डीएनए हिंदीः Dev Deepawali Puja in Kashi, Shubh Muhurat, Deepdan, Significance- आज शाम काशी में उत्तरवाहिनी गंगा के अर्धचंद्राकार 85 घाट आज दीपों से जगमगा उठे हैं. संत रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट तक और वरुणा नदी के तट से लेकर मठों-मंदिरों तक 10 लाख दीए जल रहे हैं. देव दीपावली को त्रिपुरोत्सव और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.

देव दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाई जाती है. इस बार 8 नवंबर को चंद्र ग्रहण के कारण देव दीपावली एक दिन पहले मनाई जा रही है.  इस दिन देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और  उनकी कृपा बनी रहती है.  

इस दिन नदी में स्नान करने और दीपदान करने का भी बहुत महत्व है. मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता धरती पर उतरते हैं और काशी में दिवाली मनाते हैं इसलिए ही इस त्योहार को देव दीपावली कहा जाता है.  इस दिन काशी और गंगा घाटों पर काफी रौनक रहती है और दीपदान किया जाता है.  

कैसे करें दीपदान

आमतौर पर दीपदान नदी किनारे किए जाते हैं. कुछ लोग दीप जलाकर नदी में प्रवाहित भी करते हैं. इसे ही दीपदान कहते हैं. दीपदान करने से पहले दीपक की पूजा करनी चाहिए. अगर घर में दीपदान करना चाहते हैं तो दीपक जलाएं, पूजा करें और घर के आंगन में रखें.

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देव दीपावली पर शाम के समय प्रदोष काल में 11, 21, 51 या 108 आटे का दीया बनाकर दीपदान किया जाता है. सभी देवी-देवताओं और ईष्ट देव का स्मरण करते हुए दीपक पर कुमकुम, हल्दी, अक्षत, और फूल अर्पित करें. इसके बाद दीपक को नदी में दीप विसर्जित कर दिया जाता है. 

देव दीपावली 2022 शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, पूर्णिमा तिथि 7 नवंबर शाम 4 बजकर 15 मिनट से शुरू होगी और 8 नवंबर को शाम 4 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी. 8 नवंबर को चंद्रग्रहण होने के कारण देव दीपावली एक दिन पहले मनाई जा रही है जिसका मुहूर्त आज यानी 7 नवंबर को शाम 5 बजकर 14 मिनट से शाम 7 बजकर 49 मिनट तक है. शुभ मुहूर्त में पूजन के लिए 2 घंटे 32 मिनट का समय मिलेगा.

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, देव दीपावली में पूजा और दीपदान प्रदोष काल में करना शुभ माना गया है इसलिए शाम 5 बजकर 14 मिनट से 7 बजकर 49 मिनट का समय उत्तम रहेगा.

BHU के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के ज्योतिषाचार्य प्रो. सुभाष पांडेय कहते हैं

"हिंदू धर्म में जितने भी देवी-देवता हैं वे सब त्रिपुरासुर राक्षस के आतंक से पीड़ित थे. भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासर वध किया था. इसके बाद सारे देवी-देवता काशी की धरती पर आए और भव्य दिवाली मनाई. पुराणों, धर्मशास्त्रों, धर्म सिंधु आदि ग्रंथों में इसका उल्लेख त्रिपुरोत्सव के नाम से होता है. दिवाली पर केवल मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. मगर, ऐसी मान्यता है कि देव दीपावली पर साक्षात सभी देवतागण काशी में उतरते हैं और जो भी दीपक जलाता है उसे अपना आशीर्वचन देते हैं."

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस ने धरती वासियों को परेशान कर रखा था जिससे त्रस्त होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे. भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था. उससे मुक्ति मिलने के बाद देवता भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे और वहां दीप प्रज्जवलित कर खुशी मनाई. तब से लेकर आज तक यह त्योहार मनाया जा रहा है.  

त्रिपुरासुर को ब्रह्मा जी ने दिया था ये वरदान

त्रिपुरासुर ने वरदान मांगा कि हमारे लिए निर्मित तीन पुरियां जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में हों और कोई क्रोधजित अत्यंत शांत होकर असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से मारना चाहे, तब ही हमारी मृत्यु हो. ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह दिया. इसके बाद त्रिपुरासुर बहुत बलशाली हो गए और उनका आतंक बढ़ गया. ये जहां भी जाते समस्त सत्पुरषों पर अत्याचार करते. यहां तक कि देवतागण भी उनके आतंक से पीड़ित थे. उन्हें युद्ध में कोई हरा नहीं पाता था.

