शिव का उच्चारण देवादि देव, महादेव के रूप में किया जाता है. हाल के दिनों में शिव की मुद्रा काफी चर्चा का विषय रही है. यहां हम बात कर रहे हैं शिव द्वारा रखी गई अभय मुद्रा के बारे में. अभय मुद्रा हाल ही में संसद में काफी बहस का कारण रही है. आख़िर ये अभय मुद्रा क्या है? क्या शिव के अलावा किसी अन्य देवता की पूजा इस मुद्रा में की जाती है? जानिए इस आसन की खासियत और फायदों के बारे में...
भगवान शिव अभय मुद्रा के माध्यम से अपने भक्तों को अभय या सुरक्षा प्रदान करते हैं. इस मुहर के माध्यम से भगवान शिव ने भक्तों की रक्षा का वचन दिया है.
1. अभय मुद्रा क्या है..?
इस आसन का प्रयोग आमतौर पर योग और ध्यान के दौरान किया जाता है. यदि आप अभय मुद्रा में शिव को देखना चाहते हैं तो आप कुछ शिव मंदिरों में देख सकते हैं इसके अलावा आप इस मुद्रा में आपने गुरु नानकदेव,भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी को भी देखा होगा. इस मुद्रा में, दाहिने हाथ को कंधे की ऊंचाई तक उठाया जाता है, हथेली चौड़ी होती है और उंगलियां सीधी होती हैं. लेकिन ध्यान की स्थिति में बाएं हाथ को गोद में रखने का एक तरीका है. अभय मुद्रा का प्रयोग अधिकतर किसी को आशीर्वाद देते समय किया जाता है.
अभय मुद्रा का अर्थ:
संस्कृत में अभय का अर्थ है निर्भयता. यह आसन सुरक्षा का प्रतीक है. शांति स्थापित करना और भय को दूर करना निर्भयता का प्रतीक है. शिव अपने भक्तों को आशीर्वाद देते समय इस मुद्रा का प्रयोग करते हैं. दूसरों से वादा करते समय इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है.
अभय मुद्रा के क्या फायदे हैं?
आप तमिलनाडु के 11वीं शताब्दी के चोल काल की इस अभय मुद्रा में नटराज की एक मूर्ति भी देख सकते हैं. जो कोई भी इस मुद्रा का पालन करता है उसके जीवन की सभी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है. इस मुद्रा का प्रयोग अक्सर योग और ध्यान के दौरान किया जाता है.
अभय मुद्रा के फायदे
अभय मुद्रा व्यक्ति के लिए आशा की मूलभूत मुहर है. इस मुद्रा के जरिए आत्मविश्वास जागता है. अभय मुद्रा करने से मन में निडरता, सुरक्षा और आंतरिक शक्ति का भाव मजबूत होता है. इस मुद्रा का नियमित अभ्यास हमारे मन और शरीर को संतुलित रखता है और भय को दूर करता है. अभय मुद्रा से हमें कई स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं.
अभय मुद्रा कैसे करें?
इसे आमतौर पर दाहिने हाथ को कंधे की ऊंचाई तक उठाकर, हाथ को मोड़कर और हथेली को बाहर की ओर करके, उंगलियों को सीधा और जोड़कर और बाएं हाथ को नीचे लटकाकर बनाया जाता है. थाईलैंड और लाओस में, यह मुद्रा वॉकिंग बुद्धा से जुड़ी हुई है, जिसे अक्सर दोनों हाथों से एक समान अभयमुद्रा बनाते हुए दिखाया जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
ख़बर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से जुड़े.
- Log in to post comments
शिव की अभय मुद्रा का अर्थ जानते हैं आप? समझकर अपना लिए तो बदल जाएगी तकदीर