डीएनए हिंदी: रामायण (Ramayana) से जुड़े तमाम स्थलों की खोज ग्रंथों में बताई गई उनकी स्थितियों के आधार पर की जा चुकी है. ऐसे ही एक स्थल से आज हम आपको परिचित करा रहे हैं, जिसे रामायण के सबसे अहम अध्याया 'किष्किंधा कांड' की शुरुआत का द्वार भी माना जाता है. यह स्थल है प्रभु श्रीराम को उनके सबसे बड़े भक्त हनुमान से मिलवाने वाला हनुमान हल्ली (Hanuman Halli), जो कोप्पल (Koppal) जिले में मौजूद है. यह जगह आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) और कर्नाटक (Karanataka) को जोड़ने वाले बेल्लारी जिले में हनुमान का जन्म स्थान माने जाने वाली हंपी (Hampi) के बेहद करीब है. कन्नड़ भाषा में हल्ली का मतलब होता है गांव यानी इस जगह को आप 'हनुमान गांव' भी कह सकते हैं. यहीं पर है यंत्रोधारक हनुमान मंदिर (Yantrodharaka Hanuman temple), जिसे प्राणदेवारू मंदिर (PRANA DEVARU Temple) भी कहते हैं. यह हनुमान के सभी मंदिरों में सबसे विशिष्ट है, जिसकी विशिष्टता का जिक्र हम आपको इस खबर में आगे बताएंगे.
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तुंगभद्रा नदी जहां धनुष के आकार में बहती हैं, वहीं हुआ था मिलन
ग्रंथों में भगवान श्रीराम और हनुमान के मिलन का वर्णन करते समय तुंगभद्रा नदी (Tungabhadra River) का जिक्र किया गया है, जो हंपी से होकर गुजर रही है. जहां यह नदी धनुष जैसा आकार लेकर बहती है, वहीं हनुमान हल्ली मौजूद है. माना जाता है कि इसी नदी के किनारे मलयवन पहाड़ी पर जंगल में घूम रहे प्रभु श्रीराम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण की टोह लेने के लिए सुग्रीव के आदेश पर ब्राह्मण भेष धरकर आए हनुमान की मुलाकात उनसे हुई थी. इस मुलाकात के बाद प्रभु श्रीराम संग जुड़ा हनुमान का नाम करीब 7,000 साल बीतने के बावजूद आज भी अटूट है.
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यंत्रोधारक हनुमान मंदिर है इस कारण खास
यंत्रोधारक हनुमान मंदिर (YANTHRODHARAKA ANJANEYA PRANA DEVARU) तुंगभद्र नदी के किनारे कोडांदा राम मंदिर (Kodanda Rama temple) के पीछे 'चक्र तीर्थ' के करीब मलयवन पहाड़ी की चोटी पर स्थापित है. इसे प्रभु हनुमान के सबसे पवित्र धामों में से एक माना जाता है. यह मंदिर करीब 500 साल पहले 1460 से 1539 के बीच माधव संत श्री व्यासराजू (Madhwa Saint Sri Vyasarajaru) के कहने पर विजयनगर के तत्कालीन राजा तम्माराय (King Tammaraya) ने बनवाया था. व्यासराजू विजयनगर के तत्कालीन राजगुरु थे, जिन्होंने कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में बंटे मौजूदा भारत में हनुमान की करीब 732 मूर्तियां मंदिरों में प्रतिष्ठित कराई थीं. यंत्रोधारक हनुमान मंदिर इनमें सबसे पहला था.
इस मंदिर की खासियत है कि यहां हनुमान ध्यान मुद्रा में बैठे हुए हैं, जिन्हें एक यंत्र से घेरा गया है. यह मूर्ति एक चट्टान पर उकेरी गई है. मूर्ति के चारों तरफ बने यंत्र को ध्यान से देखने पर ये बंदरों से घिरा हुआ दिखाई देता है. हनुमान को यंत्र में बांधने वाली मूर्ति दुनिया में कहीं अन्य देखने को नहीं मिलती है. इस मंदिर के कैंपस में ही एक राम मंदिर भी मौजूद है, जो यहां राम-हनुमान मिलन की याद में बनाया गया है.
मूर्ति के पीछे है एक कहानी
कहा जाता है कि व्यासराजू एक बार इस जगह पर आए. एक दिन वे तुंगभद्र नदी में नहाने के बाद उसके किनारे ध्यान लगा रहे थे. इसी दौरान उनको ध्यान मुद्रा में एक बंदर की तस्वीर दिखाई दी. उन्होंने तत्काल वैसी ही तस्वीर एक कोयले के टुकड़े से चट्टान पर उकेर दी. मान्यता के मुताबिक, तस्वीर पूरी होते ही बंदर जीवित हो गया और उछल कर चट्टानों पर भाग गया. व्यासराजू ने 12 बार ऐसा किया और हर बार बंदर तस्वीर पूरी होते ही भाग गया. इसके बाद व्यासराजू ने तस्वीर बनाने के साथ ही यंत्र भी बनाया, जिससे वह तस्वीर स्थिर हो गई और इसी के साथ यंत्रोधारक आंजनेय हनुमान की मूर्ति अस्तित्व में आ गई. इसके बाद मंदिर बनवाकर पहाड़ी की चोटी पर उस मूर्ति को स्थापित कराया गया.
कैसे पहुंचे यंत्रोधारक हनुमान मंदिर
यंत्रोधारक हनुमान मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले आपको हंपी पहुंचना होगा. हंपी के सबसे करीब बेल्लारी एयरपोर्ट है, जो करीब 60 किलोमीटर दूर है. यह एयरपोर्ट करीब 360 किलोमीटर दूर मौजूद बेंगलुरू एयरपोर्ट से जुड़ा है. इसके अलावा भी देश के कुछ प्रमुख शहरों से यहां सीधी फ्लाइट आती है. बेल्लारी से हंपी तक बस सेवा के साथ ही निजी टैक्सियां भी मिलती हैं.
यदि आप ट्रेन से आना चाहते हैं तो हंपी से महज 13 किलोमीटर दूर मौजूद होसपेट जंक्शन तक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता समेत ज्यादातर प्रमुख शहरों से सीधी ट्रेन आती है. बस से हंपी आने के लिए भी आपको बेंगलुरु पहुंचकर वहां से होसपेट की ही बस पकड़नी होगी.
DISCLAIMER: लेख में दी गई जानकारी मान्यताओं व कुछ धार्मिक ग्रंथों में उपलब्ध जानकारियों पर आधारित है.
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