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शिव ने किया त्रिपुरासुर का वध

अंत में परेशान होकर सभी देवता, ऋषि-मुनि भगवान शिव की शरण में पहुंचे. सभी ने महादेव से अपनी व्यथा कही तो उन्होंने देवताओं को अपना आधा बल देकर त्रिपुरासुर का सामना करने के लिए कहा लेकिन सभी देवता भगवान शिव के बल को संभाल नहीं पाए. इसके बाद स्वंय शंभू ने त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लिया. इसके बाद देवतागण ने अपना आधा बल शिव को समर्पित कर दिया.

त्रिपुरासुर के वध के लिए ऐसे हुई तैयारी

पृथ्वी को ही भगवान ने रथ बनाया, सूर्य-चंद्रमा पहिए बन गए, सृष्टा सारथी बने, भगवान विष्णु बाण, वासुकी धनुष की डोर और मेरूपर्वत धनुष बने.  फिर भगवान शिव रथ पर सवार होकर धनुष पर बाण चढ़ा लिया और अभिजित नक्षत्र में तीनों पुरियों के एक पंक्ति में आते ही त्रिपुरासुर पर आक्रमण कर दिया. प्रहार होते ही तीनों पुरियां जलकर भस्म हो गईं और त्रिपुरासुर का अंत हो गया. तभी से शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है.

स्कंद पुराण के काशीखंडम के मुताबिक

"काशी में देव दीपावली मनाने के संबंध में मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया था. कार्तिक पूर्णिमा के दिन भेष बदलकर भगवान शिव काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान किए. यह बात राजा दिवोदास को पता लगी तो उन्होंने देवताओं के प्रवेश के प्रतिबंध को समाप्त कर दिया था. इससे देवता खुश हुए और उन्होंने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दीपावली मनाई थी."

इतिहास क्या कहता है

काशी के पंचगंगा घाट को लेकर मान्यता है कि यहां गंगा, यमुना, सरस्वती, धूतपापा और किरणा नदियों का संगम है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन पंचगंगा घाट पर स्नान विशेष पुण्यदायी माना जाता है. काशी के ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, यहां देव दीपावली की शुरुआत भगवान शिव की कथा से जुड़ी है. मगर, घाटों पर दीप प्रज्ज्वलित होने की कथा पंचगंगा घाट से जुड़ी है. 

साल 1785 में आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेकर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराने वाली महारानी अहिल्याबाई होलकर ने पंचगंगा घाट पर पत्थर से बने हजारा स्तंभ (एक हजार एक दीपों का स्तंभ) पर दीप जलाकर काशी में देव दीपावली उत्सव की शुरुआत की थी. इसे भव्य बनाने में काशी नरेश महाराज विभूति नारायण सिंह ने मदद की.

37 साल पहले क्रिकेट खेलने वाले लड़कों ने मनाई थी देव दीपावली

काशी में देव दीपावली के आधुनिक दौर के मौजूदा आयोजन का इतिहास महज 37 साल पुराना है. पहली बार साल 1985 में घाट पर क्रिकेट खेलने वाले लड़कों ने श्रद्धालुओं से दीए और तेल के लिए पैसे मांगकर पंचगंगा घाट पर 5 दीये जलाए थे. इसके बाद साल 1986 में बनारस के 5 घाटों पंचगंगा, बालाजी, सिंधिया घाट, मान मंदिर और अहिल्या बाई घाट पर देव दीपावली मनाई गई.

साल 1987 में कुछ अन्य लोग भी जुड़े और दशाश्वमेध घाट को मिलाकर 15 घाटों तक देव दीपावली मनाई जाने लगी.  आयोजन के चौथे साल अस्सी घाट पर भी देव दीपावली मनाई जाने लगी. पांचवें साल 27 घाट और अब 85 से ज्यादा गंगा घाटों पर देव दीपावली उत्सव के रूप में मनाई जाती है.

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केंद्रीय देव दीपावली महासमिति के अध्यक्ष पं. वागीश दत्त शास्त्री के अनुसार, नेपाल से आकर बनारस में बसे पं. नारायण गुरु ने साल 1984 में श्रद्धा भाव से किरणा-गंगा संगम स्थल पर 5 दीये जलाए थे. अगले साल घर-घर से तेल मांग कर उन्होंने पंचगंगा घाट से हजारा दीपोत्सव (1001 दीप जलाकर) मनाया. इस वर्ष 37 साल बाद 7 नवंबर को काशी के गंगा घाटों पर देव दीपावली पहले से भी ज्यादा भव्य और दिव्य रूप में मनाई जाएगी.

