भारत में कई तीर्थ स्थल हैं. हर जगह का अपना अलग चरित्र और अपना महत्व होता है. कहीं घूमने जाने से जीवन के सारे पाप धुल जाते हैं, तो कहीं घूमने जाने से सभी बीमारियों से मुक्ति मिलती है. व्यक्ति अपनी कठिनाइयों के अनुसार दर्शन के लिए जाता है. काशी मुक्ति और मोक्ष के लिए जानी जाती है. ऐसा कहा जाता है कि जो काशी में मरता है वह सीधे वैकुंठ जाता है. इस कारण कई लोग अपने जीवन के अंतिम वर्षों में काशी में ही रहते हैं.
काशी में कई ऐसे श्मशान हैं जहां 24 घंटे चिताएं जलती रहती हैं. यहां चिता की राख ठंडी नहीं होती. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि काशी की धरती पर कभी भी पांच लोगों के शव का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है. इस शव को श्मशान घाट से वापस भेजा जा रहा है. सोशल मीडिया पर एक नाविक का वीडियो वायरल हो गया है. इन रहस्यों से पर्दा किसने उठाया है. उन्होंने गंगा नदी पर खड़े होकर एक रहस्य का खुलासा किया है.
गंगा नदी पर पर्यटकों को नाव से ले जाते समय इस नाविक ने एक बड़ा रहस्य उजागर किया है. उन्होंने यह घोषणा करके सबको चौंका दिया कि काशी में पांच प्रकार के शवों को जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. कोई भी उनके शव का दाह संस्कार नहीं करता. इनमें पांच लोग शामिल हैं.
1-इस सूची में पहला नाम साधु-संत और भिक्षुओं का है. यहां संतों के शवों का दाह संस्कार नहीं किया जाता. उनके शरीर को या तो जल समाधि दी जाती है या मिट्टी समाधि. अर्थात् साधु का शरीर या तो पानी में विसर्जित कर दिया जाता है या जमीन में दफना दिया जाता है.
2-काशी में छोटे बच्चों के शवों का भी दाह संस्कार नहीं किया जाता. यदि कोई बच्चा बारह वर्ष की आयु से पहले मर जाता है तो उसका दाह संस्कार नहीं किया जाता. बारह वर्ष से कम आयु के बच्चों को भगवान का अवतार माना जाता है. यही कारण है कि इन्हें जलाना प्रतिबंधित है.
3-गर्भवती महिलाएं इस सूची में तीसरे नंबर पर हैं. जिन महिलाओं का पेट ही बच्चा मर जाता है और महिला की भी मौत हो जाती है खास कर 6 महीन से ऊपर की गर्भवती महिला का शरीर जलया नहीं जाता है क्योंकि उनका पेट फट जाएगा और अंदर का बच्चा बाहर उछलकर ऊपर की ओर उड़ जाएगा. यह बहुत भयानक लगेगा. इस कारण गर्भवती महिलाओं के शव का भी अंतिम संस्कार के बजाए उन्हे जल में प्रवाहित किया जाता है.
4- यहां तक कि काशी में सांप के काटने से मरने वाले लोगों का भी अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है. नाविक ने बताया कि ऐसा कहा जाता है कि सांप के काटने से मौत के बाद 21 दिनों तक मस्तिष्क में प्राण रहते हैं. इसलिए, उनके शवों को केले के तने से बांधकर पानी में फेंक दिया जाता है. इसके पीछे मान्यता यह है कि यदि कोई तांत्रिक इसे देख ले तो वह इसे पुनः जीवित कर सकता है. इसीलिए उनके शवों का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता.
5- इसके अतिरिक्त, जब कोई चर्म रोग या कुष्ठ रोग से पीड़ित रोगी मर जाता है, तो काशी में उसके शव का दाह संस्कार नहीं किया जाता. ऐसा कहा जाता है कि यदि उनके शवों को जलाया गया तो रोग के जीवाणु हवा में फैल जाएंगे और इससे अन्य लोग भी रोग का शिकार हो सकते हैं. इसी कारण काशी में उनके शव को जलाने पर प्रतिबंध है.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें.)
अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.
- Log in to post comments

हिंदू धर्म में किसे मरने के बाद नहीं जलाया जाता है?
हिंदू धर्म में किन 5 लोगों को मरने के बाद नहीं जलाया जाता है? जानिए इसके पीछे का कारण