हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि से ही त्योहारों की शुरुआत हो जाती है. इसके बाद सबसे बड़ा त्योहार होली आती है. इस बार होली का त्योहार 14 मार्च 2025 को मनाया जाएगा. इससे एक दिन पहले होलिका दहन किया जाएगा. वहीं होलिका दहन से पूर्व होलाष्टक लगते हैं. इस बार होलाष्टक 7 मार्च 2025 से शुरू हो रहे हैं. यह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू होकर फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि यानी होलिक दहन पर खत्म होते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, होलाष्टक में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे शारी, गृह प्रवेश, मुंडन से लेकर नामकरण तक नहीं किया जाते हैं. इसकी वजह होलाष्टक में सभी ग्रहों का उग्र अवस्था में होना है. इनमें नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है. इसलिए इस अवधि के बीच कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता. आइए जानते हैं होलिका दहन की सही तिथि, तारीख से लेकर इसके नियम...
इस दिन है होलिका दहन (Holika Dahan)
होलिका दहन 13 मार्च 2025 को किया जाएगा. इसका शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 26 मिनट से लेकर 14 मार्च 2025 को सुबह 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगा. होलिका दहन के लिए लगभग 1 घंटे का समय मिलेगा. होलिक दहन पर भद्रा का विचार किया जाता है. होलिका दहन के दिन भद्रा सुबह 10 बजकर 35 मिनट से रात 11 बजकर 26 मिनट तक रहेगी. इसके बाद ही होलिका दहन किया जाएगा. वहीं इसके अगले दिन रंगों वाली होली 14 मार्च 2025 को मनाई जाएगी.
क्यों अशुभ माने जाते हैं होलाष्टक (Holashtak Significance)
होलाष्टक का संबंध भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्चप से जुड़ा हुआ है. पौराणिक कथाओं की मानें तो राजा हिरण्यकश्चप ने अपने पुत्र और भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को मारने के लिए फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि तय की थी. पूर्णिमा तिथि से आठ दिन पहले हिरण्यकश्चप ने प्रहलाद को कष्ट और यातनाएं दी थीं. उसे यह डराने के लिए किया गया था, लेकिन प्रहलाद भगवान विष्णु की भक्ति से जरा भी नहीं हिला. इस वजह से आठवें दिन यानी पूर्णिमा तिथि पर हिरण्यकश्चप की बहन होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोदी में बैठाया और भस्म करने की कोशिश की. इसमें विष्णु भक्त प्रहलाद को तो कुछ नहीं हुआ और होलिका आग में जलकर भस्म हो गई. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा तिथि से पहले के आठ दिन भक्त प्रहलाद को जो यातनाएं और कष्ट दिए गए थे. यही दिन होलाष्टक कहलाते हैं.
होलाष्टक में भूलकर भी न करें ये काम (Holashtak Niyam)
फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तिथि तक का समय होलाष्टक माना जाता है. होलाष्टक के बीच सभी ग्रह उग्र अवस्था में होते हैं. इस वजह से इस दौरान कुछ भी शुभ करने पर ग्रह उस पर अशुभ प्रभाव डालते हैं. यह अशुभ स्थिति बनी रहती है. ग्रहों की स्थिति अशुभ होने की वजह से इस दौरान कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. ग्रहों की स्थिति अनुकूल ना होने की वजह से व्यक्ति के अंदर निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है.
होलाष्टक में करें ये काम (Do These Work In Holashtak)
होलाष्टक के बीच 8 दिनों तक पूजा पाठ और जप तप करें. दान से लेकर अन्य पूजा संबंधी कार्य करना सही माना जाता है. इसके साथ ही हर दिन ऋण मोचन स्त्रोत, विष्णु सहस्रनाम, हनुमान चालीसा या श्रीसूक्त का पाठ करना चाहिए. पितरों को हर दिन तर्पण दें और उनका ध्यान करें. ग्रहों की शांति और पूजा यज्ञ भी करवा सकते हैं. होलाष्टक के बीच मथुरा वृंदावन की परिक्रमा करना बेहद शुभ होता है.
Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी सामान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)
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इस दिन से शुरू होंगे होलाष्टक, जानें इसकी सही तिथि, महत्व से लेकर नियम तक