10 यज्ञ करने के बराबर माना जाता है देव दीपावली के दिन किया दीपदान 

देव दीपावली के दिन गंगा स्नान कर दीपदान करना बेहद शुभ माना जाता है इस दिन दीपदान करना 10 यज्ञ करने के बराबर माना जाता है 

देव दीपावली उपाय

  • देव दीपावली के दिन तुलसी के पौधे को पीले रंग के कपड़े पहनाने से नौकरी और व्यापार में उन्नति प्राप्त होती है. 
  • इस दिन मिट्टी या आटे के दिए बनाकर उसमें 7 लौंग की कलियां डालकर जलाना चाहिए. ऐसा करने से परिवार में खुशहाली बनी रहती है. 
  • देव दीपावली पर दीप दान करके पीतरों की कृपा भी पाई जा सकती है. 
  • घर के दरवाजे पर आम के पत्तों का तोरण लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है. 
  • देव दीपावली के दिन 11 पत्तियों की माला को भगवान विष्णु को चढ़ाना चाहिए. 
  • सुख समृद्धि के लिए गोमती चक्र, काली हल्दी, एक सिक्का और कौड़ी लपेटकर तिजोरी में रखना शुभ माना जाता है. 

यह है खास 

काशी में स्वर्णिम संसार रची 21 लाख दीपों की आभा

इस बार काशी के घाट, कुंड और सरोवरों पर 21 लाख दीपों की रोशनी की आभा दीप मालिकाओं का स्वर्णिम संसार रचेगी. काशी समेत देश-विदेश की जनता इस अद्भुत पलों की साक्षी बनेगी. यूपी के पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह राजघाट पर देव दीपावली कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हो रहे हैं.

अस्सी घाट से सामनेघाट तक 108 स्थानों पर देव दीपावली महोत्सव पर जिला प्रशासन की ओर से 10 लाख दीप और काशीवासियों के सहयोग से 11 लाख दीपक जलाए जाएंगे.
अस्सी घाट से सामनेघाट तक 108 स्थानों पर देव दीपावली महोत्सव होगा.काशी के पंचक्रोशी परिक्रमा पथ के तहत ग्रामीण व शहरी इलाकों में 101 स्थानों पर देव दीपावली महोत्सव का आयोजन पहली बार होगा.अमृत महोत्सव में 75 वर्ष पर रंगोली, चित्र, पोस्टर की सजावट होगी.

एक लाख दीपों से जगमगाएगा दशाश्वमेध घाट 

गंगा सेवा निधि की ओर से देव दीपावली महोत्सव अमर वीर योद्धाओं को समर्पित होगा. आध्यात्मिकता और राष्ट्रवाद को समर्पित महोत्सव के साथ ही आकाशदीप का भी समापन होगा. कार्तिक पूर्णिमा पर अमर वीर योद्धाओं को भगीरथ शौर्य सम्मान से सम्मानित किया जाएगा.

1 लाख दीपों से घाट और भवनों का कोना-कोना जगमग होगा. 

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गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष सुशांत मिश्र ने बताया कि तीन दशक से देव दीपावली का आयोजन हो रहा है.
‘एक संकल्प गंगा किनारे’ से महोत्सव में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं व पर्यटकों को मां गंगा के तट पर संकल्प दिलाया जाएगा. 5.20 बजे महोत्सव का शुभारंभ निधि के संस्थापक पं. सत्येंद्र मिश्र को पुष्पांजलि अर्पित कर होगा. 21 ब्राह्मण, 42 कन्या और पांच डमरू दल के सदस्य मां गंगा की महा आरती उतारेंगे.

लेजर शो में गंगा अवतरण, देव दीपावली और भगवान शिव की कथा सुनेंगे पर्यटक

देव दीपावली पर पहली बार चेत सिंह घाट की दीवारों पर थ्री डी प्रोजेक्शन मैपिंग के जरिये धर्म का व्याख्यान होगा.
काशी आने वाले पर्यटक मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण व देव दीपावली का कथा सुन सकेंगे. गंगा की गोद में लेजर और लाइट मल्टीमीडिया शो के माध्यम से भगवान शिव के भजनों की प्रस्तुति भी होगी. 20 मिनट का शो कई बार दिखाया जाएगा, जिससे देव दीपावली पर वाराणसी के घाटों पर आने वाले सभी श्रद्धालु देख सकेंगे.

मॉडर्न स्टेज सर्विसेज के अनुभव गुप्ता के अनुसार, पांच दिन के रिकॉर्ड समय में गंगा अवतरण, देव दीपावली की धार्मिक जानकारी और शिव भजनों के 5-6 ट्रैक शूट कर अंतिम रूप दिया गया है. टेक्नीशियन व इंजीनियर मिलाकर 250 से अधिक लोगों की टीम लगी है.
इस शो का प्रोजेक्शन 20 लेजर प्रोजेक्टर के माध्यम से होगा. इसमें संगीत की ध्वनि के साथ लेजर और लाइट्स का एक अनूठा तालमेल देखने को मिलेगा.

