डीएनए हिंदी: विघ्नहर्ता श्री गणेश हिंदू धर्म के प्रथम पूज्य भगवान हैं. सबके प्यारे बप्पा को अपना ये रूप कैसे मिला ये बात सभी जानते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका असली मस्तक कहां गया?
ऐसी मान्यता है कि श्रीगणेश का असल मस्तक चंद्रमंडल में है. इसी आस्था से धर्म परंपराओं में संकट चतुर्थी तिथि पर चांद के दर्शन व उन्हें जल चढ़ाकर भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है. वैसे संकट चतुर्थी हर महीने आती है लेकिन माघ महीने में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी की खास महिमा होती है.
इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए निर्जल व्रत करती हैं और पूजा के लिए तिल और गुड़ के लड्डू बनाए जाते हैं. कई जगह तो तिल और गुड़ से गणेश भी बनाए जाते हैं. दिन के आखिर में चंद्रमा को जल चढ़ा कर गणेश जी की आरती कर व्रत संपन्न होती है.
गणेश जी का असल मस्तक कटने से जुड़ी कहानी
शनिदेव बने थे वजह?
श्री गणेश के जन्म से जुड़ी दो पौराणिक मान्यता है. पहली मान्यता के अनुसार जब माता पार्वती ने श्रीगणेश को जन्म दिया, तब इंद्र, चंद्र सहित सारे देवी-देवता उनके दर्शन की इच्छा से उपस्थित हुए. इसी दौरान शनिदेव भी वहां आए, उन्हें श्राप मिला था थे कि उनकी क्रूर दृष्टि जहां भी पड़ेगी, वहां हानि होगी. इसलिए जैसे ही शनि देव की दृष्टि गणेश पर पड़ी श्री गणेश का मस्तक अलग होकर चन्द्रमण्डल में चला गया.
पिता भोलेनाथ के गुस्से की वजह से कटा सिर
इसी तरह दूसरे प्रसंग के मुताबिक माता पार्वती ने श्री गणेश को तन के मैल से तैयार किया और स्नान होने तक गणेश को द्वार पर पहरा देने और किसी को भी अंदर प्रवेश से रोकने का आदेश दिया. इसी दौरान भगवान शंकर वहां आए और जब श्रीगणेश ने अंदर जाने से रोका, तो अनजाने में भगवान शंकर ने श्रीगणेश का मस्तक काट दिया, जो चंद्र लोक में चला गया. बाद में भगवान शंकर ने पार्वती का गुस्सा शांत करने के लिए कटे मस्तक के स्थान पर गजमुख या हाथी का मस्तक जोड़ा.
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