महाभारत में पांडवों की तरफ से सबसे आगे चलने वाले अर्जुन दुनिया के सबसे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे. महाभारत युद्ध में पांडवों की जीत का सबसे बड़ा श्रेय उन्हीं को दिया गया था. इस युद्ध से पहले भी अर्जुन ने बार- बार अपने तीर और धनुष से अपनी श्रेष्ठता जाहिर की थी, लेकिन एक समय ऐसा आया, जब अर्जुन के धनुष तीर ने उनका साथ छोड़ दिया.
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अर्जुन के तीरों के सामने द्वापर युग में बड़े बड़े योद्धाओं के छक्के छूट गये थे. उनके तीरों के सामने कोई बहुत देर तक नहीं टिक पाता था, लेकिन द्वापर युग में ही एक ऐसा समय आया, जब अर्जुन के तीर धनुषों से जवाब दे दिया. उन्हें साधारण से डाकुओं ने हरा दिया. इसकी वजह भगवान श्रीकृष्ण का दुनिया से जाना था. उनके जाते ही अर्जुन गांडीव की शक्ति खत्म हो गई थी.
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धर्म ग्रंथों के अनुसार, महाभारत में पांडवों की जीत के बाद श्रीकृष्ण द्वारिका चले गये. यहां जब अर्जुन श्रीकृष्ण के निधन के बाद द्वारिका पहुंचे. यहां देखा धीरे धीरे द्वारिका पानी में डूब रही है. इस पर अर्जुन श्रीकृष्ण के महल की सैकड़ों महिलाओं को लेकर हस्तिनापुर लौट रहे थे. इसी बीच उन्हें डाकुओं से घेर लिया. अर्जुन ने डाकुओं को हटाने के लिए तीन धनुष चलाएं तो उन्होंने देखा कि इनकी धार खत्म हो चुकी थी. अर्जुन की धनुर्विद्या भी खत्म हो गई. इस पर दस्यु अर्जुन के साथ जा रही कई महिलाओं को उठा ले गये. कौरवों की सेना को हराने वाले अर्जुन कुछ नहीं कर पाये. उन्होंने अपने धनुष पर तीर चढ़ाए, लेकिन वो चल रही पाये. न ही इनका किसी को जाकर लगे.
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धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्रीकृष्ण के निधन के बाद अर्जुन की धुनर्विद्या में कमी नहीं आई थी, बल्कि उन पर श्रीकृष्ण की कृपा होना था. इसके साथ ही अजुर्न का भगवान श्रीकृष्ण के साथ आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और दैवीय होना था. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. युद्ध में उनके सारथी के रूप में मार्गदर्शन किया था. अर्जुन की शक्ति में भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद होना था. श्री कृष्ण के निधन के बाद वह अर्जुन को प्राप्त सभी दैवीय समर्थन शक्तियों का समाप्त होना था. इसकी वजह से अर्जुन की शक्तियां कमजोर पड़ गई.
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अर्जुन को गांडीव धनुष अग्निदेव से मिला था. यह एक दैवीय अस्त्र था. यह धनुष श्रीकृष्ण की मौजूदगी के साथ ही दैवीय उद्देश्य के लिए काम करता था. महाभारत युद्ध और श्री कृष्ण के निधन के बाद गांडीव की शक्ति का उद्देश्य खत्म हो गया. इस वजह से अर्जुन के पास गांडीव शक्तियां खत्म होकर सिर्फ साधारण धनुष एक हथियार बनकर रह गया. इसी वजह से अर्जुन इसे पहले की तरह प्रभावी तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाए.
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अर्जुन का भगवान श्रीकृष्ण के साथ गहरा लगाव था. उनके निधन के बाद अर्जुन को भारी मानसिक अघात पहुंचा. श्रीकृष्ण न सिर्फ अर्जुन के मित्र थे. वह उनके मार्गदर्शक भी थे. ऐसे में श्रीकृष्ण के बाद अर्जुन का आत्मविश्वास कम हो गया. इससे उनका युद्ध कौशल भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ. और तीन डाकुओं के सामने ही कमजोर पड़ गये.
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भगवान श्रीकृष्ण का निधन द्वापर युग के लगभग अंत पर ही हुआ था. वहीं महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन का युग भी अब समाप्त हो चुका था. वहीं डाकुओं के सामने अर्जुन की युद्ध न करने की विफलता आत्मघात कर गई. अर्जुन के गांडीव और धनुर्विद्या बेअसर हो गई. इस पर उन्होंने दोनों ही चीजों को छोड़ दिया.
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दस्युओं के सामने कमजोर पड़कर अर्जुन ने एहसास किया कि बिना दैवीय समर्थन और आत्मविश्वास के सबसे महान योद्धा भी असफल हो सकता है. इस घटना ने महान योद्धा अर्जुन को उनकी नश्वरता और कृष्ण पर उनकी निर्भरता का अहसास दिलाया. अर्जुन को एहसास हो गया कि अब उनके युग का अंत हो चुका है. साथ ही समझा कि वह अब तक जो भी थे. उसमें श्रीकृष्ण योगदान बहुत अधिक था. अर्जुन ने अपने प्रिय गांडीव धनुष को त्यागने का फैसला किया. अर्जुन ने गांडीव को अग्निदेव को लौटा दिया. साथ ही पांडव हस्तिनापुर का शासन युधिष्ठिर के पुत्र परीक्षित को सौंपकर वैराग्य की तरफ चले गये. यह उनकी अंतिम यात्रा थी.