डीएनए हिंदीः 26 सितंबर से इस बार नवरात्रि (Navratri) शुरू हो रही है और पहले दिन से कन्या पूजन कई लोग करते हैं. कन्या पूजन (Navratri Kanya Pujan) करते समय क्या आपको पता है कि एक नहीं बल्कि दो बालकों की पूजा भी क्यों जरूरी होती है? देवी पूजा में कन्याओं को तो देवी के रूप में पूजा जाता है लेकिन बालक क्यों पूजे जाते हैं? चलिए इसके पीछे की मान्यता और महत्व के बारे में बताएं.
नवरात्रि के सभी नौ दिनों में देवी स्वरुप कन्याओं के पूजन का विधान है. जो हर दिन कन्या पूजन नहीं करते वे अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन करते हैं. इसे कन्या जिमाना भी कहते हैं लेकिन कन्या के साथ दो लांगुर का होना भी जरूरी होता है. लांगुर यानी दो लड़के. इस दिन कुंवारी कन्यायों के साथ कुंवारे लड़के भी पूजे जाते हैं और बिना इनके कन्या पूजन पूर्ण नहीं माना जाता है.
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इसलिए पूजे जाते हैं बालक, कितनी उम्र के लड़के होते हैं लांगुर
कन्याओं की पूजा के साथ दो बालक देव स्वरूप माने गए हैं. ये बालक भगवान गणेश और भैरव बाबा का रूप होते हैं. मान्यता है कि बिना गणपति की पूजा के कोई पूजा स्वीकार्य नहीं होती और भैरव बाबा देवी दुर्गा के पहरेदार माने गए हैं और देवी पूजा के बाद उनकी पूजा न की जाए तो पूजा अधूरी रहती है. पूजा में 1 से 9 वर्ष के आयु के बालक और कन्याओं को ही पूजना चाहिए.
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ऐसे करें कन्या व बालकों का पूजन
इस पूजन के लिए कन्याओं और बालकों के चरण धो कर साफ स्थान पर आसन बिछा कर एक पंक्ति में बैठाएं. इसके बाद मंत्रोच्चार के साथ रोली चावल और कुमकुम से उनका पूजन करके कलाई पर कलावा बांधे. इसके बाद उन्हें हलवा, पूरी, चना और अन्य भोजन, मिष्ठान चढ़ाएं. भोजन के बाद सभी को यथायोग्य भेंट और दक्षिणा देकर विदा करें. विदा करते समय कन्याओं के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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Navratri : कन्या पूजन में लांगूर के तौर पर ज़रूर होने चाहिए 2 बालक, जानें इस पूजा का महत्व और विधान