डीएनए हिंदीः पोंगल पर (Pongal) जल्लीकट्टू (Jallikattu) बेहद रोमांचक लेकिन खतरे से भरा वो खेल है जो तमिलनाडु में मदुरै के तीन गांव में पोंगल (Pongal in 3 villages of Madurai in Tamil Nadu) के दौरान खेला जाता है. जल्लीकट्टू एक पारंपरिक तरीका है (Jallikattu is a traditional method) जिसका इस्तेमाल किसान देशी, शुद्ध नस्ल के सांड़ों की रक्षा के लिए करते हैं. 

तमिलनाडु के मदुरै जिले में 15 जनवरी यानी आज से 17 जनवरी के बीच जल्लीकट्टू का आयोजन होगा. कहा जाता है कि जल्लीकट्टू की उत्पत्ति तमिल शास्त्रीय युग के दौरान हुई थी, जो परंपरा 400 से 100 ईसा पूर्व से अब तक चली आ रही है. सांड़ों को वश में करने वाले इस खेल के बारे में आइए कुछ खास बातें जान लें.

जल्लीकट्टू के दौरान पारंपरिक भोजन का भी मिलता है आनंद
हर साल पोंगल पर सभी सड़कें सांड़ों के खेल स्थल बन जाती हैं और लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं. खेल देखने के लिए तीन गांवों में जा सकते हैं. खेल के अलावा भोजन इस आयोजन का एक प्रमुख आकर्षण है. जल्लीकट्टू के दौरान पारंपरिक भोजन जाव्वू मित्तई, वड़ा, बज्जी और बोंडा जैसी चीजों का आनंद लें.

तमिलनाडु में पोंगल पर मवेशियों की पूजा की जाती है
पोंगल के त्योहार के दौरान विशेष रूप से तमिलनाडु में मवेशियों की पूजा की जाती है और जल्लीकट्टू के नाम से जाना जाने वाला रिवाज मनाया जाता है. जल्लीकट्टू एक ऐसा खेल है जिसमें एक सांड़ को भीड़ के बीच छोड़ दिया जाता है और इस खेल में भाग लेने वाले लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वे जितनी देर तक हो सके सांड के पीठ को पकड़कर उसे अपने नियंत्रण में रखें. पहले बैल को वश में करने के लिए प्रतिभागियों को बैल के सींगों से बंधे सिक्कों का एक बंडल लेना पड़ता था लेकिन समय के साथ परंपरा बदली है.

जल्लीकट्टू 2023: इतिहास और महत्व
जल्लीकट्टू एक पारंपरिक तरीका है जिसका इस्तेमाल किसान देशी, शुद्ध नस्ल के सांडों की रक्षा के लिए करते हैं. कहा जाता है कि जल्लीकट्टू की उत्पत्ति तमिल शास्त्रीय युग के दौरान हुई थी, जो 400 से 100 ईसा पूर्व तक चली थी. नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में, सिंधु घाटी सभ्यता की प्रथा को दर्शाने वाली एक मुहर संरक्षित है. मदुरै में, एक बैल को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे एक अकेले आदमी को चित्रित करने वाली एक गुफा पेंटिंग लगभग 1,500 साल पुरानी होने का अनुमान है.

साड़ों को भी किया जाता है प्रशिक्षित
जल्लीकट्टू, जिसे 'इरु थज़ुवुथल' और 'मनकुविराट्टू' के नाम से भी जाना जाता है, एक गहन खेल है. 'मन कुथल' प्रक्रिया भी होती है जिसमें बैलों को गीली धरती में अपने सींग खोदकर अपने कौशल को विकसित करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. जब कोई उनके पीठ को पकड़ने की कोशिश करता है तो बैल हमला करने के लिए तैयार हो जाते हैं. इस परंपरा के तहत लोग साड़ों को बचाने के लिए एक संदेश देते हैं क्योंकि
गाय के प्रजनन की प्रक्रिया तेजी से कृत्रिम होती जा रही है, नर बैल आमतौर पर खेती और मांस के लिए उपयोग किए जाते हैं. जल्लीकट्टू किसानों को सांड़ों की स्वदेशी नस्ल को संरक्षित करने का संदेश देता है.

आज से जल्लीकट्टू 17 जनवरी 2023 तक खेला जाएगा 
2023 में जल्लीकट्टू का आयोजन तमिलनाडु के मदुरै जिले में 15 से 17 जनवरी के बीच किया जाएगा. त्योहार तीन गांवों में प्रमुखता से मनाया जाता है: अवनियापुरम, पलामेडु और अलंगनल्लूर. इन तीन जगहों पर तीन तारीखों को होगा. 15 जनवरी याना आज को अवनियापुरम में, 16 जनवरी को पलामेडु में और 17 जनवरी को अलंगनल्लूर में जल्लीकट्टू होगा.

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पोंगल पर सांड़ों को वश में करने के लिए आज मैदान में उतरे जांबाज
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Jallikattu: सांड़ों को वश में करने के लिए आज मैदान में उतरेंगे जांबाज
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Jallikattu: सांड़ों को वश में करने के लिए आज मैदान में उतरेंगे जांबाज

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सांड़ों को वश में करने के लिए आज मैदान में उतरे जांबाज, जल्लीकट्टू खेल के बारे जानें रोचक बातें