शहर में 6 जगह होगा लाइव प्रसारण

देव दीपावली पर विश्व प्रसिद्ध काशी के घाटों की आरती और सजावट शहर के कई स्थानों से लाइव देखी जा सकेगी. इसके लिए 6 प्रमुख स्थानों पर एलईडी स्क्रीन की व्यवस्था की है. श्रद्धालुओं के लिए रियल टाइम आरती देखने के लिए हाई रिजॉल्यूशन कैमरे लगाए गए हैं.

एलईडी स्क्रीन अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, राजघाट, गोदौलिया मल्टी लेवल पार्किंग और कैंट स्टेशन पर लगाई गई हैं. लाइव तस्वीरों के साथ लोग महाआरती के समय भजन और घंटा-घड़ियालों की आवाज भी सुन सकेंगे.

जल, थल और नभ से होगी निगरानी

पुलिस कमिश्नर ए. सतीश गणेश के अनुसार पर्यटकों की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किया गया है. प्राइवेट ड्रोन को उड़ाने पर पूरी तरह रोक लगाई गई है और जिले की सीमा पर भी चौकसी बरती जाएगी. पर्याप्त संख्या में पुलिस और पीएएसी की तैनाती की गई है. गंगा नदी में NDRF और SDRF की टीमों को मुस्तैद किया गया है. पर्यटकों की बड़ी संख्या देखते हुए अस्पतालों में बेड रिजर्व करके चिकित्सकों की टीम को अलर्ट रखा गया है. गंगा में फ्लोटिंग डिवाइडर बनाए जा रहे हैं. नाविकों को निर्धारित पर्यटकों को बैठाने और लाइफ जैकेट पहनने की हिदायत दी गई है. श्रद्धालुओं व पर्यटकों की भारी भीड़ के अनुमान से ट्रैफिक डायवर्जन और पार्किंग सुनिश्चित की गई है. पुलिस ड्रोन कैमरे के जरिए निगरानी करेगी.

दो से ढाई लाख में हुई है बजड़ों की बुकिंग

काशी में 1500 छोटी-बड़ी नाव चलती हैं. इनमें हाथ से चलने वाली छोटी नाव से लेकर मोटरबोट और बजड़ा तक शामिल हैं अस्सी घाट पर नाविक दीपक कुमार साहनी ने बताया कि देव दीपावली पर लगभग 40 लोगों के बजड़े की बुकिंग 2 से ढाई लाख रुपए में हुई है. छोटी नावों की बुकिंग लगभग 20 से 30 हजार रुपए में हुई है. मोटरबोट का रेट 50 हजार से एक लाख रुपए है. नाविक समाज से प्रशासन की ओर से कहा गया है कि नाव ओवरलोड न हो और सुरक्षा के सभी मानकों का पालन कराना है. वहीं, क्रूज संचालक विकास मालवीय ने बताया कि 12 हजार रुपए प्रति व्यक्ति रेट रखा गया था। देव दीपावली पर क्रूज लगभग 3 घंटे तक गंगा में सैलानियों को भ्रमण कराएगा. क्रूज में फिलहाल जगह नहीं खाली है.

ठहरने के 1600 से ज्यादा जगह हाउसफुल काशी में 500 से ज्यादा छोटे-बड़े होटल, 400 से ज्यादा गेस्ट हाउस, 250 से ज्यादा लॉज और धर्मशाला, 500 से ज्यादा पेइंग गेस्ट हाउस हैं. अब फिलहाल कहीं जगह खाली नहीं हैं. 

80 लाख के फूल सिर्फ विश्वनाथ धाम में लगेंगे देव दीपावली पर गंगा घाटों के साथ ही प्रमुख मठों और मंदिरों की सजावट का चलन भी है. इस बार अकेले विश्वनाथ धाम को 80 लाख रुपए के फूलों से सजाया जा रहा है.  मलदहिया स्थित फूल मंडी के दुकानदार सूरज ने बताया कि देव दीपावली पर सजावट के लिए शहर भर में फूलों की रिकॉर्ड बिक्री होगी. एक अनुमान के अनुसार, ढाई करोड़ रुपए से ज्यादा के फूल देव दीपावली के दिन शहर में बिक जाएंगे.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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काशी के 85 घाटों पर स्वर्ग से दीपावली मनाने उतरे देवता, इस साल खास है ये पर्व
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काशी में इस साल ऐसे मनाई जा रही है देव दीपावली

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काशी के 85 घाटों पर स्वर्ग से दीपावली मनाने उतरे देवता, इस साल खास है ये पर्व