99 से ज्यादा उप-संप्रदाय हैं. इनमें से पंचमसालिस, गनिगा, जंगमा, बनजीगा, रेड्डी लिंगायत, नोनाबा और सदर प्रमुख उप संप्रदाय हैं. लिंगायत (Lingayats) समुदाय के लोग हिंदू धर्म (Hindu Dharma) से अलग एक धर्म का दर्जा चाहते हैं.
वैदिक धर्म के खिलाफ हैं ये लोग
कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिने जाने वाले लिंगायत समाज (Lingayats) के लोग वैदिक धर्म के खिलाफ हैं. यह लोग त्रिदेवों यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश की जगत की उत्पत्ति के कारक मानते हैं. यह लोग शैव संप्रदाय (Shaiv Sampradaya) को मानते हैं. हालांकि इनके रीति-रीवाज हिंदूओं से कई अलग हैं. यह हिंदूओं से अपनी अलग पहचान की मांग भी कर रहे थे.
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लिंगायत समुदाय की परंपराएं (Lingayat Community Traditions)
लिंगायत समुदाय के लोग शव को दफनाते हैं. जबकि हिंदू धर्म में व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे जलाया जाता है. लेकिन लिंगायत समुदाय के लोगों की परंपरा इससे बिल्कुल अलग हैं. वह लोग शव को जलाते नहीं बल्कि दफनाते हैं. यह शव को दो तरीकों से लिटाकर या बैठाकर दफनाते हैं. कई लिंगायतों के कब्रिस्तान भी अलग होते हैं.
मूर्ति पूजा का विरोध (Murti Puja ka Virodh)
लिंगायत समुदाय के संस्थापक बासवन्ना ने सभी वेदों को खारिज कर दिया था. वह मूर्ति पूजा के भी सख्त खिलाफ थे. यह मूर्ति पूजा नहीं करते हैं बल्कि ईष्टलिंग की पूजा करते हैं. ईष्टलिंग एक गेंदनुमा आकृति होती है. जिसे यह धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं. लिंगायत समुदाय में अंतरजातीय विवाह को मान्यता दी गई हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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कौन हैं लिंगायत समुदाय के लोग, जानें कैसे हिंदू रीति-रिवाजों से अलग हैं इनकी परंपराएं