डीएनए हिंदी: (Pitru Paksha 2023) हर साल 16 दिनों के लिए आने वाले पितृपक्ष में पितरों की आत्मा शांति के लिए पिंडदान से लेकर तर्पण और श्राद्ध किया जाता है. इसे पितर प्रसन्न होते हैं. वहीं इनमें भी 4 तिथियां ऐसी हैं, जिनका बहुत ज्यादा महत्व है. इन तिथियों को पितृपक्ष में बेहद खास माना जाता है. इसकी वजह ये है कि आपको जिन भी अपने पूर्वजों की मृत्यु का सही समय और तिथि ज्ञात न हो. उनका तर्पण श्राद्ध आप इन 4 तिथियों में कर सकते हैं. इनसे पितरों का श्राद्ध पूर्ण होता है. पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होने के साथ ही जीवन सुख और शांति आती है. आइए जानते हैं कौन सी हैं ये 4 खास तिथियां...
मातृ नवमी पर करें मां का श्राद्ध
मां उम्र भर अपने बच्चों का ध्यान रखती है. अपना जीवन उन्हीं की देखभाल में निकाल देती है. बच्चों को भी मां के लिए बहुत ही स्नेह और प्यार होता है, लेकिन इसबीच अगर कोई अपनी मां की मृत्य तिथि भूल जाता है तो 7 अक्टूबर यानी मातृ नवमी को उनका श्राद्ध कर सकता है. यह दिन माताओं के श्राद्ध के लिए हैं. इस तिथि में मृत मां का श्राद्ध करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है. जीवन में सभी संकट और कष्ट दूर हो जाते हैं. सुख समृद्धि का वास होता है. इस दिन सभी महिलाओं का सम्मान करना चाहिए. घर में भी महिलाओं को आदर भाव देना चाहिए. किसी गरीब ब्राह्मण महिला को घर में भोजन कराना चाहिए. साथ ही दान दक्षिणा देनी चाहिए.
पितृपक्ष की इंदिरा एकादशी का महत्व
इस बाद पितृपक्ष में इंदिरा एकादशी पड़ रही है. यह 10 अक्टूबर को है. शास्त्रों में पितृपक्ष में आने वाली इंदिरा एकादशी का बड़ा महत्व बताया गया है. इस दिन व्रत करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है. शास्त्रों की मानें तो इस दिन अपने पूर्वजों का विधि पूर्वक श्राद्ध करने के साथ ही ब्राह्मणों को भोजन कराने व दान पुण्य करने पर कभी यमलोक में जाना नहीं पड़ता. वहीं स्वर्ग सिधार चुके पूर्वज और पितरों को प्रेम योनि से भी मुक्ति मिल जाती है. यह दिन भगवान विष्णु का होता है. ऐसे में इंदिरा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा के साथ पितरों का भी पूरी श्रद्धा के साथ स्मरण करना चाहिए.
चतुर्दशी श्राद्ध या अचमृत्यु श्राद्ध कब है
पितृपक्ष की चतुर्दशी श्राद्ध का बहुत ही बड़ा महत्व है. इस दिन अकाल मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोगों का श्राद्ध किया जाता है. शास्त्रों की मानें तो मुख्य रूप से इस तिथि में सड़क दुर्घटना, आत्महत्या, हत्या, बीमारी या फिर अन्य कारणों से असमय मृत्यु को प्राप्त होने वाले पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है. इसे अचमृत्यु श्राद्ध भी कहा जाता है. इस बाद चतुर्दशी तिथि 13 अक्टूबर को पड़ रही है. ऐसे में 13 अक्टूबर को चतुर्दशी श्राद्ध किया जाएगा. इसको लेकर महाभारत में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि जिन लोगों की अस्वाभाविक मृत्यु होती है. उकना श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करना चाहिए.
सर्वपितृ अमावस्या है बेहद खास
सर्वपितृ अमावस्या पितृपक्ष का आखिरी दिन होता है. इस दिन धरती 16 दिनों के लिए धरती पर आए पितर वापस परलोक लौटते हैं. इस दिन उन सभी पूर्वज पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी तारीख और तिथि भूल चुके हैं. इसे आपके सभी पूर्वज और पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है. धरती से वापस परलोक लौटते समय तृप्ति होती है. इस बार सर्वपितृ अमावस्या 14 अक्टूबर को है. इस दिन ब्राह्मणों को जरूर भोजन कराना चाहिए. साथ ही उनको दान करना चाहिए. इसे महालया श्राद्ध भी कहा जाता है. इस दिन विशेष रूप से श्राद्ध करने के बाद शाम के समय दक्षिण दिशा में सरसों का दिया जलाना चाहिए. इसे पितर प्रसन्न होते हैं. सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.)
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पितृपक्ष के 16 दिनों में से ये 4 दिन होते हैं बेहद खास, जानें इन तिथियों का महत्व और किसका कर सकते हैं श्राद्ध