डीएनए हिंदी: अमृतसर (Amritsar) एक धार्मिक और ऐतिहासिक शहर है. इसकी स्थापना सिखों (Sikhism) के चौथे गुरु रामदास (Sikh Guru Ramdas) ने की थी. अमृतसर शहर को पहले रामदासपुर के नाम से जाना जाता था. गुरु रामदास ने 1577 ईस्वी में 'अमृत सरोवर' (Amrit Sarowar) नामक शहर की स्थापना की जो भविष्य में अमृतसर के नाम से दुनिया में मशहूर हो गया. आईए, इस शहर को बसाने वाले रामदास के बारे में जानने-समझने की कोशिश करते हें. 

लाहौल में पैदा हुए थे रामदास

गुरु रामदास अविभाजित हिन्दुस्तान के लाहौर के चूना मंडी में 9 अक्टूबर 1534 में पैदा हुए थे. रामदास को बचपन में जेठा नाम से पुकारा जाता था. इनकी मां का नाम अनूप देवी और पिता का नाम हरियादास था. रामदास की शादी गुरु अमरदास की बेटी बीबी बानो से हुई थी. जेठा जी के भक्तिभाव से प्रभावित होकर गुरु अमरदास ने 1 सितंबर 1574 को इन्हें गुरु का पद दिया. वे इस पद पर अगले सात साल तक बने रहे. हर साल गुरु रामदास के जन्मदिन पर प्रकाश पर्व मनाया जाता है. इस अवसर पर गुरुद्वारा अमृतसर साहिब को तरह-तरह के फूलों से सजाया जाता है.

गुरु की अष्टपदी 'गुरु ग्रंथ साहिब' में संकलित

गुरु रामदास ने आमलोगों की भलाई के लिए कई महान कार्य किए. गुरु की शिक्षा से सम्राट अशोक भी प्रभावित थे और इनके कहने पर ही अशोक ने पंजाब प्रांत में प्रजा का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था. इन्होंने अमृतसर में सिखों के पवित्र सरोवर 'सतोषर' का निर्माण करवाया था. गुरु रामदास बहुत ही क्रिएटिव थे. उन्होंने कई कविताएं और लावन की रचनाएं की. उनके लिखे लावन आज भी सिखों की शादियों में शगुन के बतौर गाए जाते हैं. इन्होंने 638 भजनों की रचना की. रामदास जी की संगीत में बहुत रुचि थी. इन्हें 30 रागों का ज्ञान था. गुरु रामदास जी के लिखे गए 31 अष्टपदी और 8 वारां को सिखों के पवित्र ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में संकलित किए गए.

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रामदासपुर से अमृतसर कैसे पड़ा नाम?
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दिलचस्प है अमृतसर के नामकरण की कहानी. (फाइल फोटो-PTI)
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दिलचस्प है अमृतसर के नामकरण की कहानी. (फाइल फोटो-PTI)

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