हिंदू धर्म में सभी तिथियों में सबसे ज्यादा महत्व पुत्रदा एकादशी का होता है. इस तिथि को बेहद विशेष माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने के साथ ही व्रत किया जाता है. इससे पालनहार भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम मानी गई है. इनमें पौष कृष्ण पक्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. इस बार यह व्रत 10 जनवरी 2025 को रखा जाएगा. आइए जानते हैं इस व्रत की कथा से लेकर तारीख और महत्व...
इस दिन है पुत्रदा एकादशी
पुत्रदा एकादशी का व्रत 10 जनवरी 2025 को रखा जाएगा. इसमें भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से उनकी कृपा प्राप्त होगी. इसके अगले दिन द्वादशी तिथि में व्रत का पारण किया जाएगा. पंचांग के अनुसार पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण 11 जनवरी 2025 को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 21 मिनट तक कर सकते हैं.
यह है पुत्रदा एकादशी की कथा
प्राचीन समय में भद्रावती नगर में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था. सबकुछ होने के बाद भी वह दुखी रहता था, क्योंकि उसके कोई संतान नहीं थी. राजा की पत्नी का नाम शैव्या था. उस पुत्रहीन राजा के मन में इस बात का बहुद दुख था कि उसके बाद उसे और उसके पूर्वजों का पिंडदान कौन करेगा. बिना पुत्र के पितरों और देवताओं से उऋण नहीं हो सकते हैं. इन्हीं चिंताओं के बारे में सोचकर राजा हमेशा चिंतिंत रहता था. इस चिंता के कारण एक दिन राजा इतना दुखी हो गया कि उसके मन में अपने शरीर को त्याग देने की इच्छा याना आत्महत्या की इच्छा उत्पन्न हुई लेकिन वह सोचने लगा कि आत्महत्या करना तो महापाप है. यह सोचने के बाद राजा ने इस विचार कोअपने मन से निकाल दिया. एक दिन राजा घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर चल दिया. पानी की तलाश में राजा आगे बढ़ता रहा.
कुछ दूर जाने पर उसे एक नदी मिली. उस नदी के किनारे बैठे हुए ऋषियों को प्रणाम कर राजा उनके सामने बैठ गया. ऋषिवर बोले – ‘हे राजन! हम तुमसे बहुत प्रसन्न हैं. तुम्हारे मन में जो इच्छा है, हमसे कहो. हम निश्चय ही उसका हल निकालेंगे.’ राजा ने प्रश्न किया – ‘हे विप्रो! आप कौन हैं और यहां क्यों रह रहे हैं?’
ऋषि राजा से बोले – ‘हे राजन! आज पुत्र की इच्छा करने वाले को श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी का दिन है और आज से पांच दिन बाद माघ स्नान है, इसलिए हम सब इस नदी में स्नान करने आए हैं.’ ऋषियों की बात सुनकर राजा ने कहा – ‘हे मुनियो! मेरी भी कोई संतान नहीं है, अगर आप मुझसे प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे एक पुत्र का वरदान दीजिए.’
ऋषि बोले – ‘हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप इसका उपवास रखें और विधिवत पूजा-अर्चान करें. भगवान श्रीहरि की कृपा से आपके घर अवश्य ही पुत्र का जन्म होगा.’ राजा ने मुनि के कहे अनुसार पुत्रदा एकादशी के दिन उपवास किया और द्वादशी तिथि को व्रत का पारण किया और ऋषियों को प्रणाम करके वापस अपने नगर आ गया.
भगवान श्रीहरि की कृपा से कुछ दिनों बाद ही राजा की पत्नी गर्भवती हो गई और 9 महीने बाद राजा के घर एक तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ. यह राजकुमार बड़ा होने पर बहुत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक बना.” इस प्रकार जो भी निसंतान दंपति पुत्रदा एकादशी के दिन विधिवत उपवास करते हैं, तो श्रीहरि की कृपा से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी सामान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)
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