पितृ पक्ष वह समय है जब लोग अपने मृत रिश्तेदारों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं. ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पिता मृत्युलोक में प्रवेश करते हैं. अपने परिवार द्वारा किए गए श्राद्ध से संतुष्ट होकर वह अमास के दिन पुन: पैतृक घर लौट आते हैं. परिवार के सदस्यों द्वारा किए गए भक्तिपूर्ण कार्यों से प्रसन्न होकर पिता उन्हें सुख, समृद्धि और संतान का आशीर्वाद देते हैं. पितरों के श्राद्ध की तिथि भी नियमानुसार तय की जाती है.
पितृ पक्ष के दौरान पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध किया जाता है. जो लोग श्राद्ध नहीं करते उन्हें पितृदोष लगता है और उन्हें जीवन में कई कष्टों का सामना करना पड़ता है. आइए आज हम आपको पितृत्व से जुड़े महत्वपूर्ण नियमों के बारे में बताते हैं.
पितृ पूजन का महत्वपूर्ण नियम
1. श्राद्ध कर्म अपने से तीन पीढ़ी पहले तक करना चाहिए. अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को पिता, दादा और परदादा के साथ-साथ छोटे का भी श्राद्ध करना चाहिए.
2. श्राद्ध केवल उसी तिथि या उसके आसपास किया जाता है जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई हो लेकिन कई बार लोगों को पूर्वजों की मृत्यु की तिथि पता नहीं होती है. ऐसे में सर्व पितृ अमास के दिन श्राद्ध किया जाता है.
3. जिन लोगों की प्राकृतिक मृत्यु हुई हो और वह दिन चौदश तिथि को पड़ता हो तो उनका श्राद्ध तेरहवीं तिथि या अमास के दिन किया जाता है.
4. यदि किसी की अकाल मृत्यु दुर्घटना, सर्पदंश, आत्महत्या या हत्या के कारण हुई हो तो उसका श्राद्ध चौदहवीं तिथि को करना चाहिए. भले ही व्यक्ति की मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो लेकिन अकाल मृत्यु की स्थिति में श्राद्ध चौदहवीं तिथि को करना चाहिए.
5. सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध पितृ पक्ष की नवमी तिथि के दिन किया जाता है. एक भाग्यशाली महिला की मृत्यु किसी भी तिथि को हो सकती है लेकिन उसकी श्रद्धा नाम तिथि एक ही होती है.
6. यदि किसी ब्रह्मचारी या तपस्वी की मृत्यु हो जाती है तो उसका श्राद्ध बारासा के दिन किया जाता है.
7. नाना-नानी का श्राद्ध शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को ही किया जाता है.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श करें.)
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आकस्मिक मृत्यु, अविवाहित व्यक्ति और स्त्री का श्राद्ध किस तिथि को करना चाहिए?