डीएनए हिंदीः कर्नाटक में मार्च से शुरू हुआ हलाल और झटका मीट पर विवाद खत्म नहीं हो रहा है. अब हिंदुओं से अपील की जा रही है कि वह मीट हिंदू शॉप से झटका वाला ही लें. बकरे को काटने की धार्मिक परंपरा पर अब बहस शुरू हो गई. आइए जानते हैं कि हलाल मीट और झटका मीट में आखिर अंतर क्या है और दोनों ही धर्मों में इसे लेकर क्या नियम या प्रतिबंध हैं.
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सबसे पहले जान लेते हैं हलाल और झटका मीट में फर्क
क्या होता है हलाल मीट. हलाल अरबी शब्द है और इसे इस्लामिक कानून के हिसाब से परिभाषित किया गया है. इस्लाम में हलाल मीट की प्रक्रिया का पालन करने की ही अनुमति है. इसमें जानवरों को धाबीहा यानी गले की नस और श्वासनली को काटकर मारना जरूरी माना गया है. मारते समय जानवरों का जिंदा और स्वस्थ होना भी जरूरी है. इसमें जानवरों के शव से सारा खून बहाया जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान विशेष आयतें पढ़ी जाती हैं जिसे तस्मिया या शाहदा कहा जाता है. लाल करने से पहले कलमा पढ़ने और गर्दन पर तीन बार छुरी फेरने की मान्यता है, जबकि झटके में बकरे को एक झटके में मार देने की बात होती है, ताकि वह तड़पकर न मरें.
जानवर के दर्द को लेकर है बवाल
हलाल करने वालों का तर्क है कि इस तरीके में जानवर को कम दर्द होता है. तेज धार चाकू से सांस की नली कटने से कुछ ही सेकेंड्स में जानवर की जान चली जाती है, वो दर्द से तड़पता भी नहीं है. वहीं, झटका वालों का तर्क है कि एक झटके में जानवर की जान लेने से उसे दर्द कम होता है. झटका से जानवर मारने से पहले काफी तड़पता है और हलाल से पहले जानवर को खूब खिलाया पिलाया जाता है.
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मीट स्टोरेज से भी जुड़ा है झटका और हलाल
मैसूर के सेंट्रल फूड टेक्नॉलजी रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट बताती है कि हलाल का तरीका जानवर की बॉडी से खून पूरी तरह निकालने में सक्षम होता है, जबकि झटके में खून के थक्के बॉडी में जमे रह जाते हैं. झटका मीट स्टोर नहीं किया जा सकता, जबकि हलाल मीट स्टोर किया जा सकता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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क्या है झटका, हलाल मीट में धार्मिक विवाद, जानिए दोनों में अंतर