डीएनए हिंदी: Ganesh Lakshmi Puja on Diwali- इस साल दिवाली 24 अक्टूबर को है, इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, मां लक्ष्मी के साथ गणेश भी होते हैं. पुराणों के अनुसार दिवाली पर रात को पूजा के बाद मां लक्ष्मी घरों में घूमती रहती हैं, भक्तों का मानना है कि मां उस दिन पृथ्वी पर आशीर्वाद देने के लिए रहती हैं. दिवाली की रात मां लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा का विशेष महत्व है, चलिए जानते हैं क्या है इसके पीछे का कहानी
क्या है पीछे की पौराणिक कहानी
सनातन धर्म में किसी भी पूजा-पाठ में गणपति की पूजा पहले होती है, उनसे ही किसी भी काम की शुरुआत की जाती है. लक्ष्मी पूजन में विष्णु जी का नहीं गणेश जी का होना जरूरी माना गया है. गजानन की पूजा के बिना दिवाली पर धन की देवी की उपासना अधूरी मानी जाती है.पौराणिक कथा के अनुसार बैकुंठ में मां लक्ष्मी और विष्णु जी चर्चा कर रहे थे तभी देवी ने कहा कि मैं धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सौहाद्र देती हूं, मेरी कृपा से भक्त को सर्व सुख प्राप्त होता है. ऐसे में मेरी ही पूजा सर्वश्रेष्ठ है. मां लक्ष्मी के इस अहम को विष्णु जी ने भांप लिया और उनके अहंकार को तोड़ने का फैसला किया. विष्णु जी ने कहा देवी आप श्रेष्ठ है लेकिन संपूर्ण नारीत्व आपके पास नहीं है क्योंकि जब तक किसी स्त्री को मातृत्व का सुख न मिले वो उसका नारीत्व अधूरा रहता है.
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विष्णु जी ने तोड़ा मां लक्ष्मी का घमंड
मां लक्ष्मी श्रीहरि की बात सुनकर निराश हो गईं. देवी मां पार्वती के पास पहुंची और उन्हें सारी बात बताई. जगत जननी मां पार्वती ने लक्ष्मी जी के दर्द को समझते हुए अपने एक पुत्र गणेश को उन्हें दत्तक पुत्र के रूप में सौंप दिया. देवी लक्ष्मी अति प्रसन्न हुईं और उन्होंने भगवान गणेश को अपनी सिद्धियां, धन, संपत्ति, सुख गणपति को प्रदान करने की बात कही. देवी ने घोषणा की कि साधक को धन, दौलत, ऐश्वर्य की प्राप्ति तभी होगी लक्ष्मी के साथ गणेश जी की उपासना की जाएगी, तब से ही दिवाली पर इनकी आराधना की जाती है.
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इसलिए गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति एक साथ स्थापित होती है, इस दिन दोनों की साथ में ही पूजा होती है. गणपति हमेशा लक्ष्मी जी के बाईं ओर विराजमान होते हैं ऐसे में देवी की मूर्ति या तस्वीर लेते वक्त इस बात का ध्यान जरूर रखें. जैसे मां लक्ष्मी की पूजा होती है, ठीक वैसे ही गणेश की पूजा भी होती है.
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Ganesh-Lakshmi Puja on Diwali: गणेश के बगैर अधूरी है लक्ष्मी की पूजा, क्यों शुरू हुई ये प्रथा