जीवित्पुत्रिका व्रत पुत्र की लंबी आयु के लिए रखा जाता है. यह व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं और अगली सुबह व्रत खोलती हैं. इस व्रत का महत्व इस बात में है कि यह माताओं को अपने बच्चों के प्रति अपना प्यार और समर्पण दिखाने का अवसर देता है.
क्यों रखा जाता है जीतिया का व्रत
जीवित्पुत्रिका व्रत भारत और नेपाल में पुत्र की लंबी आयु के लिए मनाया जाता है. इस व्रत के दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब महाभारत युद्ध के दौरान द्रोणाचार्य की मृत्यु हो गई, तो उनके पुत्र अश्वत्थामा ने उनकी मृत्यु का बदला लेने के लिए क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया.
परिणामस्वरूप अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा का गर्भस्थ शिशु मर गया. तब भगवान कृष्ण ने उत्तरा के पुत्र को पुनर्जीवित कर दिया. उसी बालक का नाम जीवन्पुत्रिका था. तभी से मान्यता है कि माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए जितिया व्रत करने लगीं.
माताओं द्वारा किया गया हर व्रत उनकी संतान के जीवन में सदैव उपयोगी होता है. हमारे देश में अपनी बहादुरी साबित करने की कोशिश में कोई न कोई ये जरूर कहता है कि आज उसकी मां की तबीयत ठीक नहीं है, वो आज ठीक नहीं है.
जितिया व्रत शुभ मुहूर्त
जितिया व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इस बार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर दिन मंगलवार को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगी. 25 सितंबर को दोपहर 12:10 बजे समाप्त होगा. जितिया व्रत रखने वाली माताएं 25 सितंबर को पूरे दिन और रात उपवास करेंगी और अगले दिन यानी 26 सितंबर को व्रत खोलेंगी. इसका पारण सुबह 4.35 बजे से 5.23 बजे तक किया जाएगा.
जितिया व्रत का महत्व
जितिया व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है. माताएं अपने बच्चों के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान जीमूतवाहन की विधिवत पूजा करती हैं. ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से आपकी संतान पर हर तरह का संकट नहीं आता है. महिलाओं को यह व्रत हर साल करना होता है और इसे कभी नहीं छोड़ना होता है.
जितिया व्रत पूजा अनुष्ठान
जीवित्पुत्रिका व्रत रखने के लिए महिलाएं सुबह स्नान करके पूजा स्थल को गाय के गोबर से साफ करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं. इसके बाद महिलाएं वहां एक छोटा सा कच्चा तालाब बनाकर उसमें ताड़ के पत्तों की टहनी लगाती हैं. झील में जीमूतवाहन की मूर्ति स्थापित है. इस मूर्ति की पूजा धूप, अक्षत, रोली और फूल से की जाती है. इस व्रत में गोबर से गरुड़ और शेर की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं. इस पर सिन्दूर लगाया जाता है और इसके बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा कहकर पूजा संपन्न की जाती है.
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