डीएनए हिंदी: भगवान श्री कृष्ण के उपदेश (Geeta Updesh) जीवन में सफलता प्राप्त करने का मंत्र बताते हैं और समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं. जीवन में सफलता के लिए गीता के उपदेश को पढ़ना बहुत ही आवश्यक है. वह इसलिए क्योंकि श्री कृष्ण ने अर्जुन को इन्हीं उपदेशों के माध्यम से ही जीवन के सार का बोध कराया था. आइए जानते हैं गीत के उन उपदेशों के विषय में उपदेश जिनसे हम जीवन में सफल हो सकते हैं.
इस श्लोक में श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि कर्म न करने का आग्रह त्याग कर, यश-अपयश के विषय में संबुद्धि होकर, योगयुक्त होकर कर्म करो, क्योंकि समत्व को ही योग कहते हैं.
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नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।।
श्लोक का अर्थ है कि योग से रहित व्यक्ति में निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती है और उसके मन में भावना भी नहीं होती है. ऐसे में भावना रहित पुरुष को शांति भी नहीं मिलती है और अशांत व्यक्ति जीवन में कभी सुख नहीं पा सकता है.
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विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:।
निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।।
इच्छाओं को शांति भाव जोड़ते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो मनुष्य सभी इच्छाओं और कामनाओं को त्याग कर ममता को त्यागकर और अहंकार से रहित अपने कर्तव्यों का पालन करता है उसे ही शांति प्राप्त होती है.
श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! जो मनुष्य मुझे जिस प्रकार मेरा स्मरण करता है उसी के अनुरूप में उसे फल प्रदान करता हूं. सभी लोग सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं.
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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।
गीता के प्रसिद्ध श्लोक में श्री कृष्ण बताते हैं कि हे अर्जुन कर्म करते जाएं यह तेरा अधिकार है उसके फलों की चिंता मत करो. कर्मों के फल का हेतु मत बनो और कर्म न करने के विषय में भी न आग्रह करो.