हर महीने एक शिवरात्रि आती है, मगर महाशिवरात्रि इनमें सबसे खास होती है. इस दिन शिवभक्त पूरी श्रद्धा भाव से शिव को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना करते हैं. कुछ लोग उपवास रखते हैं. कहीं रात भर भजन-कीर्तन किया जाता है. कुछ लोग इस दिन योग-साधना भी करते हैं. इस साल महाशिवरात्रि का यह पर्व 1 मार्च को मनाया जाएगा. ऐसे में सभी शिवभक्तों को अपने प्रिय भगवान शिव से जुड़े संकेतों और उनके अर्थ के बारे में जानना जरूरी है-
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भगवान शिव का जो रूप हम देखते हैं और जिसकी पूजा करते हैं उसमें एक सर्प उनके गले में लिपटा नजर आता है. इस सांप का नाम वासुकी बताया जाता है. गले में सर्प दर्शाता है कि भगवान शिव संहारकर्ता हैं. उनके मस्तक पर चंद्र समय की गति को दर्शाता है. त्रिशूल उनके रूप का एक अहम हिस्सा है, जिसे वह अपने अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करते हैं. उनके माथे पर बनी तीन धारियां तीन गुण सत्व, रजस और तमस को दर्शाती हैं.सत्व निर्माण का, रजस निरंतरता का और तमस विध्वंस को दर्शाता है. डमरू उनका पसंदीदा संगीत वाद्य है.
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महादेव, नीलकंठ, शिव और महाकाल के अलावा भगवान शिव के 108 से ज्यादा नाम हैं. उनके हर नाम से उनका एक अलग गुण और घटना जुड़ी हुई है.
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भगवान शिव जहां बर्फ, सर्प और पहाड़ों से घिरे रहकर शांति को दर्शाते हैं और भोले भंडारी कहलाते हैं, वहीं उनका क्रोध भी विध्वंसक होता है. वह जितने शांत हैं, उतने ही क्रोधित भी हो जाते हैं. उनका तांडव नृत्य उनके क्रोध का ही प्रतीक है. उनका नटराज अवतार बताता है कि किसी भी समस्या को ज्ञान, संगीत और नृत्य से ही खत्म किया जा सकता है.
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भगवान शिव के माथे पर भस्म से बनी तीन रेखाएं और उनकी तीसरी आंख को दुनिया के विध्वंस के रूप में देखा जाता है.वहीं शिव जी की तीसरी आंख को भविष्य का प्रतीक भी माना जाता है. कहा जाता है कि इस तीसरी आंख से वह भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों देख सकते हैं.
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शिवरात्रि के पर्व पर खासतौर पर भगवावन शिव को भांग चढ़ाई जाती है. इससे भी एक कहानी जुड़ी है. बताया जाता है कि जब सागर मंथन के दौरान भगवान शिव ने विष का प्याला पिया तो उनके मस्तिष्क पर विष का असर हो गया और वह बेहोश हो गए.इस स्थिति में भगवान शिव का उपचार करने के लिए जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया गया. इसमें भांग और धतूरा ही प्रमुख थे. इसके बाद से भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भांग और धतूरा चढ़ाया जाता है.
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भगवान राम और सीता की तरह शिव-पार्वती की जोड़ी को भी आदर्श विवाह का उदाहरण माना जाता है. भगवान शिव को कई बार अर्धनारेश्वर के तौर पर भी चित्रित किया जाता है. इसका मतलब होता है आधा पुरुष और आधी स्त्री. इसे एक प्रतीक के रूप में यह बताने के लिए इस्तेमाल किया गया कि इस ब्रह्मांड की रचना में स्त्री और पुरुष दोनों का बराबर योगदान है.
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भगवान शिव को निराकार माना गया है. शिवलिंग उनका निराकार रूप है. यही वजह है कि ज्यादातर भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में ही होती है. वेदों में लिंग शब्द का इस्तेमाल सूक्ष्म शरीर के लिए किया जाता है. वहीं कुछ और अर्थों में शिव को परमकल्याणकारी और लिंग को सृजन के रूप में स्थापित किया गया है.