डीएनए हिंदी: भारतीय संस्कृति में विवाह (Hindu Wedding) को बहुत ही अधिक महत्व दिया जाता है. यहां पर विवाह को न सिर्फ दो लोगों को बल्कि दो परिवारों का मिलन माना जाता है. हिंदू धर्म (Hindu Dharma) में तो शादी-विवाह के दौरान कई रीति-रिवाजों और रस्मों (Hindu Tradition) को निभाया जाता है. हिंदू धर्म में विवाह के दौरान कई रस्में निभाई जाती हैं. इनमें से एक रस्म ऐसी है कि जिसके बिना शादी को अधूरा माना जाता है. इसी रस्म के बाद वर और वधू पति-पत्नि कहलाते हैं. आज हम ज्योतिषाचार्य प्रीतिका मजूमदार से इस रस्म के बारे में जानते हैं. शादी की इस रस्म को सप्तपदी (Saptapadi Tradition) कहते हैं. यह रस्म विवाह को पूर्ण संपन्न कराने के लिए बहुत ही जरूरी होती है. विवाह के दौरान वधू को वर के दाएं बैठाते हैं लेकिन कुछ देर बाद वधू को वर के बाएं बिठाते हैं. ऐसा सप्तपदी की रस्न (Saptapadi Tradition) के बाद ही किया जाता है. 

सप्तपदी रस्म (Saptapadi Tradition)
शादी में सात फेरों के बाद सप्तपदी की रस्म निभाई जाती है. इस रस्म में वर-वधू के सामने चालव की 7 ढेरी बनाई जाती है. सात मंत्रों के उच्चारण के साथ इन्हें मिटाया जाता है. एक-एक मंत्र के बाद एक-एक ढेरी को पैर के अंगुलियों से मिटाया जाता है. इस दौरान पति पत्नी के वैवाहिक जीवन के लिए 7 मंत्र बोले जाते हैं. इनमें से पहला मंत्र अन्न के लिए, दूसरा मंत्र बल के लिए, तीसरा मंत्र धन के लिए, चौथा मंत्र सुख के लिए, पाँचवा मंत्र परिवार के लिए, छठा मंत्र ऋतुचर्या के और सातवाँ मंत्र मित्रता के लिए होता है. इन मंत्रों के जरिए पति पत्नी के सुखमय जीवन यापन की आशा की जाती है.

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सप्तपदी रस्म के बाद ही वधू  बनती है पत्नी
सप्तपदी रस्म के दौरान वधू वर के दाएं ओर बैठती है और इस रस्म के बाद पत्नी को बाएं बैठाते हैं क्योंकि इस रस्म के बाद वधू पत्नी बन जाती है. पत्नी को वामांगी कहते हैं. वामांगी का अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी पत्नी को पति के बाएं अंग का अधिकारी कहते हैं. यहीं वजह है कि किसी भी पूजा और रस्म में पत्नी को पति के बाएं बैठाया जाता है. इसके पीछे यह कारण है कि भगवान शिव के बाएं अंग से ही शक्ति की उत्पति हुई थी.

सप्तपदी का महत्व (Saptapadi Significance)
सप्तपदी रस्म के महत्व को महाभारत में बताया गया है. महाभारत के अनुसार, जब भीष्म पितामह तीरों की शैय्या पर लेटे हुए थे उस दौरान उन्होंने युधिष्ठिर को बहुत सारे सांसारिक बातों के बारे में बताया था. भीष्म पितामह ने तभी युधिष्ठिर को बताया था कि जब तक वर वधू सप्तपदी रस्म को नहीं करते हैं वह पति पत्नी नहीं बनते हैं. इस रस्म के बाद ही लड़की में पत्नीत्व आता है और उसे पत्नी के अधिकार प्राप्त होते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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इस एक रस्म के बिना अधूरा रह जाता है विवाह, इसी के बाद वर-वधू बनते हैं पति पत्नि
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इस एक रस्म के बिना अधूरा रह जाता है विवाह, इसे करने के बाद ही वर-वधू बनते हैं पति पत्नी