डीएनए हिंदीः आज आप जिस 5वें ज्योतिर्लिंग की पूजा अपने ही देश में कर ले रहे उसका श्रेय भगवान विष्णु को जाता है, क्योंकि उनकी लीला काम न आती तो रावण भगवान शिव को लंका में बसा देता. रावण और भगवान शिव यह का किस्सा बहुत ही रोचक है.
झारखंड स्थित देवघर में स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है कि एक समय रावण इस ज्योतिर्लिंग केा लंका में बसाने की जिद कर बैठा था. क्योंकि रावण भगवान शिव के परम भक्त था और उसकी भक्ति से शिवजी प्रसन्न भी थे. एक बार रावण ने शिवजी को लंका ले जाने के लिए तपस्या शुरू की और अपनी तपस्या सफल बनाने के लिए अपने ही सिर की बलि देने जा रहा था. जब रावण अपना दसवां सिर काटकर शिव जी के चरणों में रखने लगा तो शिव जी प्रगट हुए और रावण से वर मांगने को बोले. रावण ने कहा कि आप मुझ पर कृपा करना चाहते हैं तो मेरे साथ लंका चलिए.
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भगवान शिव रावण के मन की बात समझ रहे थे इसलिए उन्होंने रावण से लंका चलने की हामी तो भर दी लेकिन एक शर्त के साथ. शिवजी ने रावण को वरदान देते हुए कहा कि मैं सशरीर लंका में नहीं रह सकता हूं लेकिन तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करने के लिए एक ज्योतिर्लिंग देता हूं जो साक्षात मेरा स्वरूप होगा.
इस ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा तुम्हारे साथ रहूंगा लेकिन शर्त है कि तुम लंका ले जाने के बीच तुम इस ज्योतिर्लिंग को धरती पर नहीं रखोगे वरना जहां तुम इसे धरती पर रखोंगे वहीं वह स्थापित हो जाएंगे. रावण शर्त मान गया लेकिन देवतागण नहीं चाहते थे कि रावण इस ज्योतिर्लिंग को श्रीलंका ले जाए.
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इसलिए भगवान विष्णु से सहायता मांगने पहुंच गए. देवताओं की मदद के लिए भगवान विष्णु ने एक लीला रची और रावण को तेज लघुशंका आ गई. रावण सोच में पड़ गया कि शिवलिंग को हाथ में लेकर कैसे लघुशंका करूं क्योंकि इससे शिव जी का अपमान होगा.
रावण को उलझन में देखकर भगवान विष्णु स्वयं चरवाहे बालक का रूप धरकर रावण के पास पहुंच गए. रावण ने बालक से अनुरोध किया कि जबतक मै लघुशंका करता हूं इस शिवलिंग को तुम हाथों में उठाए रखो. बालक बने भगवान ने रावण से वह शिवलिंग ले लिया.
रावण जब लघुशंका करने लगा तो देवी गंगा उसके पेट में समा गईं और रावण की लघुशंका से एक तालाब बन गया. दूसरी ओर भगवान विष्णु ने रावण को लंबे समय तक लघुशंका करते हुए देख तो अपने हाथों में रखे ज्योतिर्लिंग को भूमि पर रख दिया. रावण जब लघुशंका से लौट तो वहां बालक को नहीं पाया और शिवलिंग भूमि में स्थापित देखा. रावण ने पूरा जोर लगा दिया लेकिन ज्योतिर्लिंग टस से मस नहीं हुआ. इस तरह रावण की शिव को लंका में बसाने की आस अधूरी रह गई और देवघर में बैद्यनाथं ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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Ravan Kissa: लघुशंका के चलते शिव को लंका नहीं ले जा पाया था रावण, चाहत रह गई अधूरी