डीएनए हिंदीः भारत में कई धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल हैं जहां से पुराने समय की कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. उत्तर भारत के हरियाणा में सोनीपत गांव के खेड़ी गुर्जर में एक ऐसी ही ऐतिहासिक जगह है. यहां पर सतकुंभा (Satkumbha Kund) नाम का करीब 5000 साल पुराना एक कुंड मौजूद है. इस कुंड का निर्माण सप्त ऋषियों ने घोर तपस्या के बाद किया था. यहां पर आज भी सभी दिशाओं से धाराएं बहती हैं. आज आपको इस सतकुंभा कुंड (Satkumbha Kund) के इतिहास और इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में बताते हैं.
सतकुंभा कुंड से जुड़ी प्राचीन मान्यताएं (Satkumbha Kund History)
प्राचीन समय में इस स्थल को स्वर्ग के रूप में जाना जाता था. यहां पर प्राचीन समय में चकवा बैन न्यायप्रिय एवं चक्रवर्ती सम्राट थे. वह राजकोष से खर्च न लेकर अपनी परिवार का खर्च खेती कर और स्वंय हल चलाकर करते थे. उनकी पत्नि रानी बिंदू मति भी स्वंय ही जल भरकर लाती थी. राजा चकवा बैन का प्रताप इतना था की सभी राजा उन्हें वार्षिक कर के रूप में सोना देते थे. यहां तक की रावण भी उन्हें कर देता था.
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ऋषि-मुनियों का स्थान
यह स्थान ऋषि-मुनियों का स्थान रहा है. यहां पर चुनकट ऋषि ने घोर तपस्या की थी. उन्होंने महाऋषि अंगीरा से ज्ञान की प्राप्ति की थी. चुनकट ऋषि का बचपन का नाम श्रीकांत था.
राजा चकवा बैन और चुनकट ऋषि में हुआ था युद्ध
चुनकट ऋषि का राजा चकवा बैन से युद्ध हुआ था जिस वजह से राजा चकवा की संपूर्ण सेना और राजधानी का सर्वनाश हो गया था. युद्ध के बाद चकवा बैन ने चुनकट ऋषि से क्षमा मांगी और वह हिमालय पर्वत पर तपस्या के लिए चले गए.
युद्ध के बाद निर्जीव हो गया था स्थान
राजा चकवा बैन से युद्ध के बाद यह स्थान पुरी तरह से निर्जीव हो गया था. जिसके बाद सप्त ऋषियों ने यहां पर घोर तप करके यहां सतकुंभा कुंड का निर्माण किया. यहां पर ऋषियों ने सात कुएं खोद कर तालाब स्थापित किए थे. इस सतकुंभा कुंड में 67 तीर्थ स्थलों का जल लाकर एकत्रित किया था. इसी वजह से इसे 68वां तीर्थ भी कहते हैं. इस सतकुंभा कुंड को लेकर यह मान्यता है कि यहां पर 11 अमावस्या, पूर्णिमा और रविवार के दिन स्नान करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. प्राचीन काल से इस सतकुंभा कुंड का जल आज तक नहीं सूखा है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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5000 साल बाद भी नहीं सूखा यह कुंड, आज भी बहती है जल धारा, घोर तप से ऋषियों ने किया था निर्माण